भारत में आज कल गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही हैं.यहाँ अभी स्कूल चल रहे हैं और पहले सत्र की परिक्षाएं नज़दीक आ रहीहैं.[जून के पहले हफ्ते से परिक्षाएं आरंभ हैं.उस के बाद जुलाई-अगस्त ग्रीष्मावकाश होगा.]
इसी के चलते आजकल मेरी ,समय के साथ रस्साकशी चल रही है.इस लिए नया कुछ लिख नहीं पाई.
हम सभी जानते हैं कि 'जीवन में कभी कभी किसी की कही गयी एक बात जीवन की दिशा ही बदल देती है और बढ़ते बच्चों को माता -पिता का 'क्वालिटी 'समय ,देखभाल और स्नेह बहुत ही जरुरी है.नहीं तो वे दिशाहीन हो जाते हैं.आज एक ऐसी ही बच्ची की कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ जिस के माता पिता के पास उस के लिए समय नहीं था लेकिन एक अध्यापिका के सही मार्गदर्शन ने उसे नयी राह दी.
यह कहानी मैंने यहीं अपने अध्यापन काल के दौरान स्कूल की वार्षिक पत्रिका (९८-९९ )के लिए लिखी थी.
. मैं और मेरी छात्राएं.
रेखा
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कक्षा पांच में पढने वाली रेखा अक्सर स्कूल से घर आ कर रोती थी कि उसकी कोई सहेली क्यों नहीं है?घर में उस के सवालों का जवाब देने के लिए मम्मी पापा के पास समय नहीं है.घर में नौकर हैं ढेर सारे खिलौने भी हैं,मगर उसे कुछ अच्छा नहीं लगता.लोग उसे अब जिद्दी भी कहने लगे हैं.
आज स्कूल में संगीत कि नयी टीचर आई हैं.सभी ने उनका स्वागत किया.एक दिन उनकी कक्षा में रेखा सुबक सुबक कर रो पड़ी.
''अरे!रेखा क्या हुआ?तुम्हारी तबियत तो ठीक है न? " नीरा टीचर ने पूछा.
''तुम तो अच्छी लड़की हो फिर रोती क्यूँ हो?उन्होंने फिर पूछा.
अच्छी!...हा !हा !हा!....कक्षा में छात्रों के हंसी ठहाकों कि गूंज भर गयी,मगर टीचर के डाँटते ही कक्षा में सन्नाटा छा गया.तभी घंटी बज गयी.''रेखा तुम मुझ से ब्रेक टाइम में आ कर मिलना.''कहती हुई टीचर चली गयीं.
टीचर का स्नेह पा,रेखा ने उनसे अपनी मनोव्यथा कह डाली.
दूसरे दिन फिर रेखा को नीरा टीचर ने अपने पास बुलाया और उस से कहा ,"रेखा मैं ने तुम्हारी समस्या पर विचार किया ,कई बच्चों से अलग अलग बात भी की.जानना चाहती हो, कि तुम्हें कोई पसंद नहीं करता?"
नीरा टीचर ने उसे समझाते हुए कहा,"देखो रेखा!सब से पहले तुम अपनी आदतें सुधारो,अपनी अमीरी या फिर खिलौनों का रौब कक्षा के दूसरे बच्चों पर जमाना ठीक नहीं है.सब से मिल कर रहना चाहिये.बड़ों का अदब करो.और हाँ अपने आप को भी देखो,तुम्हारे बाल बिखरे रहते हैं,नाखून भी कितने गंदे हैं.सुबह नहा धो कर साफ़ यूनीफोर्म पहन कर आया करो.अगर तुम दूसरे बच्चों से लड़ोगी,उन्हें अपशब्द कहोगी तो कोई तुम्हें पसदं नहीं करेगा.सभी के साथ मधुर,नम्र और समान व्यवहार रखो,किसी का अपमान मत करो.फिर देखो तुम्हें कितनी ख़ुशी मिलती है.हमेशा मुस्कराओ,बात बात पर चिडचिडाओ मत.फिर देखो तुम्हें कैसे कोई पसंद नहीं करता??गलती पता चलते ही उसे सुधार लेने में ही समझदारी है.''
जैसे ही यह सब कह कर टीचर ने उसकी पीठ थपथपाई तो रेखा को एक सुखद सी अनुभूति हुई.उस ने उनकी सभी बातों को ध्यान से सुना था.वह सोचने लगी''पहले ये सभी बातें उसे किसी ने क्यों नहीं बताईं?हो सकता है कहा भी हो पर उस ने कब,किसी की बात सुनी है?
आज सालों बाद रेखा एक आकर्षक व्यक्तित्व वाली सफल व्यवसायी है.उस का अपना एक सफल बुटीक है.कभी कभी वह सोचती है कि उस समय अगर नीरा टीचर ने उसका मार्गदर्शन नहीं किया होता तो क्या होता?उस का वक्तितव कैसा होता?हर किसी को अपनी गलती पता चलते ही सुधार लेनी चाहिये.
कहते हैं न 'सुबह का भूला अगर शाम को घर लौटे तो उसे भूला नहीं कहते.'
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ALPANAA JI BAHOT HI BADHIYA SASMARAN HAI .. JIS KARINE SE AAPNE ISE PRASTUT KIYA HAI WO TO KAABILE DAAD HAI... BHAVNAAWO SE ABIBHUT YE SASMARAN PRERANAA DAAYEE HAI... DHERO BADHAAYEE AAPKO
ReplyDeleteARSH
अल्पना जी, आपकी यह कहानी दिल को छू गई.. वाकई इंसान की ज़िंदगी में टीचर का भी बड़ा रोल होता है.. मैं अपने कुछ टीचर्स को आज भी मिस करता हूं.. आभार
ReplyDeleteनन्हे मन की कल्पना ...अच्छा है आपने अब तक इन यादो को संजो कर रखा है ....कम्पूटर ओर नेट चमत्कार करता है ऐसा मुझे भी अभी पता चला .जब मेरे किसी स्कूली साथी ने मुझे पांचवी क्लास में लिखी मेरी कविता .फेस बुक पर भेजी.
ReplyDeleteबाल मनोवि्ज्ञान पर आपकी अच्छी पकड है. बहुत ही सुंदर सीख देती है यह कहानी. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आपका कहना एकदम सही है..
ReplyDeleteअध्यापक हमारे मानसपटल पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ते हैं.
बात बस इतनी सी है कि अध्यापन को नौकरी भर न समझा जाए.
आपकी कहानी की तरह , आपकी आवाज bhee बहुत मधुर है |आपके ब्लॉग पर आकर मैं मीठे मीठे गाने सुन लेती हूँ |
ReplyDeletealpana ji , kahani ne dil ko choo liya .. mere saare teacher yaad aa gaye.. mera naman hai un sabko ,jinhone mera career banaya aur aapki lekhni ko salaam ,ki aapne itni acchi marmsparshi kahani likhi ..
ReplyDeletemeri dil se badhai sweekar kariyenga
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
सच ही है.....सही मार्गदर्शन मिलने से बच्चों का विकास सही होता है...........आपकी कहानी प्रेरणा देने वाली है.......और माँ बाप के साथ अगर टीचर भी सही मार्ग दर्शन दे तो बच्चों का विकास सही दिशा में होता है
ReplyDeleteबाल मनोविज्ञान के धरातल को छूती हुई प्रेरक कहानी है। बधाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अच्छी कहानी।
ReplyDeleteबचपन की कहानिया भी कितनी मासूम होती है ना.. मानना पड़ेगा उस वक़्त भी आप कमाल लिखती थी..
ReplyDeleteअच्छी प्रेरणा देती है यह कहानी ..कितना अच्छा लगता है न यूँ पुराने लिखे को लिखना पढना मासूम सा एहसास होता है एक :)
ReplyDeleteReally U did a great job.Nice 2 c ur blog page.
ReplyDeleteऐसी कितनी ही रेखाएं बिना नीरा टीचर के अपनी पहचान खो देती हैं...अच्छी किस्मत थी रेखा की उसे समय पर नीरा मिली...बहुत प्रेरक प्रसंग...
ReplyDeleteनीरज
गुरु बिना हमेशा ज्ञान अधुरा होता है...
ReplyDeleteगुरु ही तो मार्गदर्शक है...
सही लिखा
मीत
बहुत ही बढ़िया कहानी है, मेरे मित्रों को भी बहुत पसंद आयी है
ReplyDeleteआप समय के सागर से
ReplyDeleteये मोती चुन कर लाईँ
उसे पढकर
बहुत अच्छा लगा अल्पना जी ..
- लावण्या
SUNDAR!!!!!!!
ReplyDeleteAanand aayaa.
बहुत ही ह्रदय को भेदने वाली. आपने हमें भी प्रेरित कर दिया.
ReplyDeleteachchee kahani hai.
ReplyDeleteprenadayak,
ek shikshak student ki life mein bahut hi important role nibhatey hain.
Neera jaisee teacher har Rekha ko kahan mil paati hain?
bahut sahi sandesh deti kahani alpana ji,
ReplyDeleteagar samay par sahi disha dikhanewala mil jaaye to zindgi badal jaati hai. badhai.
... प्रेरणादायक प्रभावशाली अभिव्यक्ति ... शुक्रिया ... बधाई।
ReplyDeleteसबको टीचर मिले नीरा टीचर जैसी।
ReplyDeleteआदरणीय अल्पना जी
ReplyDeleteकहानी के माध्यम से आपने बहुत महत्वपूर्ण व सार्थक बात कही है !
आज रेखा जैसी बच्चियां तो बहुत हैं लेकिन नीरा जैसी शिक्षिकाएं नजर नहीं आतीं ! मुझे विश्वास
है जब आप शिक्षिका रही होंगी तो नीरा जैसी ही होंगी !
स्कूल-कालेज का काम महज किताबी ज्ञान पिलाना ही नहीं होना चाहिए .... पठन-पाठन के अतिरिक्त बच्चों में छुपी सृजनात्मक एवं रचनात्मक प्रतिभा को उभारना भी बेहद आवश्यक है !
आज की शिक्षा-प्रणाली में शिक्षा के इस व्यापक उद्देश्य को अनदेखा कर दिया गया है !
आपका 'ब्लॉग हैडर' बहुत 'क्लासिकल' लग रहा है ! बस 'टाईटल' थोडा दब गया है .... उसका 'कलर' बदल कर देखिये !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रकाश जी,शीर्षक का रंग सफ़ेद कर दिया है.अब थोडा उभर गया है.
ReplyDeleteअच्छी कहानी है अल्पना जी...
ReplyDelete" 'जीवन में कभी कभी किसी की कही गयी एक बात जीवन की दिशा ही बदल देती है "
ReplyDeleteआपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . सटीक अभिव्यक्ति के लिए आभार.
alpnaji,
ReplyDeleteyaade sukhad ho to prerna ban jaati he ..jis tarah se aapne apni smartiyo ke sagar se is kahaani ko ukera vo nisandeh pririt karti he//adhyapak aour shishya ka naata gyaan dene aour paane ka setu he// maargdarshan hota rahe ti jovan khil uthataa he/
Alpana really a very nice blog created by you.. keep it up...!!!
ReplyDeleteसबसे पहले कहानी की बात। प्रेरणा देती हुई यह कहानी अच्छी लगी, "गलती पता चलते ही उसे सुधार लेने में ही समझदारी है।" ये बात सही है कि रेखा जैसे छात्र और छात्रायें बहुत है पर नीरा जैसी टीचर बहुत कम है। हर काम में पैसे ने अहमियत ले ली है। खैर जब टीचरों की बात होती है तो मुझे अपने सर ही याद आते है।
ReplyDeleteशुक्रिया अल्पना जी इस कहानी के लिये...अकदम चुस्त और कसे शिल्प में कहने का अंदाज़..
ReplyDeleteये नया अवतार बहुत भाया
रेखा जैसा ही चरित्र अपने स्कूल में भी था...
पद्य की तरह गद्य में भी आप मानव मन की संवेदनायें बडी ही खूबसूरती से और सुगढता से अभिव्यक्त कर लेती हैं. ये कहानी भी इसी का सबूत है.
ReplyDeleteबढिया!!
गीत, लेख और गायन , आपके बहुमुखी प्रातिभा का परिचायक है.
kitnee sachee kahaani lagi ye
ReplyDeleteprernadayk khani .
ReplyDeletesach purane panno ko phir padhna bahut achha lagta hai,behad marmsprashi katha,sahi bhi waqt par mili ek sahi salah jeevan hi badal deti hai.bahut sunder katha.
ReplyDeletekuch likhna hua hi nahi alpana ji,hosp mein aadhe log chutti pe hai,work load badh jata hai.agle kuch dino mein jarur koshish karenge.aap hame yaad karti hai,hame bahut achha lagta hai.aapke liye hazaron khushiyon ki dua ke saath sadar mehek.
आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे ये बातें समझ में आई:
ReplyDelete१. हर किसी को सच्चे गुरु, सच्चे मार्गदर्शक की जरूरत है.
२. अपनी गलती पता चलने पर यथाशीघ्र सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए.
३. बढ़ते बच्चों को माता -पिता का 'क्वालिटी' समय, देखभाल और स्नेह बहुत ही जरुरी है.
प्रेरणादायी प्रसंग, लेखनी का भी संग,
पढ़कर जगती नयी आशा, एक नयी तरंग.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
uttam !
ReplyDeleteअच्छी कहानी है। काश हर रेखा को नीरा तीचर मिल पाती!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट ,एक शिक्षक की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है .
ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteकहानी, किसी काल्पनिक कहानी की तरह नही है, आज के इस दौर में भी सनातन सत्य की तरह ही यह बात उभर के आती है कि " माँ के बाद शिक्षक ही श्रेष्ठ गुरू होता है "।
बात रेखा या नीरा टीचर के प्रतीकोम के माध्यम से व्यक्त होते हुये हमारे अपने आस-पास सिमट जाती है। अगर हम आज सच्चे मन से अपने अंतर झांके तो पायेंगे कि कहीं न कहीं कोई नीरा टीचर ने हमें प्रेरित किया है या किया होगा।
कहानी आज भी प्रासंगिक है और प्रेरणादायी भी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut hi achchhi kahaani ......dhanyawaad
ReplyDeleteसबसे पहले तो अल्पना जी देरी के लिए माफी
ReplyDeleteआज कई दिनों बाद बलागजगत में ठीक से प्रवेश किया आपकी ये कहानी पढी सच में सीधे दिल में उतर गई बहुत ही अच्छी है यह रचना शायद कुछ कुछ मेरे बचपन से मेल खाती लेकिन इसमें रेखा अमीर है मैं अमीर नहीं था और मैं गंदा भी नहीं रहता था लेकिन हमेशा कम बोलने वाला खामोश
अच्छी रचना लगी आपकी दिल से बधाई
व्योम के पार....
ReplyDeleteमिलतें हैं
भाव
संगीत
सन्दर्भ
और
यही
सराहना की वज़ह
सादर
अल्पना जी!
ReplyDeleteवन्दे मातरम.
आपकी अनुमति के बिना मैंने कहानी में 'नीरा' के स्थान पर 'अल्पना' कर पढ़ा. साधुवाद आपको...
अपने चिट्ठे पर हिंदी टंकण यन्त्र लगा दें तो पाठकों को अंगरेजी में टिप्पणी न करना पड़े. कहीं और टंकित कर चिपकाने में ऊब होती है.
A wonderful message.Thanks for sharing.
ReplyDeleteGod bless.
अल्पना जी अगर इस वो बच्ची रेखा अब पढे तो उसे कितनी खुशी होगी, आज बहुत से बच्चे ऎसी ही हालत मै भटक रहे है, मां वाप पेसो ओर ज्यादाद के पीछे भाग रहे है, बहुत ही सुंदर लगी आप की यह कहानी, हम सब की आंखे खोलती.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर कहानी. प्रेरक प्रसंग
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