यह चित्र मुझे कल एक मित्र द्वारा भेजी ईमेल में मिला.इस ईमेल के अनुसार ,इस में उत्तरी ध्रुव पर सूर्य अस्त होते दिखाई दे रहा है.चंद्रमा धरती के सब से नज़दीक है.चंद्रमा के नीचे छोटी सी गोल आकृति सूर्य की है.यह सच में एक अद्भुत नज़ारा है.मगर यह सच नहीं है.वास्तव में धरती से चंद्रमा को सूर्य की तुलना में नग्न आँखों से इतना बड़ा आप देख ही नहीं सकते.और दोनों की धरती से दूरी भी यही कहती है.इस लिए यह तस्वीर एक छलावा मात्र है. सच नहीं!
पाती नेह की
---------- सावन के काले बादल संग, पवन बसंती लाना, प्रेम संदेसा भेज रही हूँ , प्रियतम तुम आ जाना. कूक रही कोकिल का , भाये गीत सुहाना . क्रीडा मग्न भ्रमर पुष्प संग , कलियों का इठलाना . लहरों का उठ गिरना, तट के पार कभी बह जाना. अध मूंदी पलकों में , अनगिन स्वप्नों का बुन जाना. तप्त भया शीतल मन, घन बन मेह सरस बरसाना . रीती नेह गगरिया , प्रियतम प्रेम सुधा भर जाना. प्रेम संदेसा भेज रही हूँ , प्रियतम तुम आ जाना. सावन के काले बादल संग, पवन बसंती लाना..प्रियतम तुम आ जाना। -अल्पना वर्मा |
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'हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू,
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो.'
-फिल्म-खामोशी का यह सदाबहार गीत प्रस्तुत है...मेरी आवाज़ में..
kayee baar chhalawe bhi sunder lagte hai....or hum chhalna chahte hai...andh mundhi palko me angint sapno ka bun jaanaa.....boht sunder
ReplyDeleteअभी सिर्फ अपना फेवरेट गीत सुन कर जा रहा हूँ.....कविता पर टिप्पणी शाम को करूँगा....
ReplyDeleteरचना बहुत ही सुन्दर लगी । गीत आपने सुन्दर गाया है।
ReplyDeleteअल्पना जी नमस्कार
ReplyDeleteसर्वप्रथम ऊपर जो आपने साथ में चित्र लगाया हे सच में बहुत ही मनमोहक है लेकिन आर्टिफिशिएल भी है जैसा कि आपने बताया भी है लेकिन फिर भी लग बहुत ही अच्छा रहा है
अब बात करें आपकी रचना की तो रचना के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं। इसलिए रचना की तारीफ नहीं कर पाऊंगा
अब बात करते हैं गीत की तो इतना है कि मुझे हर बार एक गीत दो गायिकाओं की आवाज में मिल जाता है और और मेरे मोबाइल की शोभा बढाता है। आपकी आवाज का जादू मेरे मोबाइल पर भी छा गया है जब भी आपकी आवाज का गीत लगता हूं रिंगटोन पर फोन कुछ ज्यादा ही बजता रहता है
आभार
कविता बहुत ही मोहब्बत से भरी है ...आपकी आवाज़ बहुत अच्छी है ..आप बहुत अच्छा गाती हैं
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
लहरों का उठ गिरना,
ReplyDeleteतट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना.
wah alpana ji , mahakta neh nimantran,anupam shabd chitra. geet sunta hun. badhai sweekaren.
अल्पना जी !
ReplyDeleteचित्र भले ही छ्लावा हो किन्तु कुछ छ्लावे इतने मनमोहक होते हैं कि यथार्थ में वापस आने का मन ही नहीं होता. यह चित्र एक ऐसा ही यथार्थ है. अस्तु साथ ही पोस्ट की हुयी रचना बहुत ही अच्छी लगी - आगामी रचनाओं के लिये शुभकामना
चित्र देखकर मुझे भी ताज्जुब हुआ ... यदि सूर्य की रोशनी से प्रथमा के चंद्रमा की चमक को देखने में बाधा न होती ... तो कुछ छोटे चांद और कुछ बडे सूर्य के साथ शायद ऐसा दृश्य दिखाई पड सकता था ... पर ऐसा नहीं होता ... खैर बाद में आपका लिखा समझ में आया कि तस्वीर सच नहीं ... कविता आपकी अच्छी लगी ... शायद कोई समस्या हो ... गाना तो सुन ही नहीं सकी।
ReplyDeleteबहुत ही मधुर गीत लिखा है आपने, देशज शैली में।
ReplyDeleteफोटो में छलाव है या नज़र में पता नहीं..........पर इतना अद्भिद दृश्य आँखों को रेयर ही देखने को मिलता है. आपकी रचना हमेशा की तरह बहूत सुन्दर, गहरे भाव लिए है. चाँद की तरह गयी जा सकती है.
ReplyDeleteआपका गीत भी लाजवाब है ...........
पूरी पोस्ट पर समय कैसे बीतता है पता ही नहीं चलता
क्या खूब है क्या कहूँ समझ नहीं आरहा है .... कविता इतने निर्मल ह्रदय से लिखी गयी है के पढ़ते ही पता चलता है बहोत ही सुन्दर कविता है बहोत ही मनभावन ..... और ऊपर से ये उफ्फ्फ कहर बरपाती कोमल स्वर में मेरा पसंदीदा गीत किस बात पे आपको बधाई दूँ समझ नहीं आरहा है .... बधाईयाँ बधाईयाँ बधाईयाँ ....
ReplyDeleteअर्श
मेरा फेव सोंग है ये.. अपने सिस्टम के साथ स्पीकर जोड़ कर पुरे ऑफिस को सुना दिया है.. :)
ReplyDeleteकविता खूबसूरत है. बिलकुल तस्वीर की तरह
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता और आपके स्वर में गीत...हमेशा एक अलग से ताजगी लिए हुए...बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteनीरज
अवास्तविक होने के बावजूद वित्र काफी सुंदर है...आपकी कविता की तरह :)
ReplyDeleteलहरों का उठ गिरना,
ReplyDeleteतट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना.
ye neh ki pati to dil ke aarpaar ho gayi,sunder alankarit
shabd bhav,mann mein kahi basant ki khushbu le aaye,geet hamesha ki tarah bahut hi madhur,sunder.
hmm ye chandrama wala pic chahe bharm h aapke header par lagi painting bahut sunder hai.
अल्पना जी, कई बार छलावा ही बहुत सुन्दर है। पाती नेह की भा गई है। इस रचना को पढकर एक गीत याद आ रहा है पर बोल याद नही आ रहे। खैर रचना एक गीत बन गई है। इसकी लय मंत्रमुग्ध कर रही है।
ReplyDeleteलहरों का उठ गिरना,
तट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना
बहुत उम्दा। गीत सुन नही पाऊँगा।
क्या खूब पुकारा है अपने प्रियतम को...
ReplyDeleteबहुत सुंदर... लगा...
ऐसे ख़त को पढ़कर तो प्रियतम कभी न रुक पायेगा...
मीत
मनपसन्द गाना तो है ही यह ..कविता भी बहुत पसंद आई ..यह चित्र एक अदभुत आभास दे रहा है ..कुछ रूमानी सा लगा ठीक आपकी कविता जैसा
ReplyDeleteचित्र को अगर वैज्ञानिक दृष्टीकोण से हटकर देखें तो बहुत रुमानी लगता है.
ReplyDeleteप्रियतम को संबोधित यह बहुत ही खूबसूरत रचना है. बधाई.
खामोशी फ़िल्म के गाने सदाबहार और हमेशा से अपील करते हैं. आपकी मधुर आवाज मे सुनना बहुत भला लगा.
रामराम.
सावन के काले बादल संग,
ReplyDeleteपवन बसंती लाना,
प्रेम संदेसा भेज रही हूँ ,
प्रियतम तुम आ जाना.
क्या सुंदर भाव छिपे हैं इनमें ,बिलकुल परम्परा गत शैली में जो कि अब अप्राप्य है .
और आपके स्वर में गाया गया गीत -
'हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू,
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो.'
नें तो अद्भुत समां बाँध दिया है .
अध मूंदी पलकों में ,
ReplyDeleteअनगिन स्वप्नों का बुन जाना.
'कूक रही कोकिल का ,
ReplyDeleteभाये गीत सुहाना .
क्रीडा मग्न भ्रमर पुष्प संग ,
कलियों का इठलाना .
लहरों का उठ गिरना,
तट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना'
- सुन्दर. साधुवाद. और हाँ मोहक आवाज में गीत सुनाने के लिए भी साधुवाद.
ब्लागजगत के दूसरे कई प्रखर रचनाकर्मी -कवियों की तुलना में आपकी कविताओं में आशा और जीवन के प्रति रागात्मकता बेहद सुखद लगती है -यह कविता भी प्रेरणा ,आशा और ऊर्जा से लबरेज है !
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट और चित्र तो छलावा ही होते हैं।
ReplyDeleteछवि को देख कर लगा , जहा ऐसा नजारा दिखता है वहां जाना चाहिए पर जब पढ़ा की ये एक छलावा है तो दुःख हुआ.
ReplyDeleteपरन्तु आप की रचना "पाती नेह की" पढ़ा तो, मैं भूल गया छवि के दृश्य को .
बहुत सुन्दर पाती .
alpana ji ,
ReplyDeletekavita ki tareef to main baad men karunga ji . pahle to main meri farmaish " kuch dil ne kaha " sun raha hoon .
aapk aabhari hoon , jo aapne ise gaya aur post kiya , ab ek meharbaani aur kariyenga ki ise mere mail par bhej dijiyenga ..
mujhe bahut khushi hongi ..
geet sunne ke baad sab kuch feeka feeka sa lag raha hai ji .. kavita sundar ban padhi hai , prem ras se bharpoor hai .. aur kuch likhne ka man nahi kar raha hai , ek baar aur sun loon , ab tak 4 baar sun chuka hoon .. ek baar aur sun leta hoon.. waah ji waah ..
dil se badhai aapko ..
dhanywad
बेहतरीन
ReplyDelete================
बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत उम्दा। गीत भी और आपकी रचना भी.
ReplyDeleteधन्यवाद.
अल्पना जी,
ReplyDeleteअपनी पसंद का गीत सुन रूह तृप्त हो गयी......'हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू.... आ...हा...हा...और उस पर .आपकी आवाज़ ...शुभानाल्लाह ....!!
उस पर आपकी ये रचना मौसम के अनुकूल अपने शब्द बिखेरती.....!!
'कूक रही कोकिल का ,
भाये गीत सुहाना .
क्रीडा मग्न भ्रमर पुष्प संग ,
कलियों का इठलाना .
लहरों का उठ गिरना,
तट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना'
आपकी अन्य कृतियोँ की तरह,ये भी बहुत अच्छी लगी अल्पना जी और खामोशी का ये गीत
ReplyDeleteमेरा भी सबसे प्रिय है --
you sang it very well.
कोमल शब्दों और सुंदर सामान्य काफ़ियों में एक मोहक रचना
ReplyDeleteअनगिन स्वप्नों का बुन जाना....वाली पंक्ति बहुत भायी
आडियो को सुनने का प्रयास भी बेकार है। जहाँ हूं, वहां से टिप्पणी भी कर पाना बड़ी बात है। नेट की स्पीड, पूछिये मत
फ़ोटो, कविता, गीत, आवाज सभी एक से एक बढिया।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
चित्र ही नहीं, जिन्दगी भी तो अंततः एक छलावा ही तो लगती है.
ReplyDeleteजिस तरह छलाव भरे चित्र मनमोहक और सुन्दर दिखते हैं वैसे ही अपने चारों और छलाव भरी जिन्दगी से ऐसे ही सुन्दर गीत प्रस्फुटित होते है.
बधाई सुन्दर और मनमोहक प्रस्तुति पर.
चन्द्र मोहन गुप्त
लहरों का उठ गिरना,
ReplyDeleteतट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना.
... अत्यंत प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति है,भाषा बेहद प्रभावशाली है।
अल्पना जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
मेरे ब्लाग पर आने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।आप ने लिखा है कि मैं संगीत का ग्याता हूँ,जी नही ऐसा हर्गिज नही है।मुझे बचपन से गाने का शौक है और इसी इच्छा ने मुझे कुछ थोडा़ बहुत सीखने की प्रेरणा दी।वकालत करते हुए बीच में दो-चार घंटे कालेज मे जाकर जितना सीख सकता था,बस वही सीख पाया हूँ।वास्तव में जितना समर्पण संगीत के लिये चाहिए उतना नहीं कर सका हूँ।आप भी बहुत ही अच्छा गाती हैं,कुछ अपने संगीत के बारे मे जरूर बतायें।आप की रचनायें भी स्तरीय हैं और मुझे बहुत खुशी है कि आप विदेश में रहकर भी अपनी भाषा भूली नहीं हैं और आप की आवाज़ का तो क्या कहना!एक समस्या है कि आपकी आवाज़ प्ले करने पर टुकडो़ में थोडी़ थोडी़ सुनाई देती है,डाउनलोड करने पर साफ़्ट्वेयर अप्डेट मांगता है पर साफ़्ट्वेयर अप्डेट नही हो पाता;कैसे आप के गाये गीत सुनूं आप ही बतायें..........प्लीज़.....।
आप ने अपनी आवाज़ में गीत पोस्ट करने के लिये लिखा है,अभी नेट पर नया हूँ अतः नही जानता कि कैसे आवाज़ संगीत सहित रिकार्ड कर ब्लाग पर डालूं। मेरे पास कराओके भी नही है जो फ़िल्मी गीत ही डाल सकूं पर आगे जरूर ऐसा करूंगा की मेरी आवाज़ आप सभी तक पहुंचे;मेरी भी ये इच्छा है।इस संबंध में यदि आप कुछ मदद करें तो शायद जल्दी हो सके।आप ये जानकारी मेरे ई-मेल या यहीं पर भेजें।धन्यवाद सहित...
-प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
तप्त भया शीतल मन,
ReplyDeleteघन बन मेह सरस बरसाना .
रीती नेह गगरिया ,
प्रियतम प्रेम सुधा भर जाना.
" नेह की पाती जैसे दिल मे उतरी जाती है , चित्र एक दम असधारण और रूमानी है .....एक दम मनमोहक...."गीत मेरा बेहद मनपसंद है .......ये है एक एहसास इसे रूह से महसूस करो......लाजवाब.."
regards
लहरों का उठ गिरना,
ReplyDeleteतट के पार कभी बह जाना.
अध मूंदी पलकों में ,
अनगिन स्वप्नों का बुन जाना.
तप्त भया शीतल मन,
घन बन मेह सरस बरसाना .
रीती नेह गगरिया ,
प्रियतम प्रेम सुधा भर जाना.
प्रेम संदेसा भेज रही हूँ ,
प्रियतम तुम आ जाना.
सावन के काले बादल संग,
पवन बसंती लाना..प्रियतम तुम आ जाना।
निर्मल ,शीतल ओर कोमल ह्रदय की मासूम सी अभिव्यक्ति !
ीऐसी रचना आप जेसी शब्द शिल्पी ही लिख सकती है ये प्रेम सन्देश ही तो जीवनदायी है बहुत बहुत बधाई इस सन्देश ने तो हमे भी बांध लिया
ReplyDeleteतप्त भया शीतल मन,
ReplyDeleteघन बन मेह सरस बरसाना .
रीती नेह गगरिया ,
प्रियतम प्रेम सुधा भर जाना
भावपूर्ण कविता ,संस्क्रृत-निष्ठ शब्दों के साथ देशी प्रयोग ..बहुत खूब .लगता ही नहीं आप वतन से दूर है .
आशा की डोर से बंधी आपकी रचनाएँ मन को एक अजीब सा सुख देती हैं।
ReplyDelete----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
तस्वीर भले ही छलावा हो.. मगर मेरे लिए तो यह विजुअल ट्रीट रही.. कविता इमोशनल ट्रीट और गीत ऑडियो ट्रीट.. आपका आभार
ReplyDeleteअल्पना जी कविता सच में आप बहुत ख़ूब लिखती है। ब्लागर जगत में मेरे मनपसंद लेखकों में से एक हैं आप। मगर आपके द्वारा गाया गीत नहीं सुन पा रहा हूं। प्ले करने पर प्ले नहीं होता।
ReplyDeleteतस्वीर भले ही छलावा हो किन्तु गीत और रचना दोनों ही अति सुन्दर है....
ReplyDeleteसुन्दर.. अच्छा लिखा है..
ReplyDeleteप्रियतम की चाहत सुन्दर शब्दों में..
~जयंत
बहुत समय के बाद आपकी कविता पढ़कर अच्छा लगा .आपकी कविता मन में सुखद अहसास भर देती है .कविताओं के संसार में ही सावन के साथ पवन बसंती आ सकती है .
ReplyDeletegeet aur rachan dono achchi lagi... thanks ...
ReplyDeletebahut hi sundar kavita ,madhur geet ,vismaykari chitr...adbhut!
ReplyDeleteआदरणीय अल्पना मैम,
ReplyDeleteआपकी कविता पढी .....बहुत ही अच्छी लगी......सूरज की गर्मी में ये कविता तरुवर की छायां जैसा प्रतीत हुआ.....
नेहा शेफाली
कविता तो लाजवाब है. हमारे पिताश्री का एक मनपसंद गीत था "प्रीतम आन मिलो" इसी गीत को गीता दत्त नेभी बाद में गया था. भावना तो कविता की और इस गीत के एक से हैं. "हमने देखी है" भी बड़ी अच्छी लगी.
ReplyDeleteदिल से जो आह निकलती है असर रखती है।
ReplyDelete----------
जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
Dear Alpana ji
ReplyDeleteKavita kya hai ...aisa lagta hai ki hriday khol ke bahar rakh diya hai...anubhootion ko shabdon mein pirona aur unka manbhawan jaal bun na aapki khaasiyat hai...ati uttam (ye shabd bhi chhote hain aapki kavita ki utkrisht ta ki tulna mein)...geet bhi karnpriya hai hamesh ki tarah...mera fav hai...badhayee hi badhayee...
Dr Sridhar Saxena
अल्पना जी ,
ReplyDeleteआपकी कविता उतनी ही मधुर लगी ...जितना सुन्दर ऊपर लगा फोटोग्राफ खासकर ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं
प्रेम संदेसा भेज रही हूँ ,
प्रियतम तुम आ जाना.
सावन के काले बादल संग,
पवन बसंती लाना..प्रियतम तुम आ जाना।
पूनम
आपके प्रोत्साहान के लिए धन्य वाद....!आपके गीत मैने सुने..और डाऊनलोड भी किये..!ये आपने अच्छी.. शुरुआत की है...
ReplyDeletefoto kavita dono ka javab nahi, narayan narayan
ReplyDeleteवाह अल्पना जी,आपकी आवाज तो बहुत ही सुंदर हैं ,बहुत अच्छा गाती हैं आप,मैंने पहली बार सुना ,पति स्नेह की भी बहुत ही मधुर और सुंदर हैं ,आपको बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteकूक रही कोकिल का ,
ReplyDeleteभाये गीत सुहाना .
क्रीडा मग्न भ्रमर पुष्प संग ,
कलियों का इठलाना .
ये वही एह्सास है, जिसके बारे में गुलज़ार नें क्या खूब कहा है,
सिर्फ़ एहसास है ये ,रूह से मेहसूस करो....
बहुत खूब कविता के बोल , और साथ ही बेहद श्रवणीय गीत आपकी मधुर आवाज़ में सुनवाने का शुक्रिया.
(८/१०)
क्या संयोग है, कि पिछले साल आज ही के दिन मैं युरोप में नॊर्थ पोल से करीब ११०० मील दूर थ, जिस जगह का नाम है नॊर्थ केप, जो युरोप का सबसे उत्तरी शीर्ष स्थान है,जहां तक ज़मीन है, और बाद में समुन्दर !!
मेरा स्वयम का अनुभव है, ये चित्र छलावा दिख ज़रूर रहा है, मगर असली और सत्य होना चाहिये, क्योंकि मेरे प्रवास के दौरान भी मैने चांद को काफ़ी बडा पाया था(इतना तो नही) वैसे इन दिनों सूर्य अस्त तो होता है, मगर मात्र दो से चार घंटे तक ही. प्रस्तुत चित्र शायद जुन के महिने का होना चाहिये, जब सूर्य अस्त ही नही होता और क्षितिज़ पर ही विचरण करता है.
बेहद खूबसूरत चित्र और यादे ताज़ा करने का शुक्रिया.
itne saare tippanikarta ke beech ab meri tippni ko bahut der ho gai..fir bhi javaab nahi aapki kavita aour aapki aawaaz ka..
ReplyDeletepahlibaar aawaaz suni sach me surili he aapki aawaaz, ishvar aapki aawaaz aour aapki lekhni sadev sur me rakhe ...aamin.
Mera pasandida geet aap ki awaaz mein suna...bahut achcha laga.Kavita bhi geet ki tarah madhur bhaav liye hue hai.
ReplyDeleteBadhayee!
-Anuradha
aap ki kavita padne par aisa lagta hai mano kano me koi sangeet gunj raha ho.
ReplyDeleteaapke kavita me bhi sangeet ki aawaz aati hai.
ReplyDelete