स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

March 24, 2009

अहसास-एक ग़ज़ल


मार्च ५,२००९ को यहाँ एक 'गंगा-जमुनी' मुशायरा हुआ था जिसमें तमाम यू.ऐ.ई से शायर आमंत्रित थे.

इस मुशायरे में पाकिस्तान और हिंदुस्तान के शायरों ने अपनी रचनाएँ पढीं.

मुझे भी इस मंच से पढने का मौका मिला.

सदर ऐ मुशैरा अजमल साहब और मुख्य अतिथि सलाहुद्दीन साहब
जो ग़ज़ल मैंने वहां पढ़ी थी..आप के समक्ष प्रस्तुत है.
इस ग़ज़ल पर मशहूर शायर अजमल नक्शबंदी साहब का आशीर्वाद है.इस ग़ज़ल का आखिरी शेर मैं उन्हीं को समर्पित करती हूँ.आप इस मुशायरे के सदर भी थे.आप की अब तक ग़ज़लों की १२ किताबें छप चुकी हैं.

अहसास
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जाने क्यूँ वक़्त के अहसास में ढल जाती हूँ,


जाने क्यूँ मैं अनजान डगर जाती हूँ.



टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,

गिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.



ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.



अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,

दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.



मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.



[-अल्पना वर्मा ]
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यह ग़ज़ल तरन्नुम में यहाँ सुनिए.[mp3]





अहसास-एक ग़ज़ल by Alpana


यहाँ से भी डाउनलोड करके सुन सकते हैं


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69 comments:

  1. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.


    ख़ूबसूरत ख़यालात को बहुत ही करीने से परोसा है आपने..

    बहुत खूब..

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन अंदाज़े बयाँ । अल्पना जी आपने तो कमाल ही कर दिया । दिल के जज़्बात आपने बेहतरीन लफ़्ज़ों में पिरोये हैं ।

    ReplyDelete
  3. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.



    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.


    WAH ALPANA JI , KHOOBSURAT GAZAL HAR SHER MUKAMMIL,SOCHA PAHLE COMMENT KAR DUN PHIR TARANNUM MEN SUNTA HUN. BAHUT KHOOB, MUJH UPROKT DONO SHER BAHUT PASAND AAYE.

    ReplyDelete
  4. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    अल्पना जी....बेमिसाल शेर है...मैं खडा हो कर तालियाँ बजा रहा हूँ...वाह...वा...काश उस मुशायरे का कोई वीडियो आप दिखा पातीं...
    नीरज

    ReplyDelete
  5. Anonymous3/24/2009

    टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,

    गिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.



    ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
    waah jaise alag alag ehsaason se gujre ho khubsurat sher,mushayere mein padhne ka awsar mila aapko iski bahut badhai.

    ReplyDelete
  6. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    ----
    बिल्कुल! जब हम कुछ क्रियेटिव करते हैं तो किसी अंश में बच्चे ही होते हैं।
    और कौन कहता है कि आपकी उम्र है बड़ी? फोटो से नहीं लगता।

    ReplyDelete
  7. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
    सुंदर गज़ल

    अभिनंदन अल्पना जी मेरे ब्लोग पर भी पधारें।

    http://razia786.wordpress.com
    http://raziamirza.blogspot.com

    ReplyDelete
  8. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
    सुंदर गज़ल

    अभिनंदन अल्पना जी मेरे ब्लोग पर भी पधारें।

    http://razia786.wordpress.com
    http://raziamirza.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    बहुत बढ़िया अल्पना जी ..

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर रचना है अल्‍पना जी। आभार इस प्रस्‍तुति के लिए।

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  11. अल्पना जी ,लाजवाब गजल । पढ़कर दिल खुश हुआ ।

    ReplyDelete
  12. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
    " khubsurt gazal......ye sher kahin dil ko chu gya or sacchai ke bhut karib le aaya..."

    Regards

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  13. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    अल्पना जी
    शायद उस दिन आपके शहर न आ कर मैंने बहुत कुछ मिस किया. इतनी लाजवाब ग़ज़ल वो भी आपको साक्षात् सुनने का मौका. बहुत की शानदार है यह ग़ज़ल और तरन्नुम में तो और भी बेहतरीन हो गयी है.
    बहुत ही सुन्दर

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  14. पहले तो गजल पढी। जोकि बहुत ही सुन्दर लफ्जों से लिखी गई है।

    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    ये शेर कुछ ज्यादा ही असर कर गया। फिर गजल सुनने के साथ दो गाने भी सुन लिए 'तेरे लिए पलको की....। कई बार सुना। ये गाना बहुत दिनों के बाद सुना दिल खुश हो गया। तीसरे गाने के बाद तो गाने आते ही नही।

    ReplyDelete
  15. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    बधाई हो अल्पना जी...

    पूर्व सूचना के ना होने से हमने तो आपके शहर में होते हुए आपको सुनने का मौका गवाँ दिया |
    एक छोटी सी गुज़ारिश है कृपया इस प्रकार के किसी भी कार्यक्रम की जानकारी एक छोटे से message के ज़रिए इस नंबर पर भेज दिया करें :- 0556178941
    इंतज़ार रहेगा

    ReplyDelete
  16. बहुत लाजवाब ग़ज़ल आभार.

    ReplyDelete
  17. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    प्रस्तुत कविता में जो सकारात्मक नज़रिया परिलक्षित हो रहा है, उस फलसफ़े का स्वागत है.
    साथ ही नायिका के अंतरमन की छुपी हुई पीडा को ज़माने से छुपाने का यत्न भी आपने बखूबी शब्दों के माध्यम से हम तक पहुंचाया है.

    मगर ये अंतिम पंक्ति नें एक मुख्तसर सी बात को क्या कह डाला कि हम सभी अपने अपने बचपन की वासंती यादों को जीने लग गये और ये दिल फ़िर से मचल उठा.

    साईट की तकनीकी कारण की वजह से ऒडियो नही सुन पाय नहीं तो उस माहौल के एम्बियेंस का और भी लुत्फ़ उठा लेते!!

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  18. Anonymous3/24/2009

    क्‍या खूब कहा है-
    ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ

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  19. Anonymous3/24/2009

    तरन्नुम सुनकर बहुत ही सुन्दर अनुभूति हुई. वह एहसास बयां नहीं कर सकते.

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  20. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    अल्पना जी इस शे'र के क्या कहने कितनी बड़ी बात कही है आपने सुभानाल्लाह ...इस तरह के शे'र कभी कभी ही पढने को मिलते है किसी किसी शाईर का और वो उस अपने एक शे'र से ही जाना जाने लगता है... हो सकता है ये वही शे'र हो आपके लिए... बहोत खूब कही आपने... ढेरो बधाई आपको..

    अर्श

    ReplyDelete
  21. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
    और
    अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
    और यह भी
    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.....
    बहुत सुन्दर .इन लाइनों की जितनी तारीफ की जाये कम है .
    और आपकी आवाज़ क्या कहना है ,कितनी तरन्नुम में आप ने मन से गाया है

    ReplyDelete
  22. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    बहुत खूबसूरत रचना और बहुत ही सधी हुई मधुर आवाज ने शमां बांध दिया. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  23. इस गजल के बाद आपकी खूबसूरत आवाज मे एक और गीत साज सहित बज रहा है " आजा साजना" तेरे लिये पलकों ....

    बेहद मीठी आवाज मे मंत्र मुग्ध कर रहा है..

    बहुत शुभकामनाएं...

    यहां आखिरी गाना सुनकर लौट रहा हूं आवाज तो कर्णप्रिय है ही. गानों का चुनाव बहुत ही लाजवाब है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  24. अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
    दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.

    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    अल्पना जी,

    आप तो हर विधा में पारंगत हैं ...नमन है आपको तो....ये दो अश्'आर अच्छे लगे....!!

    ReplyDelete
  25. तरन्नुम में खूबसूरत गजल की सिनर्जी के लिए वाह वाह -बधाई मुशायरे में शिरकत के लिए !

    ReplyDelete
  26. तेरे हरफ़ो के अर्थों में मुझे खो जाने दे...
    इक ज़रा मुझको खुद में ही खो जाने दे!!
    सामने बैठा भी नज़र ना आए तू मुझे
    ऐसी बात है तो मुझको ही चला जाने दे !!
    तेरी मर्ज़ी से आया तो हूँ अय मेरे खुदा
    अपनी मर्ज़ी से मुझे जीने दे,चला जाने दे!!
    आँख ही आँख से बातें दे करने दे तू मुझे
    साँस को साँस से जुड़ने दे उसे समाने दे!!
    मुझको मेरी ही कीमत ही नहींपता "गाफिल"
    इक तिरे सामने महफ़िल अपनी जमाने दे!!
    aapko sunkar raha naa gayaa....aur maine bhi kuchh kah diyaa..........!!

    ReplyDelete
  27. अल्पना जी ,
    वैसे तो पूरी गजल ही बहुत सुन्दर है लेकिन इन पंक्तियों की बात ही अलग है
    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
    बहुत बढ़िया .
    हेमंत कुमार

    ReplyDelete
  28. अल्पना जी
    अति उत्तम गजल
    बधाई
    ख़ास टूर पर मुझे ये शेर भला लगा...

    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    - vijay

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  29. टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,

    गिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.
    वाह अल्पना जी जबाब नही, बहुत ही सुंदर कविता, अति सुंदर भाव, ओर आवाज भी बहुत सुंदर.
    आप का धन्यवाद

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  30. बेहद सुन्दर गजल, पूरी पंक्तियाँ भावपूर्ण हैं।

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  31. अल्पना जी,
    मजा आ गया बेहद प्यारी ग़ज़ल,,,,

    एक गुजारिश है,,,,एक शब्द मेरी तरफ से दाल ले,,,

    जाने क्यों मैं "किसी" अनजान डगर जाती हूँ,,,,

    बस इतनी ही कमी लगी मुझे सो लिख दिया,,,
    "किसी " शब्द लेने से वजन पूरा हो जता है,,,,,बाकी आप देखे

    ReplyDelete
  32. याद करती हूं जो बचपन को तो मचल जाती हूं।

    बहुत सुंदर, हम भी बचपन के लिये मचल्ते है मगर क्या करें………………?

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  33. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    क्या कहूँ......लाजवाब !!! वाह !! वाह !! वाह !!

    रचना ने दिल को छू लिया....बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर....

    एक जगह केवल एक शब्द के लिए सुझाव देना चाहूंगी-

    "ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ."

    उपर्युक्त पंक्ति में "वक्त के सांचे में मैं,खुद ही 'ढल' जाती हूँ" यदि करें तो कैसा रहे ?????देखियेगा.

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  34. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,

    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
    .......khoobsurat gazal,khubsurat swar......aapke naam ko ek alag pahchaan deta hai

    ReplyDelete
  35. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.


    सुभान अल्लाह .ये तो हर दिल की आवाज है....




    मेरे दोस्त ने कुछ ऐसा ही एक बार कहा था की "उन खेतो में मेरा बचपन आज भी भीगता है "

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  36. हमारे यहाँ एक प्रदेश है 'मध्यप्रदेश 'उसमे एक नगर है 'गुना ' पहले हर साल आल इंडिया मुशायरा हुआ करता था वहां ,देश के प्रसिद्ध शायर पधारते थे ,भोर तक चलता था ,अब बंद है /फिर कुछ अरसा पहले तक एक उर्दू चेनल चलता थाउस पर हर शनिवार की रात मुशायरा दिखलाते थे .अब भी दिखलाते होंगे पता नहीं (क्योंकि आज सोचा तो आंसू भर आये ,मुद्दतें हो गई मुस्कराए /खैर ) शेर लिखा हुआ पढने और किसी के मुंह से सुनने में जमीन आसमान का अंतर होता है ,शेर तो सुन ने की ही चीज़ है साथ ही सुनाने की भी ;;क्योंकि किस शब्द पर जोर देना है किस शब्द को धीरे या जोर से बोलना है /वैसे एक बात और भी है शायर की मौत दो तरह से बतलाई है एक तो तब जब कोई जानकार शेर सुन कर चुप रह जाये और दूसरे तब जब कोई नाजानकर शेर सुन कर वाह वाह कह उठे
    वैसे श्रोता भी चार प्रकार के होते है कुछ शकल देख कर ,कुछ मधुर आवाज़ पर वाह वाह करते है कुछ शेर समझ कर और कुछ इसलिए कि और लोग भी वाह वाह कर रहे है /खैर मैंने शेर गजल सुन नी चाही तो कम्प्यूटर page can not bee found

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  37. aapki ghajal bahut achchi lagi post ke liye shukria

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  38. आपकी आवाज में ढ़ल तरन्नुम में तो और भी सुंदर हो उठी है गज़ल...
    बधाई

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  39. Anonymous3/27/2009

    Wah Ustadan Wah, kya khoob pesh ki hain....shubhan allah, Aapka chehra Aapki baate, Mushayre me ye jajbaaten....wallah wallah.

    maja maja aa gaya

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  40. Sarvapratham aapko badhai....is manch ka hissa banne ke liye....aapki gazal ke vishaye mein kya likhu...bus ek hi shabd hai... subhan allah

    ReplyDelete
  41. अल्‍पना जी देरी के लिए माफी चाहता हूं शब्‍दों की कमी पड रही है मेरे पास आपको कहने में बहुत बेहतरीन

    ReplyDelete
  42. Adarneeya Alpanaji,
    bahut achchhee gajal ko acchhe svaron men sunana kafee achchha laga.
    Poonam

    ReplyDelete
  43. Alpna ji,

    ek bar aapki gazal aapke swaron me fir se suni...mashaallah kya gatin hain aap ..maza aa gya...!!

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  44. जिंदगी की छुअन का एहसास कराती गजल।

    ----------
    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  45. Manasi Sharma3/28/2009

    Waah!Alpana ji,
    aap ki gazal bahut pasand aayi aur aap ne apne swar mein prastut kar ke dil khush kar diya!

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  46. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    waise to aapki har rachana achhi hoti hai, lekin is gazal ki bat hi kuchh aur hai.
    panktiyaan dil ko chhoo gayeen.


    khali panne.

    ReplyDelete
  47. pehle to behnal-akvami mushayre mei shirqat ke liye mubarakbaad qubool farmaaeiN.
    phir ..ek khoobsurat ghazal se t`aaruf karvaane ke liye shukriya
    Aur us par uss nayaab trannum ke liye ....bus...WAAH ! WAAH !!
    bachpan wala sher bahut paakiza aur sachcha hai...badhaaee.
    ---MUFLIS---

    ReplyDelete
  48. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    Was the best... Keep it up.

    ~Jayant

    ReplyDelete
  49. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  50. aap ki ghazal padh kar laga ki sunder shabd sunder bhav milkar veh sab kah sakte hain jo vaakyi kaehnk hota hai.
    navneet

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  51. Anonymous3/30/2009

    खूबसूरत....

    ReplyDelete
  52. अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,
    दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
    बहुत सुंदर ग़ज़ल है...
    दिल को छू गई...
    मीत

    ReplyDelete
  53. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
    यह शेर दिल को छू गया

    ReplyDelete
  54. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    Bahut hi sundar Ghajal. Badhai.

    ReplyDelete
  55. बहुत खूब कहा है आपने, एहसास का दरिया बह चला है।

    -----------
    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

    ReplyDelete
  56. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ

    wahhhhhhhhhh kya baat kahii hai..
    khoobsurat sher pe aapko dhero bandhaii....dilkash

    ReplyDelete
  57. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.
    क्या कहने....।

    ReplyDelete
  58. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
    वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.


    मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,
    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    बहुत खूब
    .
    बहुत दिनों बाद इधर आ पाया हूँ लेकिन आना सार्थक हो गया.इन हासिले-ग़ज़ल शेरों पर आपको हार्दिक बधाई.

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  59. artha purna ehasaas bahut achche lage..........!!!!!!!!!

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  60. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    Wow....wt a beautyful and Realistic Line....!!!
    Amazing...

    ReplyDelete
  61. मैंने माना कि मेरी उम्र बड़ी है लेकिन ,

    याद करती हूँ जो बचपन तो मचल जाती हूँ.

    wow...wt a beautyful and Realistic line...!!!
    Its amazing..

    ReplyDelete
  62. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.

    अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
    Bahutt hii khoob au rbahut hee umda ehsaas ...
    waqt k saath khud ko badal na jisne seekha ,, usne apni zindagi me ba-khoob jiya...waah Alpana ji waah

    ReplyDelete
  63. ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ....
    अपने हाथों में जो मेहंदी है रची उन के नाम,//
    दर्द के साए से मैं देख निकल जाती हूँ.
    Bahut hii khoob aur bahut umdaa.
    Badalte Waqt k saath jisne Jisne Sahi Se Jeena Seekh liya ,, usne ani zindagi ba-khoob jenaa seekh liya

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आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना