[ picture is taken by me at Atlantis,Dubai]
' सालों पहले लिखी एक रचना प्रस्तुत है-. उलझन --------- दायरों में अपने सिमटती बिखरी हूँ मैं, साये को अपने खटकती दिखती हूँ मैं, कौन हूँ मैं ?पूछती हूँ ख़ुद से जब भी, वजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं, खो गए जो पल, मिल के एक बार तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं. [अल्पना वर्मा द्वारा लिखित] |
आज सुना रही हूँ.'मन की उलझन 'लिए यह गीत लता जी का गाया 'ऐ दिले नादाँ 'यह एक मुश्किल गीत है-अगर ५० % भी गा पाई हूँ तो सफल समझूंगी.सुरों के पारखी गलतियों को माफ़ करीयेगा.
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[यह मूल गीत नहीं है.]
लाजवाब फ़ोटोग्राफ़, बहुत शुकुन दायक लगा.
ReplyDeleteखो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
मृग-मरीचिका सदृष्य इछ्छाओं का सुंदरतम चित्रण. शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सुंदर फोटो है...डूबते सूरज को बेहतरीन ढंग से कैद किया है...वाह...और आपकी पुरानी रचना भी कमाल की है...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar photo hai,hmm uljhane pichha kaha chodti hai,sundar kavita,aur geet to pasandida geton mein se ek hai,sach bahut difficult hai gana,magar bahut achha gaya hai.is geet mein unchayi, nichayi swar bahu hai aur har lafz ke saath swar badalta hai.bahut achhi peshkash.
ReplyDeletephoto jitni sundar hai.. utni hi khoobsurat rachna bhi hai...
ReplyDeleteढलते सूरज की तस्वीर मंन मे रंग भरगई. सुन्दर.
ReplyDeleteवजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,
खो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
अपने आप से सवाल करती और तलाशती एक बेहतरीन कविता. शायद हर इंसान अपने आप से यही सवाल कर रहा है और अपने आप को तलाश रहा है.
सुंदर गीत और आवाज़.
धन्यवाद
डूबते सूरज की तस्वीर आंखों मे समा गयी....
ReplyDeleteखो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
" गुजर गये जो पल कभी लौट कर नही आते मगर फ़िर भी हम न जाने क्यूँ उन्हें तलाश करते रहते हैं....जैसे तलाश करना हमारी जिन्दगी है ......सुंदर रचना.."
regards
वजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,...
ReplyDeleteअलग अलग भूमिकाओं को जीने की कशमकश में खुद तो गौण हो जाता है.
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति..
गीत को सुन नहीं पा रहा हूं, फ़िर से प्रयत्न करूंगा..
फोटो से लेकर गाने तक हर चीज सुन्दर ही सुन्दर हैं। सोचता हूँ एक काला टीका लगा दूँ आज की पोस्ट को।
ReplyDeleteकौन हूँ मैं ?पूछती हूँ ख़ुद से जब भी,
वजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,
खो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
अद्भुत।
@सुशील जी ,आप सब की शुभकामनायें साथ हों तो किसी 'टीके' की जरुरत ही नहीं!!!:)..sahi na??
ReplyDeletePost ki Tasweer par click karnegey to bigger size mein aa jayegi.
बेहद सुन्दर लिखा है ..यही तलाश जारी रहती है ता उम्र
ReplyDeleteखो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
कैमरे में तस्वीर...शब्दों में एहसास...अच्छे कैद किए हैं!
ReplyDeleteनयनाभिराम दृश्य और अच्छी कविता ,शुक्रिया !
ReplyDeleteपहले फोटो. ऐसे सीन तो हर कहीं मिल जाते हैं. लेकिन डूबते सूरज ने आसमान को जिस तरीके से रंगा है, वह अद्भुत है और इस क्षण को कैमरे में कैद करना भी. अब कविता की कहूँ, पढ़कर हमने कुछ वाक्य मन में चुन लिए. नीचे देखा रंजना जी ने टीप दिया वही का वही तलाश तो ख़त्म नहीं होती, उम्र बीत जाती है. अब आयें "ये दिले नादान" आवाज़ तो पहले से ही ठीक लगती थी. हमें गडबडी भी समझ में नहीं आई. बधाई. .
ReplyDeletephoto to sunder hai hi likha us se bhi sunder hai
ReplyDeleteआपकी बहुआयामी व्यक्तित्व का ब्लॉग जगत कायल होता जा रहा है !!!!!
ReplyDeleteकैमरे से सुन्दर चित्र के साथ साथ अच्छे भावों और एहसासों को भी कैद किया आपने !!!
बधाई!!!
कौन हूँ मैं ?पूछती हूँ ख़ुद से जब भी,
ReplyDeleteवजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,
...शाश्वत है यह क्रिया भी जीवन की ही तरह....बहुत सुंदर कविता.
बहुत ख़ूब, सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete------
गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम
तय करना कठिन है कि आप रचनाकार श्रेष्ठ हैं या कैमरा कलाकार।
ReplyDeleteसाधुवाद।
पहले भी मैं भटक चुकी हूँ,
ReplyDeleteअब तक भटक रही हूँ मैं।
कब तलाश ये पूरी होगी,
अब तक अटक रही हूँ मैं।
ना जाने कितनों के मन में,
अब तक खटक रही हूँ मैं।
गुलशन के भँवरों में फँस कर,
अब तक लटक रही हूँ मैं।
यादें पीछा नही छोड़तीं,
अब तक चटक रही हूँ मैं।
जुल्फों में जो महक बसी थी,
अब तक झटक रही हूँ मैं।
आपकी रचना और आपकी आवाज़.......
ReplyDeleteदोनों में जादू है......
सूरज वहां भी वैसे ही ढ़लता है जैसे गंगा किनारे।
ReplyDeleteपहले तस्वीर ,फ़िर रचना फ़िर गीत ,किस किसकी तारीफ करूँ पहले इसी पेशोपेश में हूँ ... आपकी आवाज़ मुझे कितना पसंद है आपको शायद नही पता ,निचे के स्वर परफेक्ट है आपके ..... दूसरी बधाई की आपने मेरी ग़ज़ल को आपनी आवाज़ दी आपका हार्दिक आभार इसके लिए .. बहोत ही सुंदर धुन बनाया है आपने .. आपको ढेरो बधाई....
ReplyDeleteआभार
अर्श
फोटो और रचना दोनों ही बहुत बढ़िया हैं अल्पना जी....
ReplyDeleteAlpanaji
ReplyDeleteSweet song with yr sweet voice.
Dhanyavaad.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
वजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता कही आप ने, दिल को छू गई, ओर इस कविता से ही मिलता जुलता ऊपर का चित्र, जेसे जाते जाते भी कुछ चाहता हो, जेसे बेमन से जा रहा हो, ओर फ़िर एक मधुर सी आवाज मै एक बहुत सुंदर गजल.
अब किस किस की तारीफ़ करे, बस कुछ यु ही कहेगे कि मन मोह लिया इन सब ने,
धन्यवाद
सहजता और सरलता से मन तक पहुंची कविता
ReplyDeleteखो गए जो पल, मिल के एक बार
ReplyDeleteतलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
बहुत सुंदर ...........
भटका हुवा एहसास, खोये हुवे लम्हों को बयान करती आपकी शशक्त रचना, अपने वजूद को अपने से बहार आ कर ही देखा जा सकता है, और आपके वजूद को तो हम आपकी रचनाओं, आपके मोहक चित्रों में देख ही लेते हैं. ढलती हुयी शाम को, छिपते हुवे सूरज को वो भी समुन्द्र में या "व्योम के उस पार" बेहद खूबसूरती से उतार है आपने.
आपका गीत लाजवाब है.........गीत की पसंद, आपकी आवाज दोनों में १००% तारतम्य है बहुत बहुत बधाई
तस्वीर .कविता .गीत .तीनो पूर्ण है...ओर कही न कही आपके बहुआयामी व्यक्तित्व की एक परिभाषा सी गढ़ते है ....सिर्फ़ शुक्रिया कहना गुस्ताखी होगा ....
ReplyDeleteकल एक गीत सुन रहा था ......लता जी का ही है..
ये दिल ओर उनकी निगाहों के साये ....मुझे घेर लेंगे ...बाहों के साये...
कभी इसे भी सुना दे.......
कौन हूँ मैं ?पूछती हूँ ख़ुद से जब भी,
ReplyDeleteवजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,
खो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
वाह जी वाह बेहतरीन कविता लेकिन एक बात का अफसोस है और ये उम्मीद आपसे तो कतई भी नहीं थी इतनी अच्छी रचना को सालों तक छिपाए रखा खैर देर आए दुरुस्त आए बहुत ही शुभकामनाएं अच्छा लिखें और ज्यादा लिखें ताकि हम गुड पर मक्खी की तरह बार बार बार बार हर बार आते रहें मेरी शुभकामनाएं
सुंदर रचना।
ReplyDeleteअल्पना जी बहुत सुंदर रचना है आपकी
ReplyDeleteखो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं
५०/० का तो पता नहीं लेकिन इतने मुश्किल गाने को गा लेना और ये गूंजती सी आवाज....कि उफ़्फ़
ReplyDeleteअर्श जी की गज़ल को जो आपने तरन्नुम में गाया है, उसके लिये बधाईयां. आपने उस मौलिक रचना के साथ एक मौलिक धुन बनाकर न्याय किया है.
ReplyDeleteआप भविष्य में भी ये करती रहें. आपके गाने भी सुन रहा हूं, सभी.
सुरमई अंखियों में और तेरी आंखों के सिवा बहुत कर्णप्रिय है. ए दिल ए नादां में मीठा अंजाज़े बयां मन को मोह रहा है. एक स्वर नीचे गायें तो और निखर सकता है.
Alpana ji
ReplyDeleteaap ki kaviata padh kar man kho gaya aapki kavita me...
खो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
Regards
खो गए जो पल, मिल के एक बार
ReplyDeleteतलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
जीवन में अक्सर ऐसा ही होता है जब हम रोजमर्रा के कामों से उकता जाते हैं तो जीवन को सरस बनाने के लिए गुजरे वक्त के मधुर लम्हों को याद करते हैं।
बहुत कुछ इस गीत की तरह....
"दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन........"
मन की उलझन का वर्णन बहुत अच्छा किया है आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद, मेरे ब्लॉग पर अपनी कृपादृष्टि डालने व अपनी टिप्पणी देने हेतु.
ReplyDeleteअस्तु, इसी बहाने आपकी लेखनी का आस्वाद लेने का अवसर मिला, यही क्या कम है !!
आपके द्वारा रखे गए कुछ दुर्लभ गीतों को, जिन्हे मैंने पहले नहीं सुना था, के रसास्वादन का भी अवसर मिला, इस हेतु पुनश्च आपको धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह प्राप्त होता रहेगा,
मणि दिवाकर.
Alpna ji, kis kis ki tarif karun...ek to aapki aawaz itani pyari...meri pasandida tasveer...aur fir ye kavita-
ReplyDeleteदायरों में अपने सिमटती बिखरी हूँ मैं,
साये को अपने खटकती दिखती हूँ मैं,
कौन हूँ मैं ?पूछती हूँ ख़ुद से जब भी,
वजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,
खो गए जो पल, मिल के एक बार
तलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.....ek vayaktitv me itane sare gun....??
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteखो गए जो पल, मिल के एक बार
ReplyDeleteतलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
bahu khoob...ati sundar..aabhar..
chitra aur shabd chitra donon bejod.kshama karen alpanaji abhi geet nahin sun saka takniki kharabi ke karan. is bar bhi aapki scenery ne dil chura liya hai.badhaai
ReplyDeleteरचना और आपके गीत-दोनों ही हमेशा की तरह भाये. तस्वीर भी बेहतरीन ली है.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश
संछिप्त और सहज पंक्तियाँ.अफ़सोस गीत सुन पाने की सुविधा नहीं है.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अल्पना जी
ReplyDeleteकविता भी बहुत अच्छी और आपकी मधुर आवाज़ भी
खो गए जो पल, मिल के एक बार
ReplyDeleteतलाश में उनकी, भटकती फिरती हूँ मैं.
कितनी तराशी हुई तलाश है अल्पना जी आपकी इस कविता में। बरसों पहले की बातें कभी कभी कितनी सहजता दे जाती हैं जीवन में।
बहुत सुंदर रचना .
ReplyDeleteबधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/
नमस्ते. आपकी इतनी सारी blog posts and comments देखके मैं घबरा गया था. फ़िर मैं एक एक कर के देखने लगा. और आपको जानने लगा. एकं मानिये आपको पड़ना बहोत ही खुस्नावर था. बहोत अच्छा लगा आपके blogs पर आके.
ReplyDeleteमैं कभी कभी हिन्दी में भी लिखता हूँ. वैसे मेरी हिन्दी उतनी अच्छी नही है, लेकिन मेरा कौशिश रहता है के मैं ठीक ठाक लिखूं...
अगर आप मेरे blog पर कभी आ सके और मेरे कवितायेँ देख सके तो मुझे बहोत अच्छा लगेगा... आपकी हर टिपण्णी ध्यान से पडूंगा और कौशिश करूँगा मेरे आने वाले लेखों में इस्तेमाल करूँ...
मेरा blog का link: Thus Wrote Tan! ...
bahut sundar rachna .
ReplyDeletechitr aur geet bhi manmohak.
-Vaishali
दायरों में अपने सिमटती बिखरी हूँ मैं,
ReplyDeleteसाये को अपने खटकती दिखती हूँ मैं,
कौन हूँ मैं ?पूछती हूँ ख़ुद से जब भी,
वजूद से अपने उलझती रहती हूँ मैं,
वाह -वाह बहुत खूब
...
बहुत बहुत धन्यवाद अल्पना जी. यह मेरा पहला संस्मरण हैं, और अगर देखा जाये तो आपकी प्रतिभा के समक्ष मैं कुछ भी नहीं हूँ, मैंने आपकी आवाज़ सुनी है. आप में बहुत प्रतिभा है. मैं बहुत ही खुश हूँ की यहाँ परित्ने सारे लोग हैं जो हिंदी पढ़ते है और उसका आनंद लेते है. मैं आजकल इंग्लैंड मैं रह रहा हूँ और मैं ऐसे लोगो से भी मिला हूँ जो अंग्रेजी मैं बात करना ज्याद श्र्येश्कर मानते है. मेरी हिंदी मैं कुछ ज्यादा पढाई नहीं हुई है पर मैं हिंदी भाषा से बहुत प्रेरित हूँ. मुझे भूषण और सुमित्रा नंदन पन्त जी की कविताएँ बहुत प्रिय हैं. आपकी टिपण्णी से मुझे और सहास मिला है और मैं प्रयतन करूंगा की मैं और अच्छा लिख सकूं
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