'बरसों बाद खुल के बरसा था बादल उस रोज...सुबह ,घर की छत से आसमान की यह तस्वीर ली थी..सूरज भी कुनमुना रहा था...बादलों के पीछे छुपा हुआ!'
बेनाम ग़ज़ल --------------- है चाहत, बस, लिखता है , घुटता ,बेनाम मिटता है. दर्द की इंतिहा हुई जब, हर ज़र्रा खुदा दिखता है . खुली आँखें,खामोश जुबान , जी! इन्साफ यहाँ बिकता है. भीड़ में लगता 'अपना सा', रोज़ आईने में मिलता है. जागती आंखों से सोने वालों , ख्वाब, छत से भी गिरता है. ---अल्पना वर्मा द्वारा लिखित -- ३१-१-२००९ को प्रसिद्ध गज़लकार आदरणीय श्री 'चन्द्रभान भरद्वाज जी 'ने मेरी इस ग़ज़ल को ग़ज़ल व्याकरण के अनुसार ,सुधार कर यह रूप दिया है और इस के लिए उन्हें धन्यवाद .मैं उन की आभारी हूँ.2222 222 पूरी गज़ल को इसी अरकान में बांधा है । है चाहत बस लिखता है; बेदम घुटता मिटता है। दर्द चरम पर पहुँचा तो, स्वयं खुदा सा दिखता है। आंख खुलीं खामोश ज़ुबां, न्याय यहाँ पर बिकता है। भीड़ में लगता अपना सा, आईने में मिलता है। खोल आंख सोने वालो, छत से भी ख्वाब उतरता है। |
अपना गाया Karaoke ]एक गीत भी सुनाती चलूँ---'चोरी चोरी जब नज़रें मिलीं'...फ़िल्म-'करीब' ]
भीड़ में लगता 'अपना सा',
ReplyDeleteरोज़ आईने में मिलता है
जागती आंखों से सोने वालों ,
ख्वाब, छत से भी गिरता है
बहुत पसंद आई यह .चित्र भी बहुत खूबसूरत लगा ....ख्वाब छत से भी गिरता है ..बेहद प्यारा लगा यह बिम्ब
दिल खुश हो गया जी यहाँ आकर। क्या नही है इस पोस्ट में,एक बेहतरीन फोटो,एक खूबसूरत लाजवाब गजल बहुत गहरे भाव लिए हुए पढने को मिल गई और इन्ही सब के बीच एक मीठी आवाज कानों में मिशरी घोलती हुई सुनने को मिल रही है। सच इधर से जाने का मन नही कर रहा एक गाना और बजने लगा सुरीली आवाज में। और हाँ जी क्या बात हमारे घर की घंटी नही बजाते आप कई दिनों से, ईमेल भी नही पता कि कारण पूछ लें।
ReplyDeleteजागती आंखों से सोने वालों ,
ख्वाब, छत से भी गिरता है
सच में।
अल्पना जी इस गजल और गीत के लिए मेरे पास शब्द नहीं है अत: कोई अच्छे से अच्छा और उससे भी अच्छा शब्द मुझे बताना
ReplyDeleteआपका आभार
बादलों की पीछे छुपे सूरज की किरणे यहाँ वहाँ से रास्ता तलाश कर अपनी रौशनी बिखेरने को बेकरार मनमोहक चित्र.....
ReplyDeleteदर्द की इंतिहा हुई जब,
हर ज़र्रा खुदा दिखता है
" ये कमबख्त दर्द है ही ऐसी चीज़ ....दर्द बढ़ता है तो जीने का मजा देता है....ये शेर अनायास ही कुछ हलचल बडा गया दिल की....खुबसुरत.."
Regards
बहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteभीड़ में लगता 'अपना सा',
ReplyDeleteरोज़ आईने में मिलता है
जागती आंखों से सोने वालों ,
ख्वाब, छत से भी गिरता है
बहुत सुन्दर बधाई
जागती आंखों से सोने वालों ,
ReplyDeleteख्वाब, छत से भी गिरता है
बहुत उम्दा गज़ल है।बधाई।
इस तथाकथित गज़ल को पढने पर लगता कि गज़लकारा को कोई दर्द नहीं है सिर्फ दूर से ही देखकर उसे महसूस किया है !
ReplyDeleteखुबसूरत तस्वीर,उम्दा ग़ज़ल,और मधुर संगीत.... कोई शब्द नही है प्रोत्साहित करने के लिए .... बस यही कहूँगा के ढेरो बधाई कुबूल करें....
ReplyDeleteअर्श
जागती आंखों से सोने वालों ,
ReplyDeleteख्वाब, छत से भी गिरता है.........
कितने नर्म से भाव.......
और आवाज़ और फोटो........सब बेजोड़ !
खूबसूरत और मनमोहक तस्वीर. एक बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद
अल्पना जी अच्छी रचना है आपकी लेकिन गीत नहीं सुन पाया क्योंकि स्पीकर महाराज कुछ नाराज़ हैं .....
ReplyDeleteजागती आंखों से सोने वालों ,
ReplyDeleteख्वाब, छत से भी गिरता है.
लाजवाब बहुत लाजवाब लिखा आपने. ऐसे चित्र सिर्फ़ कवि ही देख कर उतार सकता है. रचना और चित्र से आपने सशक्त भाव व्यक्त किये हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
Alpana ji Aapki rachana padi, bhaav achchhe hain katthya sunder hai lekin bahar men nahin hone ke karan yah doshpurn hai.Ghazal ko bahar men hona jaroori hai.Bahar men likhane ki koshish karen.Itne achchhe bhavon aur vichaaron ke liye badhai.
ReplyDeleteख्वाब, छत से भी गिरता है.सुंदर रचना. अब इस से ज्यादा हम कुछ लिख ही नहीं सकते. आभार.
ReplyDeleteचित्र ग़ज़ल गीत ...........सभी कुछ इतना बेहतरीन है मज़ा आ गया
ReplyDeleteग़ज़ल तो जैसे ज़िंदा बोल रही है..........हर शेर लाजवाब है, चाहे....... खुली आँखे खामोश जुबां, या फ़िर जागती आंखों से सोने वाले..............बिल्कुल मौलिक और नयी सोच दर्शाता है. आपका गीत भी खूब है, आपकी आवाज़ भी मधुर है, लगता है
दुबई में महफ़िल सजानी पढेगी,
पर ग़ज़ल आप की सुनानी पढेगी,
बेहद दिलकश फोटो !
ReplyDeleteप्रतियोगिता और प्रदर्शनी में भेजने योग्य !
गजल की इन पंक्तियों पर ठिठक गया :
जागती आंखों से सोने वालों ,
ख्वाब, छत से भी गिरता है.
गुलजार के बहुत करीब आती जा रही हैं आप)
बधाई और शुभकामनाएं !
जगती आंखो से सोने वाले ख़्वाब,
ReplyDeleteछत्त से भी गिरता है!
बहुत सुंदर बधाई....
दर्द की इंतिहा हुई जब,
ReplyDeleteहर ज़र्रा खुदा दिखता है .
-गजब!! बहुत गहरे वो भी छत से. वाह! बधाई.
अल्पना जी ,चोरी चोरी गीत बहुत अच्छा गया है आपने , बधाई ,आनंद आरहा है इसे सुनते हुए .
ReplyDeleteवाकई आपने मन से गया है .मै आपके प्रयास की सराहना करता हूँ
सदर
डॉ.भूपेन्द्र
आज तो कुछ कहने की ताब ही ना रही.........आपको सलाम्म्म्म्म्म्म्म!!
ReplyDeleteक्या सुन्दर कपलेट्स हैं।
ReplyDeleteप्रशंसनीय!
सुंदर्।
ReplyDeleteइतनी अच्छी रचना...मगर इसे आपने बेनाम गज़ल क्यों कहा है?
ReplyDeleteनीचे चंद्रभान जी की टिप्पणी भी गौर करने लायक है वैसे
भाव और विचार के श्रेष्ठ समन्वय से अभिव्यक्ति प्रखर हो गई है । बहुत अच्छा लिखा है आपने ।-
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत खूब अल्पना जी ...
ReplyDeleteस्नेह,
- लावण्या
दर्द की इंतिहा हुई जब,
ReplyDeleteहर ज़र्रा खुदा दिखता है .
भीड़ में लगता 'अपना सा',
रोज़ आईने में मिलता है.
ये दोनों शेर खास पसंद आये ...बिल्कुल जिंदगी से उठाये हुए ......गीत नही सुन पाया शाम को दुबारा कोशिश करूँगा ......
बसंत पंचमी की आप को हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteखुली आँखें,खामोश जुबान ,
ReplyDeleteजी! इन्साफ यहाँ बिकता है.
बहुत खूब अर्चना जी...आप लिखती बहुत अच्छा हैं हाँ ग़ज़ल के व्याकरण को अभी कुछ और समझना होगा.
आप का गाया गीत चोरी चोरी जब...कमाल का है...सुबह से चार पाँच बार सुन चुका हूँ....वाह...मजा आ गाया...यूँ ही गुनगुनाती रहें...
नीरज
ला जवाब ब्लॉग....उम्दा ग़ज़ल.....सुरीली आवाज़....बेहतरीन गीत....
ReplyDelete'खोल आंख सोने वालो,
ReplyDeleteछत से भी ख्वाब उतरता है।'
-सुंदर पंक्तियाँ.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletedard ki intha hui jab...............
ReplyDeletewah , bahut anubhavi hain aap. alpana ji, bemisaal chitra, aur madhur awaz men madhur geet
maine down load kiya aur poora suna.badhaiansweekaren.
जागती आंखों से सोने वालों ,
ReplyDeleteख्वाब, छत से भी गिरता है..
bahut sunadar ban padi he ye do line..
ab tak to chhappar faad kar pesa hi girta tha..shayad sahi ye he ki peso ki soorat me khvaab he.
है चाहत बस लिखता है;
ReplyDeleteबेदम घुटता मिटता है।
दर्द चरम पर पहुँचा तो,
स्वयं खुदा सा दिखता है।
आंख खुलीं खामोश ज़ुबां,
न्याय यहाँ पर बिकता है।
खूबसूरत शेर, बधाई।
खूबसूरत लिखा है आपने.. और बदलाव के बात तो और भी निखार आ गया है.. भावभरी रचना के लिये बधाई
ReplyDeleteभीड़ में लगता 'अपना सा',
ReplyDeleteरोज़ आईने में मिलता है.
जागती आंखों से सोने वालों ,
ख्वाब, छत से भी गिरता है.बहुत खूब.
किसी शायर ने कहा है बदलते वक्त का इक सिलसिला सा लगता है
कि जब भी देखो उसे दूसरा सा लगता है
दर्द चरम पर पहुँचा तो,
ReplyDeleteस्वयं खुदा सा दिखता है।
आंख खुलीं खामोश ज़ुबां,
न्याय यहाँ पर बिकता है।
बहुत khoob.
माननीय अल्पना जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन
आपके ब्लाग पर आकर सुंदर रचनाएं पढ़ी । क्यों न आप इन्हें प्रकाशन के लिए पत्र-पत्रिकाओं में भेंजे। यदि पत्रिकाओं के पते चाहती हों तो कृपया मेर ब्लाग पर पधारें आपकों पते के साथ-साथ समीक्षाएं भी मिल जाएंगी। आप इन सभी पत्रिकाओं में अपनी पसंद के अनुसार प्रकाशित कराने के लिए रचनाएं भेज सकती हैं।
अखिलेश शुक्ल
सपांदक कथा चक्र
http://katha-chakra.blogspot.com
adbhut rachna.photo bahut sundar laga aur aapki aawaz bhi.isi tarah apni rachnaye hum tak pahuchati rahe.dhanyawad.
ReplyDeleteअच्छी रचना। चंद्रभान जी कुंदन हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल है और श्री चन्द्र भान जी ने अपनी अनुभवी कलम से तो ठीक अरक़ान का जामा देकर इसे और भी खूबसूरत बना दिया। आपकी आवाज़ और चित्र भी क़ाबिले तारीफ़ हैं।
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल के लिए बहरो-वज़न का ख़्याल रखना ज़रूरी है। यह आलोचना नहीं है, केवल सुझाव है।
महावीर जी,
ReplyDeleteआप के सुझाव का धन्यवाद और अगर यह आलोचना भी होती तो सहर्ष स्वीकार है.
आलोचना से भी तो हम सीखते ही हैं.
आभार.
vakai bahut sundar hai.
ReplyDeleteखुली आँखें,खामोश जुबान,
ReplyDeleteजी! इन्साफ यहाँ बिकता है.
भीड़ में लगता 'अपना सा',
रोज़ आईने में मिलता है.
वाह क्या बात है, आप ने तो आज की सच्चाई ही लिखदी अपनी इस कविता मै, बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद.
अल्पना जी पता नही केसे आप की यह कविता मेरी आंखॊ से निकल गई, आज भी दस बार आया आप के ब्लोग पर ओर अब अन्त मै मेरी नजर पडी, माफ़ी चाहता हुं सब से अन्त मै आने के लिये.
फ़िर से धन्यवाद
... बहुत ही शानदार गजल है, सुधार के पूर्व व पश्चात दोनो ही स्थिति मे प्रसंशनीय है।
ReplyDeleteअल्पना, जितना खुबसूरत ये गीत है उतनी ही खुबसूरती से आपने गाया है। ये फिल्म भी मुझे बहुत पसंद आयी थी।
ReplyDeleteजागती आंखों वाली लाईन कमाल की है
खुबसूरत गीत और आपने गया भी बहुत अच्छे से है. सुन्दर.
ReplyDeleteधन्यवाद
दर्द चरम पर पहुँचा तो,
ReplyDeleteस्वयं खुदा सा दिखता है।
आंख खुलीं खामोश ज़ुबां,
न्याय यहाँ पर बिकता है।
घुटता बेनाम मिटता है में वास्तव में लय नहीं बनती =बेदम घुटता मिटता है शब्दों से ही लय बनती है / लिखना एक अलग विधा है लयबद्ध करना अलग है /रचनाकार के मस्तिस्क में जिस गति और जिस क्रम से विचार आते है उसी क्रम से लिपिबद्ध होते चले जाते है जो स्वाभाविक है ,लय और तुकबंदी के चक्कर में जब वास्तविकता का हनन देखा गया तभी अतुकांत का विचार साहित्य में आया / लयबद्ध करने के लिए भलेही संशोधन किया गया हो किंतु जो बात ऊपर वाली रचना में है वह संशोधित में नही आ पाई है /आईने में मिलता है की जगह रोज़ आईने में मिलता है में ज़्यादा वज़न और वास्तविकता है /आँख खुली की जगह खुली आँख ज़्यादा सटीक है /न्याय यहाँ पर बिकता है ऐसा लगा जैसे किसी ने भाषण दिया हो या आलोचना की हो या अपने दिल का गुबार निकला हो किंतु =जी का लगाया जाना =जी ! इंसाफ यहाँ बिकता है की बात ही कुछ और हो गई /कोई कवि कविता सुनते वक्त मंच पर जब +जी ! शब्द पर ज़ोर देकर शेर पढेगा तो ज़्यादा वाहवाही प्राप्त करेगा /ऐसा मेरा विचार है अन्य पाठक या ब्लोगर का सहमत होना आवश्यक नही है
ReplyDeleteक्या बात है अल्पना...वाह!
ReplyDeleteजाने कैसे आपका ब्लाग अब तक नहीं देखा था। कोई बात नहीं, देर आये दुरुस्त आये वाली कहावत चरितार्थ हुई।
शुक्रिया! बेह्तरीन साम्ग्री के लिये।
ReplyDeleteध्वनि में जादू……
ReplyDeleteसुंदर गजल के लिए शुभकामनाएं। आपकी आवाज में गीत भी सुना। वह भी बहुत पंसद आया। धन्यवाद।
ReplyDeletebahut hi khubsurat gazal aafrin
ReplyDeleteattifaq se hi
ReplyDeleteyuN to is gali
aa gaye hai hum
fir kyu jane ka
karta nahi man
kashish hai koi
ya jadugarii hai
kuch to hai yahan
jo baten chalii hai..
aapko padhke nirash nahi hona padaa
yakinan kabil-e-tariif
alpna ji,
ReplyDeleteaapka andaaje-bayan kabile-taareef hai.