पहले जब स्कूल में नौकरी करती थी तो ८ periods कक्षा लेने के बाद ऐसा लगता था कि
बस अब बोलने का क्रेडिट सब ख़तम हो गया.कुछ दिन मौन व्रत रखने की इच्छा होती थी..
अब यह आलम है कि -
शब्दों का गणित
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आज ..
दिन के खाते में जमा हुए सिर्फ़ चार...
कल तो छह हो पाए थे!
कोई ब्याज नहीं मिलता इस पर..
फिर भी चाहती हूँ..
ये जमापूंजी कुछ और बढे!
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पुरानी फ़िल्म का एक गीत प्रस्तुत है..[मेरी आवाज़ में ]
'मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज़ न दो '
[यह मूल गीत नहीं है]आशा है पसंद आएगा.
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गाना तो नही सुन पाऊँगा.. हालाँकि चाहता मैं भी यही हू की "ये जमापूंजी कुछ और बढे!"
ReplyDeleteकोई ब्याज नहीं मिलता इस पर..
ReplyDeleteफिर भी चाहती हूँ..
ये जमापूंजी कुछ और बढे!
waah bahut khub,dua hai ye jamapunji yuhi narantar badhati rahe,geet bhi atisundar
अल्पना जी ये गाना मैं हमेशा सुनता हूं अच्छा खासा कलेक्शन है मेरे पास मगर आज ये गाना सुनकर कुछ ज्यादा ही बेताबी बढ गई है कि मुझे ये गाना इसी आवाज में आपसे लेना चाहिए एक बात और पूछूंगा कि ये आवाज क्या आपही की है बहुत खुबसूरत दिल खुश हो गया बहुत बहुत धन्यवाद इसे सुनवाने के लिए
ReplyDeleteआज ..
ReplyDeleteदिन के खाते में जमा हुए सिर्फ़ चार...
कल तो छह हो पाए थे!
कोई ब्याज नहीं मिलता इस पर..
फिर भी चाहती हूँ..
ये जमापूंजी कुछ और बढे!
बहुत खूब!...किस्मत वाली है कुछ तो जमा पूंजी है आपके पास ......रजिया सुलतान का कोई गीत अपनी आवाज में गर सुनवा दे ??????????????????????
आशा है पसंद आएगा.
ReplyDelete------
निश्चित ही, आवाज बहुत पसन्द आई।
मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज़ न दो...
ReplyDeleteबहोत ही सुंदर गीत है और आपने अपनी मखमली आवाज़ में बहोत ही सुन्दरता से आप हक़ अदा किया है ...
ये गीत बहोत पसंद आई
आपको बहोत बधाई..
alpanaji
ReplyDeletebahut hi madhur avaaj hai aapki. geet to madhur hai hi aapne bahut sundar gaya hai.
धन्यवाद मेरी पंसद के गीत सुनाने के लिये. बहुत ही मधुर आवाज है आप की
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteआप सभी गुणीजनों का धन्यवाद कि आप को गीत और कविता पसंद आए.
ReplyDelete@मोहन जी आवाज़ मेरी ही है आप दिए गए लिंक से इस गीत को सेव कर सकतेहैं चाहें तो मैं ईमेल कर दूंगी--आप के collection में देना मेरी खुश नसीबी होगी.लता जी का यह गीत इंटर नेट पर ऑडियो कहीं नहीं मिला सिर्फ youtube mein विडियो मिली थी-वहीँ से सीखा था-कुमकुम पर picturise
किया गया था.बोल भी मुकेश जी के गीत से फर्क हैं.
@अनुराग जी मैं आप की बात को ध्यान में रखूंगी.
आधुिनक जीवन की िवसंगितयों को आपने बहुंत प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है ।
ReplyDeleteएक अच्छा प्रयास..सुर कहीं कहीं नहीं लग रहे थे जिसपे और मेहनत करने की ज़रूरत है..बाकी ताल और पूर्ण गाने को मैं 7/10 दूँगा | आप मेरे गानों को भी मेरे ब्लॉग से डाउनलोड कर सकती हैं और उसपर टिपण्णी कर सकती हैं..मैं आभारी रहूँगा..
ReplyDeletenice one mam
ReplyDeleteइतने अच्छे ब्लॉग के बारे में मुझे आज ही पता चला, और संगीत की इस महफिल में आकर मन प्रसन्न हो गया। आपकी अपनी आवाज में ये गीत सुनकर अच्छा लगा, व्यक्तिगत प्रयास सराहनीय होता ही है और आपने इसके लिए काफी मेहनत भी की होगी।
ReplyDeleteये जमापूंजी कुछ और बढे!
बहुत खूबसूरत आवाज ! कविता भी गहरी अभिव्यक्ति वाली ही ! धन्यवाद !
ReplyDeleteआज ..
ReplyDeleteदिन के खाते में जमा हुए सिर्फ़ चार...
कल तो छह हो पाए थे!
कोई ब्याज नहीं मिलता इस पर..
फिर भी चाहती हूँ..
ये जमापूंजी कुछ और बढे !
सुन्दरतम शब्द रचना ! आवाज में बड़ी कशिश है ! शुभकामनाएं
आपकी आवाज़ बहोत मीठी है,ठीक है कहीं कहीं सुर बिल्कुल फ्लेटहो जाता है मगर आप अपनी आवाज़ पे जब टूट के निचे आती है तो वहां पे आपकी आवाज़ बहोत ही मीठी लगाती है ,जैसे जब आप दूसरी दफा कटी है आवाज़ न दो .. आवाज़ न दो...
ReplyDeleteआपको ढेरो बधाई ...
"अब तलक थरथराता है 'खुर्शीद '
ReplyDeleteसामने तेरे आ गया होगा."
इस मधुर स्वर को सुनकर सुख हुआ. मैंने ही नहीं, पूरे परिवार ने सुना.
"अजीब लुत्फ़ है तेरे गुनगुनाने में
सदियाँ लगेंगी तुम्हें भुलाने में ."
अजीब लुत्फ़ है तेरे गुनगुनाने में
ReplyDeleteसदियाँ लगेंगी तुम्हें भुलाने में ."
Himanshu ji..
aap ki in panktiyon ko padh kar aankh nam ho gayeen--
'main itni taarif ke qabil nahin -
aap sabhi ne apna qimati samay diya is ke le liye shukriya--
--arrey Arsh-aur Prateek..aisey na aankalan karen---main koi singer nahin hun-na hi banNey ki chaah hai-aisa laga ki thoda gunguna sakti hun to aap sab ke beeech mein share karne chali aayi..safe hai na--pasand naa ane par yahan blog par koi 'andey tamatar' to nahin phenkega kam se kam!
thnks a lot again
awashy baDhegii...
ReplyDeleteजमा पूँजी कुछ और बढे -मैं इस गहराई में उतर नहीं पाया -सोचा टिप्पणी पढूं ताकि कुछ कविता की गहराई का पता चले टिप्पणियों से भी सहारा नहीं मिलपाया=बहुत दिमाग लगाया माफ़ करना में सोच नहीं पारहा हूँ की इस कविता की गहराई क्या है जरा सा भी लिकं मिल जाता तो सोचता =जहाँ तक गाने का सवाल है में किराये के कैफे पर बैठा हूँ दुर्भाग्य से नही सुन पारहा हूँ जबकि रात सोने से पहले यही प्रार्थना नीद आने तक करता रहता हूँ कि जिसकी आवाज़ रुलादे मुझे वो साज़ न दो मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो =सुनूंगा जरूर
ReplyDeleteअल्पना वर्माजी
ReplyDeleteआपकी आवाज अच्छी लगी॥॥॥॥
गुन गुनाते रहे गाते रहे,
ससार मे यू ही प्यार बाटते रहे।
समय निकाल कर मेरे ब्लोग पर पधारे।
HEY PRABHU YEH TERA PATH
बहुत सुंदर लगी कविता भी और इसकी व्याख्या भी ....तुम्हारी आवाज़ का जादू मन तो मोह ही लेता है ...सुंदर
ReplyDeleteकोई ब्याज नहीं मिलता इस पर..
ReplyDeleteफिर भी चाहती हूँ..
ये जमापूंजी कुछ और बढे!
" these words carry deep secret inbetween, without getting interest who wanna earn any thing, but your thoughts expressed in these words are very unique and amezing... loved it"
well you always like and apprecaite my collection of heart shape gems, and your liking always encourages me to present more and more unique and beautiful hearts on my blog ha ha ha ha pls keep on loving them as it is a motivating factor for me.
Regards
seema
अच्छी आवाज !
ReplyDeleteरचना बनी है अच्छी आवाज भी है बेहतर।
ReplyDeleteरह रह के गुनगुनाऊँ है चाह दिल के अन्दर।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
Saty kathan Alpana jee shabdon ka gaNit hee to hai har samt. Bahut khoob baat hai.
ReplyDeleteआपका शौक अच्छा लगा आवाज़ भी अच्छी है। और रियाज़ करेंगी तो आवाज़ में निख़ार आएगा।
ReplyDeletebehad sunder bhawanaon ki kavita jo yathartha ko sahi sahi chitrit karti hai, meri badhai aur shubhkamnayen
ReplyDeletedr.bhoopendra
कवितायें बहुत अच्छी लगीं | आवाज में इतनी मिठास , इतना दर्द है , ऐसे लगता है जैसे सामने बैठे महसूस कर रहें हैं |
ReplyDeleteअल्पना जी सबसे पहले तो मैं माफी चाहता हूँ की
ReplyDeleteआपकी पुरानी पोस्ट के बारे में कुछ कह रहा हूँ !
मैं कुछ नए की तलाश में आया था ! लेबल लिस्ट
में "शब्दों का गणित" कुछ अजीब सा शीर्षक पढ़कर
'क्लिक' कर दिया !
[पहले मै आपको यह बता दूँ कि आपके ब्लॉग में
कुछ भी पढ़ना सम्भव नहीं हो पा रहा है, सब 'ब्लैक'
नजर आ रहा है ! कविता को भी 'कर्सर' से 'सेलेक्ट'
करके पढ़ना पड़ा ! ]
हाँ तो मैं आपकी कविता के बारे में बात कर रहा था .........मैंने ऊपर सबके कमेन्ट पढ़े !
बड़ा आश्चर्य होता है कि लोग 'पोस्ट' पर बात
नहीं करते ! मुझे यह कविता बहुत ही अनोखी,
आकर्षक, और गूढार्थ समेटे हुए लगी ! पता नहीं
कितनी बार पढ़ा, अब तो डायरी में भी 'नोट'
कर ली !
मुझे लगता है कि मैं इस कविता पर पूरी एक किताब
लिख सकता हूँ ! कह नहीं सकता कि इस कविता को
लिखते हुए आपके मन में क्या भाव रहे होंगे लेकिन
मेरे मन में अनेक द्वंद उभर रहे हैं ! पारिवारिक विखंडन,
रिश्तों के मध्य बढ़ती दूरियां,रिश्तों में कम होती समरसता,
परस्पर संवाद का अभाव जैसी कुछ बातें नजर आती हैं
आपकी इस कविता में ! आज के दौर में मैंने ऐसे कई
परिवार देखे हैं जहाँ पति-पत्नी या पिता-पुत्र के बीच महीनों
कोई बात-चीत नहीं होती !शब्दों का महत्त्व आधुनिक समय
में लोग भूलते जा रहे हैं !
शायद ज्यादा कुछ लिख गया .........
(मेरे कमेन्ट पता नहीं कैसे इतने लंबे हो जाते हैं)
आख़िर में इतना अवश्य कहूँगा कि मेरी नजरों में
यह कविता विशेष महत्त्व वाली कविता है' !
कविता का साहित्यिक मूल्यांकन तो नामवर जैसे
दिग्गज ही कर सकते हैं !
मैं एक बात पूछना भूल गया .......
ReplyDeleteक्या आपने अपनी आवाज में
कोई गजल भी 'रिकार्ड' की है ?
एक बार फिर क्षमा प्रार्थी हूँ !
ReplyDeleteमैं कल ठीक से देख नहीं पाया था .....
आपने तो पहले से ही कविता का अभिप्राय
स्पष्ट कर दिया है ऊपर की पोस्ट में !
आज आपका ब्लॉग एकदम सही हो गया ....
कल शायद मेरा कंप्यूटर ही गड़बड़ था !
लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि कविता के सम्बन्ध
में मेरी समझ ठीक ही थी !