कल मैंने एक कविता पोस्ट की थी'शब्दों का गणित' उस पर ब्रिज मोहन श्रीवास्तव जी की टिप्पणी में किए प्रश्न ने मुझे विवश किया कि उस की व्याख्या टिप्पणी में न दे कर एक पोस्ट में दूँ.
आप ने कहा--'बहुत दिमाग लगाया माफ़ करना में सोच नहीं पारहा हूँ की इस कविता की गहराई क्या है जरा सा भी लिकं मिल जाता तो सोचता''
इस का उत्तर दे रही हूँ-आशा है आप की शंका का समाधान हो जाएगा--इन चंद पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार है--
यह उन शब्दों के गणित की बात हो रही है--जिनसे हम रोज़ आपस में संवाद करते हैं -सुनते हैं या कहते हैं -
उन में वे शब्द जो अर्थपूर्ण होते हैं--जिनसे हमें कुछ सीखने को मिलता है--जो हमें आत्म विश्वास देते हैं.
वे शब्द जो हमारा महत्व बताते हैं दूसरे के लिए ही नहीं हमारे अपने लिए भी..
ये वो शब्द हैं जिनसे उर्जा मिलती है--सकारात्मक सोचने में मदद करते हैं..
वे शब्द जो हमें कुछ नयी सीख देते हैं--दिशा देते हैं--
पहले जब बहुत बोल कर- व्याख्यान दे कर 'एक स्थिति में दिमाग सोचना भी बंद कर देता था-
तो लगता था शायद मौन रह कर यह उर्जा वापस मिल सकती है-
लेकिन अब जब मौन की अवधि कुछ ऐसी हो गयी है--जो यह समझा गयी--
कि शब्दों की क्या महत्ता है- इस लिए इन शब्दों का जमा करते हैं--
हर दिन में आप को कितने ऐसे शब्द मिल पाते हैं ?
अगर कभी मिले तो yah उन्हीं चुने हुए शब्दों की
जमा पूंजी है.--इस के अलावा इस बात की दूसरी व्याख्या इस तरह से से भी की जा सकती है -
आधुनिक जीवन की भाग दौड़ में हम संबंधों में आपसी संवाद की भूमिका को भूल गए हैं-
मशीनी जीवन में ऐसा अक्सर होता है की पति पत्नी दोनों में पूरे दिन एक शब्द बात भी न हुई हो--या फिर
एक दूसरे को देखा भी न हो--[जैसा अक्सर शिफ्ट duties वाले दम्पतियों में होता है--]
यहाँ भी देश से दूर --रहने वालों कई परिवारों में देखा है--कि सारा दिन आपस में कोई बात-चीत नहीं होती-
लेकिन फिर भी दिन अपने नियम से गुजरता रहता है
अजीब लगा सुन कर??नहीं कुछ अजीब नहीं है--
मैं ने देखा है --सारे दिन में बात होती है--
उदहारण :-
सुबह--
नाश्ता??
शाम--
चाय?
रात--
खाना क्या बनेगा?
इतनी बात --इस से ज्यादा नहीं--
किसी के पास फुर्सत नहीं है--'संवाद' शब्द बन कर रह गए हैं--उँगलियों पर गिने जा सकतेहैं!
ये तो हाल है जहाँ नौकर नहीं हैं--जहाँ नौकर हैं वहां तो शायद इतनी भी बात न होती हो?
ऐसे में इन चंद शब्दों की कितनी अहमियत होगी ये तो भुक्तभोगी ही बता सकतेहैं-क्यूँ की इन्हीं शब्दों के उत्तर
अगले दिन की वार्तालाप का आधार होते हैं--जीने की कुछ उर्जा देते हैं-
>यह स्थिति है आधुनिकता की देन -- जो बढ़ा जाती है जीवन में शब्दों की अहमियत!
इसीलिये करना पड़ता है शब्दों का गणित और रखना पड़ता है हिसाब!
अब सोचिये आज के दिन के खाते में आप कितने शब्द जमा कर पाए?
बहोत ही सार्थक - शब्दों का गणित - शंका और समाधान
ReplyDeleteसच्ची बात कही आपने ....
bahut gehrai se jeevan shaabd ka arth sunaya hai bahut sundar
ReplyDeleteकविता की कुंजी (made easy)?
ReplyDeleteबड़ी दार्शनिक व्याख्या की आपने। शब्द ब्रह्म है इसे साबित करता हुआ, उसकी महत्ता स्थापित करता हुआ।
ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteमैं जीतेंद्र जी से सहमत हूं...
बिलकुल सटीक लिखा है आप ने,
ReplyDeleteधन्यवाद
nice post
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आपकी वो पोस्ट मैंने भी पढी थी ! मुझे नही लगता की उस बात को ज्यादा कुछ महत्त्व दिया जाना चाहिए ! आपकी अपनी सोच है और आपके पाठको की अपनी सोच है ! जरुरी नही की सब हर बात को उसी नजरिये से देखे जिससे लेखक देखता है ! स्वाभाविक रूप से एक मत नही हुआ जा सकता ! और कई बार तो लेखक जो कहना चाहता है , बिल्कुल उससे उलटा ही अर्थ टिपणीकार निकाल कर फैसला कर चुके होते हैं !
ReplyDeleteआपने जो आज की पोस्ट लिखी है उसको पढ़ कर मुझे तो आचार्य रजनीश की याद आ गई ! उनसे बड़ा तर्क और दर्शन का जादूगर मेरी निगाह में अभी कोई दूसरा नही है ! आपके लेखन में वो झलक दिखाई दे रही है मुझे तो ! मैं तो सिर्फ़ पढता रहा ! पढता रहा ! और पढता रहा ! बहुत शुभकामनाएं !
bouth he aacha uupyog kiyaa aapne ganit ka keep it up
ReplyDeletevisit my site shyari,recipes,jokes and much more vice plz
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आपकी स्वयं की विवेचना ने कविता के महत्व को बढा दिया है। आत्मालोचन का इतना अच्छा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है।
ReplyDeleteबिलकुल सटीक एवं सार्थक विवेचन
ReplyDeleteबहुत सही बात लिखी है आपने...आज के इस आपा धापी भरे जीवन में शब्द खोते जा रहे हैं और इनके बिना दिल की दूरियां भी बढ़ रही हैं...संवाद हीनता न केवल अकेला पन बढाती है बल्कि हमें घोर अवसाद में भी धकेल देती है...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुंदर तरीक सी आपने स्पष्ट कर दिया है ... बहुत बढिया
ReplyDeleteब्रिज साहब को मैं बड़ा याद कर रहा हूँ कहाँ हैं? उनके प्रश्न ही निराले हैं!
ReplyDeleteमाफी चाहूँगा पर मुझे लगता है कि प्रश्नकर्ता का प्रश्न करने का उद्देस सार्थक हुआ |
ReplyDeleteशायद उस प्रश्न ने आपको बाध्या किया कि आप शब्द गणित को भूल अपनी भावना को
खुल कर सभी तक पहुचा सके |
और शायद इसी बहाने शब्द गणित को सार्थकता और प्रचुरता के संगम मे गोता लगाने
का अवसर भी मिला |
दर असल मैं भी यही जानने के लिए बेताब था कि
"ये जमापूंजी कुछ और बढे! "
व्याख्या बहुत ही सरल और बहुत सारा भाव समेटे हुए है |
बहुत ही सही व्याख्या है |
मुझे लगता है कि मुझे भी माकूल जवाब मिल गया है ||
@ Tapashwini--dhnywaad aap ka jo aap ne is vyakhya ne aap ke doubts ko bhi clear kar diya...blog mein likha hai is liye simit karna pada--nahin to yah exaplination aur lambi ho sakti thi--:D--hee hee hee]--jo bahut boring ho jaati--
ReplyDelete@Tau ji...main ne kabhi bhi aacharya Rajnish ji ko nahin padha na hi bahut se dharmik granth padhey lekin aap ki baat sun kar unhen padhney ki ichcha hui hai.
-jinhone prashn puchcha tha wo shayad cafe-net suvidha ke hisaab se log in kartey hain abhi un ke reaction ka aana baqi hai--
i didnt read the post clarification of vich u gave here but heard ur song liked it a lot
ReplyDeleteThx and Regards
बढ़िया लिखा
ReplyDeletehaan kuch shabd jarror bar gaye, raat ke khane me kuch bhi chalega,
ReplyDeletevyakhya sahi samjhayi
'लेकिन अब जब मौन की अवधि कुछ ऐसी हो गयी है--जो यह समझा गयी--
ReplyDeleteकि शब्दों की क्या महत्ता है- इस लिए इन शब्दों का जमा करते हैं--'' सही कहा आपने .
मैंने आज ही आज ही आप के ब्लॉग को देखा .ब्योम केपार पसंद आया .कुछ पंक्तियाँ ब्योम पर याद आ गयीं -ब्योम के उर में अगाध भरा हुआ है जो अँधेरा ,और जिसने विश्व को दो बार क्या सौ बार घेरा ,उस तिमिर का नाश करने के लिए मैं ज्वलित कण हूँ .........| आशा है आप से सर्वदा कुछ अच्छा पढने को मिला करेगा .
वाह
ReplyDeleteज़िंदगी के यथार्थ से परिचय कराया.
अद्भुत व्याख्या और अभिव्यक्ति.
Bahut badhiya vyaakhya kar dee alpana jee aapne apnee pichlee baat kee. bazaroorat. tathyaparak kathya hai aapkaa. badhai.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट के साथ ही आपकी टिप्पणियॉं भी मन से लिखी होती हैं, यह बडी बात है।
ReplyDeletebahut sundar hai.
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण...सटीक विचार.
ReplyDelete========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
इतने सुंदर व्याख्यान ने कविता को अविस्मरनीय बना दिया
ReplyDeleteBrij ji ka jawab aaya -
ReplyDeleteBrijmohanShrivastava said...
आपको और प्रदीप जी को मुबारक बाद /मैं अहसानमंद हूँ जो आपने मेरे मामूली से प्रश्न का एक पोस्ट के रूप में उत्तर दिया -कल्पना में भी न सोचा था कि चंद लाइनों में इतना गूढ़ भावार्थ छुपा होगा /आपने ये भी महसूस किया होगा कि [आपके स्पष्टीकरण पर जो टिप्पणी आयी है ] मेरा प्रश्न मूर्खता पूर्ण नहीं था /एक वास्तविक जिज्ञासा थी /शायद कोई और होता तो उसे मूर्खता पूर्ण प्रश्न समझ क़र नज़रंदाज़ क़र सकता था मगर आपने एक अल्पग्य के मामूली प्रश्न को महत्त्व दिया और अगर अन्य विद्वान् बुरा न मानें तो यह भी कहूँगा कि मेरे साथ कई लोगों की जिज्ञासा शांत हुई होगी /आज मै अपने प्रश्न पर गौरान्वित हूँ कि जिसने अनेक पाठकों को लाभ पहुचाया-
dhnywaad Sir jo aap ne yah prashn pochcha--sach mein mere paas aur bhi comments aaye ki ve bhi isee doubt mein they -
Sir-aap ne dhyan se kavita padhi yah mere liye saubhgya ki baat hai.
कम-से-कम शब्द जीवन में घटाव लाते हैं....यानि कि इक किस्म का भूचाल....और ज्यादा शब्द....निस्संदेह प्यार...प्यार...प्यार....बेशक थोडी-सी तकरार....मगर उसके बाद भी तो मनुहार....अंततः फिर तो प्यार.....इन सबमें ही तो है शब्दों का श्रृंगार....और जवान में...संसार....!!...और कैसे खुलासा करूँ...अल्पना जी थोड़े कहे को ज्यादा समझ लेना न प्लीज़.........!!
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