पिछली कविता के कमेंट्स में किसी अनाम व्यक्ति ने रोमांटिक कविता लिखने का आग्रह किया मगर करूँ क्या? मेरी कलम ऐसी ही कवितायें लिखती है जो उस श्रेणी में आती नहीं.
यह कविता भी कई साल पहले की लिखी हुई है--अभी कुछ नया नहीं लिखा है सो पुरानी डायरी से यह कविता आप की नजर करती हूँ-
ज़िंदगी
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क़तरा क़तरा छंटती जाती है ज़िंदगी
मायूसी के धागों में बटती जाती हैज़िंदगी
जब कभी आँख से मोती टपके
दरया बनके बहती जाती है ज़िंदगी
तनहाइयों के देश में अकेली ही
खुद में सिमटती जाती है ज़िंदगी
यूँ तो पहले ना थी उदास इतनी
जाने क्यों गुमसुम रहती है ज़िंदगी
गीत उनका गाती हूँ अगर
पायलें छनकाती है ज़िंदगी
साथ बिते पल जो याद आते हैं
हँसती है खिलखिलाती है ज़िंदगी
और क्या कहूँ....
यूँ ही लम्हा लम्हा कटती जाती है जिंदगी
हाँ ,कटती जाती है जिंदगी।
-अल्पना वर्मा
तनहाइयों के देश में अकेली ही
ReplyDeleteखुद में सिमटती जाती है ज़िंदगी
यूँ तो पहले ना थी उदास इतनी
जाने क्यों गुमसुम रहती है ज़िंदगी
बहुत सही लिखा आपने अल्पना ..
तन्हाई रास यूं अब आने लगी है मेरे दिल को
कि पास अब अपना भी कोई एहसास नही रहता
रंजू
अल्पना जी
ReplyDeleteकहना पड़ेगा की आप बहुत दिल से लिखती हैं इसीलिए आप की रचना बड़ी अपनी अपनी सी लगती है. बड़े ही प्यारे अंदाज़ में आपने अपने दिल की बात कह डाली है.
नीरज
जब कभी आँख से मोती टपके
ReplyDeleteदरया बनके बहती जाती है ज़िंदगी
तनहाइयों के देश में अकेली ही
खुद में सिमटती जाती है ज़िंदगी
बहुत बढ़िया अल्पना जी। पढ़कर अच्छा लगा।
मैंने अपने ब्लाग पर वारिस शाह की हीर डाली है। यह हीर किसी गायक ने नहीं बल्कि एक फ़क़ीर ने गाई है, जो वारिस शाह के दरबार में बैठता है। हो सके तो सुनना। क्योंकि संगीत रूह को सुकून देता है।
Ranjana ji aapne bhi kitna achcha jawab likha hai --wah wah!-
ReplyDeleteaur neeraj ji aap ko padhna bhi utna hi ruchikar lagta hai mujhe bhi....
aap dono ko bahut bahut dhnywaad
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kin shbdon mein shukriya karun aap ka vijay ji---itni achchee heer sunayee hai-meri to ruuh hil gayee-
maine apne sabhi friends ko is ka link forward kar diya hai--
aage bhi aise anmol gems share karte raheeye---
काफ़ी गहरी बात कही है आपने इस रचना में..
ReplyDeleteगीत उनका गाती हूँ अगर
ReplyDeleteपायलें छनकाती है ज़िंदगी
साथ बिते पल जो याद आते हैं
हँसती है खिलखिलाती है ज़िंदगी
wah wah bahut sundar,zindagi ke alag se roop samet rakha awesome
यूँ ही लम्हा लम्हा कटती जाती है जिंदगी
ReplyDeleteहाँ ,कटती जाती है जिंदगी।
आपकी लिखी हुई रचना का सारा सार यही पंक्ति है.......
कुछ नही कहूँगा बस अपना लिखा एक शेर अर्ज करूँगा......
एक अरसा हुआ तुझे देखे
इन दिनों तू कहाँ है जिंदगी.....
अल्पना जी
ReplyDeleteसुँदर है कविता !
आप गातीँ भी बढिया हैँ -
कला के प्रति
ये रुझान जारी रखिये ..
-लावण्या
यूँ ही लम्हा लम्हा कटती जाती है जिंदगी
ReplyDelete-सत्य,,बहुत उम्दा पंक्ति है. वाह!
बहुत खूब मजा आ गया कविता पढ़ कर .
ReplyDeleteअगर मौका मिले तो अपनी आवाज़ रेडियो सबरंग पर दे
www.radiosabrang.com
http://vangmaypatrika.blogspot.com
पर बहुत कुछ मिलेगा .
तनहाइयों के देश में अकेली ही
ReplyDeleteखुद में सिमटती जाती है ज़िंदगी
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इस संकुचन में ही कहीं
जीवन का विस्तार भी छुपा है.
आँखों भर उसे देखते-सी लग रही है
आपकी रचना !...पर बाहर से लगता है
कुछ खोज रही है.........!
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शुभ भावों सहित
डा.चंद्रकुमार जैन
aap sab ne apna samay nikal kar kavita padhi aur raaay di aap sabhi ka tahe dil se shukriya.
ReplyDeleteDr.Firoz ji,
aap ke pahle bhi diye sujhav par maine mail@sabrang ...3-4 din pahle par 3 kavitayen [podcast]bhej di hain lekin un ka koi reply abhi tak nahin aaya.
shayad kuchh din aur intzaar karna hoga.
hausla badhane ke liye ek baar phir se shukriya.:)
आपने अपने दिल की बात कह डाली.
ReplyDeleteaap ne jo sama bandha hai wo hi baat hoti hai humare saath bhi...ki romani andaz mein kuchh nahi nikalta...aakhir mein bas...
ReplyDeleteयूँ ही लम्हा लम्हा कटती जाती है जिंदगी
हाँ ,कटती जाती है जिंदगी।
bahot khub...
अर्चना जी , मैं नया हूँ इस दुनिया मे।
ReplyDeleteअपने दोस्त आशीष कुमार अंशु कि प्रोफाइल के किसी कोने मे आपकी टिपण्णी देखी
उत्सुकता वश आपकी प्रोफाइल भी देखी। वहाँ तो मेरी रूचि की काफी चीज़ें थीं।
कवितायें , संगीत और पुराने गीत।
आपकी कविताओं मे लघु कवितायें बहुत पसंद आयीं।
गानों का चुनाव आपने बहुत सुंदर किया है लेकिन इमानदारी से कहूँ तो शायद गायन मे उनका निर्वाह ठीक से नही हो सका है, ऐसा मुझे लगा। मैं चाहूँगा की मैं ग़लत सिद्ध हो जाऊँ।
आपको शुभकामनाएं।
यदि समय मिले तो मेरे ब्लोग्स भी देखिये , मैं आभारी रहूँगा।
bahut achcha likha hai aapne...kahi ye videsh me sab se bichur jane ka gam to nahi?
ReplyDeleteयूँ ही ख्यालोँ मेँ बसती जाती है ज़िन्दगी
ReplyDeleteजब लम्हा लम्हा कटती जाती है ज़िन्दगी
awesome poem, zindgi ka saar simaat aya apki rachna mai...
ReplyDeleteawesome poem, zindgi ka saar simaat aya apki rachna mai...
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