1)अपने भीतर के जानवर को
छुपाने की कोशिश करते है,
कई लोग,
अक्सर ..... दूसरो के खोल में!
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2)वो शमा हूँ ,जो जलती रही मगर रोशनी कहीं न हुई!
वो लहर हूँ उफनती रही मगर न दामन किसी का गीला किया!
वो आंसू हूँ जो ढलका नहीं अब तक किसी के गालों पर!
हाँ ,
वो सांस हूँ जो ढली आह में मगर ,घुटती है अब तक सीने में!
[written when i was a college student]
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3)अपनी रफ्तार से जा रही है ज़िंदगी यूं तो!
मगर न जाने क्यों लगता है....
अनगिनत विराम चिन्ह
हरदम साथ चलते हैं!
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-अल्पना वर्मा
स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India
'वन्दे भारत मिशन' के तहत स्वदेश वापसी Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...
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अपनी रफ्तार से जा रही है ज़िंदगी यूं तो!
ReplyDeleteमगर न जाने क्यों लगता है....
अनगिनत विराम चिन्ह
हरदम साथ चलते हैं!
बहुत खूब लिखा है आपने या अल्पना जी ..बहुत सही कहा विराम चिन्ह ....और सवाल साथ ही चलते हैं शायद :) तभी कोई हल हल नही मिलता है
वो सांस हूँ जो ढली आह में मगर ,घुटती है अब तक सीने में
ReplyDeleteबहुत खूब ..........
बहुत बढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteवो शमा हूँ ,जो जलती रही मगर रोशनी कहीं न हुई!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति बधाई
तीनों ही क्षणिकायें अच्छी हैं, बधाई स्वीकारें..
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
ALPANA JI AAPKE VICHARO KI ABHIVYAKTI PADHKAR ACHCHA LAGA AAP YADI CHAHE TO MAIN AAPKI KAVITAON KO APNE AKHBAR ME PRAKASHIT KARNA CHAHTA HU BALAGHAT DISTRICT SE MERA AKHBAR NIKALATA HAI VAINGANGA NEWS JO KI BALAGHAT, SEONI, JABALPUR, KATNI,CHHINDWARA ETC JILON ME PADHA JATA HAI
ReplyDeleteवो सांस हूँ जो ढली आह में मगर ,घुटती है अब तक सीने में!
ReplyDelete=================================
इस आह के असर को बचाए
रखना ही कविता का जीवन है .
आपने पढ़ा है न -
वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान
उमड़कर आँखों से चुपचाप,बही होगी कविता अंजान
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शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
ranjana ji,meet ji,muskan ji,mahendra ji,rajeev ji aur Dr,jain sir aap sab ka taeh dil se dhnywaad akrti hun kee aapne meri rachnaon ko saraha...sahi hai ye vedna hi to hai jo prerna ban jaati hai...bahut bahut dhnywaad aap ke comments ka...
ReplyDeleteAshish Verma ji..ye mera saubhagya hai ki meri kavita kisi akhbaar mein chhapen...
App apni ichcha anusaar jo kavita chahen prakashan ke liye le sakte hain..prakashan ke baad bas mujhe bhbi ek prati scan kar ke bhej dijeyega..bas..aur kuchh nahin chahiye....
bahut bahut dhnywaad sahit...
alpana verma
बेहतरीन-अच्छी लगी तीनों ही.
ReplyDeleteबधाई.
अपने भीतर के जानवर को
ReplyDeleteछुपाने की कोशिश करते है,
हमेशा की तरह बहुत सुंदर अल्पना जी.. बधाई स्वीकार करे
बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteआपकी कवितायें पढ़ कर वर्तमान ब्लॉग-जगत की सच्ची तस्वीर सामने आ रही है.
पिछले कुछ दिनों से जो हो रहा वो एकदम सही बयां किया आपने.
अच्छी कविता.
"अपने भीतर के जानवर को
ReplyDeleteछुपाने की कोशिश करते हैं,
कई लोग,
अक्सर...... दूसरो के खोल में."
बहुत सुंदर कविता.
आपकी कवितायें पढ़ कर वर्तमान ब्लॉग-जगत की सच्ची तस्वीर सामने आ रही है.
पिछले कुछ दिनों से जो हो रहा वो एकदम सही बयां किया आपने.
अच्छी कविता.
अपने भीतर के जानवर को
ReplyDeleteछुपाने की कोशिश करते है,
कई लोग,
अक्सर ..... दूसरो के खोल में!
सबसे ज्यादा भायी....सच जानिए सिर्फ़ यही लिख देती तो भी पूर्ण होता......आपकी बीच वाली कविता वाकई उन दिनों के रंगो मे डूबी हुई लगती है.....अच्छा है....लिखती रहे......
"अपने भीतर के जानवर को
ReplyDeleteछुपाने की कोशिश करते है,
कई लोग,
अक्सर ..... दूसरो के खोल में!"
बहुत खूब अल्पना जी... अन्य दोस्तों की तरह मुझे भी ये पंक्तियाँ काफी पसंद आयीं। यह लघु कविता आज के इंसानों की हकीकत बयां कर रही है।
अल्पना जी
ReplyDeleteवो शमा हूँ ,जो जलती रही मगर रोशनी कहीं न हुई!
वो लहर हूँ उफनती रही मगर न दामन किसी का गीला किया!
वो आंसू हूँ जो ढलका नहीं अब तक किसी के गालों पर!
हाँ ,
वो सांस हूँ जो ढली आह में मगर ,घुटती है अब तक सीने में!
बहुत सूँदर भाव है..लिखते रहें!!
आपकी तीनों कविताओं के लिए यदि एक वाक्य में अपनी बात कहना चाहूँ तो मैं कहूंगा-"देखत में छोटे लगें घाव करें गंभीर." ये कवितायें आकार में ज़रूर छोटी हैं किंतु प्रकार और प्रहार में कहीं कमतर नहीं.....
ReplyDeleteपहली कविता मौजूदा दौर में तेज़ी से बढ़ रही दोहरी जीवन-शैली के कड़वे यथार्थ को उद्घाटित करती है.
दूसरी कविता (जो आपने कॉलेज जीवन में लिखी है) तमाम संघर्षों, विद्रूपों और विषमताओं के साथ जीवन का जय-घोष करती अभिव्यक्ति है. यह उस सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतिबिम्बन है जो जिजीविषा को मूर्त रूप देती है.
तीसरी कविता व्यावहारिक अनुभवों का रूपायन है . विराम चिह्नों को साथ चलते हुए महसूस करना गहन संवेदन-शीलता का परिचायक है.
आपकी रचनात्मक प्रतिबद्धता और अनुभूति-जनित समर्थ अभिव्यक्ति प्रदीर्घ और सुस्पष्ट आश्वस्ति देती है. शुभकामनाएं.
आनंदकृष्ण, जबलपुर
कॉलेज में भी इतने गहरे विचार ?
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत...
aap sabhi ko tahe dil se dhnywaad karti hun ki apna qimati samay de kar aap ne apni tippaniyan likhin.
ReplyDeletefir aayeyega...
alpana
अल्पना जी ,
ReplyDelete"अनगिनत विराम चिन्ह
हरदम साथ चलते हैं!"
प्रार्थना करता हूँ की बेहतरीन
अभिव्यक्ति की यह यात्रा अविराम चलती रहे !
Khol me chhupakar hi to manav manav ban pata hai
ReplyDeleteमहा विद्यालयीन काल खंड में आपने अत्यन्त गंभीर भावों से भरी काव्य रचना की है जो आपकी साहित्यिक समृद्धता का प्रतीक है .......साधुवाद साहित्य जगत और मेरी और से
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