'अमल 'नाम की हमारी एक सहकर्मी थी जो जॉर्डन देश की रहने वाली थी ,जब भी वह स्टाफ रूम में आती तब माहौल ख़ुशगवार हो जाता था.क्योंकि वह बहुत ही हँसमुख स्वभाव की थी.हमेशा पूरे मेक अप में रहती थी.
शक्ल सूरत में बहुत ही साधारण ,कद कोई ५ft २'' रहा होगा.
वह अगले महीने अपने प्रेमी से शादी कर रही थी.प्रेम संबंध भी प्रगाढ़ थे.. अपने प्रेम संबंधो की खूब बातें सुनाया करती थी. सभी रश्क करते थे की इतना प्यार करने वाला पति मिल रहा है उसे!
महीने भर बाद शादी करके आई तब बेहद खुश थी ,मगर चेहरे पर कोई मेकअप नहीं देख कर सब ने सवाल कर डाले..
उसने बड़े गर्व से कहा की उसके पति उस से इतना अधिक प्यार करते हैं वे नहीं चाहते की उन के अलावा कोई और उस को देखे.हम मज़ाक में कहते थे की अमल ध्यान रखना उन्हें नौकरी मिल जाएगी तो तुम्हें तो ताले में बंद कर के जाया करेंगे!वह स्टाफ रूम मे आते ही सब से पहले अपने लोकर से मेक अप का समान निकालती और इतमीनान से सजती ,घर जाने से पहले चेहरे से सारी सजावट उतारती.
कुछ दिन सब ठीक ठाक चलता रहा .एक दिन परेशान सी थी मगर पूछने पर हंसकर बताने लगी की उसके पति ने उसके मोबाइल से जितने भी पुरुष सहकर्मियों /या कहिए जितने भी पुरुष नाम थे सब मिटा दिए उसे बताया भी नहीं . दिन बीते , ६ महीने हो गये थे मगर उसके पति को अभी तक कोई नौकरी भी नहीं मिल रही थी.
उसने अपनी सास को विज़िट वीसा पर बुलाया,लेकिन उनके आते ही अमल पर अभी तक माँ ना बन पाने के कारण पूछे जाने लगे .रोज़ के सवालों से तंग आ कर अमल ने अपने सारे टेस्ट करवाए,परीक्षणो से पता चला की वह पूरी तरह से नॉर्मल थी.पति जो उस से बेइंतहा प्यार करने के दावे किया करता था अब अपना टेस्ट करवाने को तैयार नहीं था.आख़िर कार डॉक्टर के समझाने पर उसने अपने टेस्ट करवाए .कमी उसी में निकली जिसे ना तो अमल की सास स्वीकार कर पाई ना ही उसका पति. हमेशा खुश रहने वाली अमल अब बुझी बुझी रहती थी.उसकी सास ने उसे बांझ कह कर ताने देना शुरू कर दिया था.
एक महीने की विज़िट में ही इतना कुछ हो गया..अलेएन चूकि छोटा शहर है इसलिए अपनी सास की तस्लली के लिए अबूधाबी के बड़े प्राइवेट हस्पताल से भी दोनो ने टेस्ट करवाए मगर परिणाम वही..!लेकिन मानना तो किसी ने था नहीं इसलिए उसकी सास दूसरी शादी करवाने की धमकी दे कर चली गयीं.पति जो अब तक बेहद प्यार दिखा रहा था..अपनी माता जी के आगे जैसे सारा प्यार काफूर हो गया था.
सच है प्यार भी समय और परिस्थिति का मोहताज है ..सच्चा प्यार सिर्फ़ किताबों में ही होता है वास्तविकता का उस से कोई लेना देना नहीं है...यह हम सब के सामने उस के केस से प्रमाणित हो गया था.
अब अमल ने एक बड़ा निर्णय लिया..चूकि उसे बार बार ऐसी ग़लती के लिए दोषी बताया जा रहा था जो उस ने की ही नहीं थी.पति भी खुद की कमी स्वीकारने को तैयार नहीं ..उस ने तलाक़ लेने का फ़ैसला किया ..और शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही उसने तलाक़ ले लिया ..अब...अमल ने अपने रिश्तेदारों में ही ऐसे व्यक्ति को ढूँढना शुरू किया.[जॉर्डन में मुस्लिम रिवाज़ के अनुसार वे अपने रिश्तेदारों में शादी कर सकते हैं.]
ऐसा पुरुष' जिस से उस की पत्नि को अभी हॉल ही में नवजात शिशु हुआ हो..और उस ने ऐसे व्यक्ति को खोज भी निकाला.
फोन पर बातें होने लगीं. फ़ोन पर ही उसने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे अब्दुल्ला ने स्वीकार भी लिया.अब फ़ोन पर ही उसने सगाई की और शादी भी.काग़ज़ सब तैयार हो गये.जब अमल के वीसा पर यहाँ आया तब उसने बताया की इस दूसरे निकाह की खबर उसने अपनी पत्नी को नहीं दी है जिसके कारण वह सिर्फ़ २ महीने रह सकेगा. अमल का उद्देश्य खुद को पूर्ण स्त्री साबित करना था.इसलिए उसे इस बात से दुख तो ज़रूर हुआ लेकिन अफ़सोस नहीं.ईश्वर ने उसकी सुनी और उसी साल उसके जुड़वाँ बेटे हुए.पति तो दो महीने रह कर चला गया था...अब वह यहाँ अकेली थी तो उसने अपनी माँ को अपने पास बुलाया hai.आज उसके दोनो बच्चे swasth हैं और दो साल के हो गये हैं.अमल खुश है उसे कोई अफ़सोस नहीं है.[naam badal diye gaye hain]
खुद को पूर्ण स्त्री साबित करने के लिए उस ने अगर कुछ खोया है तो बहुत कुछ पाया भी है.ऐसा कदम हर कोई नहीं उठा सकता.अमल में आत्मविश्वास था उसके आत्मविश्वास का एक कारण उसकी नौकरी भी थी जिस का सहारा उसे था ही ,इसीलिए भी वह अपने जीवन के निर्णय खुद ले पाई. |
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[vartani trutiyan aur roman mein likhne ka karan transliteration ka unreachable hona hai.Mother-child Chitr Google se sabhaar]
संस्मरणात्मक रूप से यह लेख बहुत अच्छा लगा..... और गीत तो बहुत सुंदर है.....
ReplyDeleteप्रेरक कथा
ReplyDeleteमधुर गीत
कितनी इंसानियत है इन देशों में ?
ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteअमल निश्चय ही बहुत साहसी हैं, जो ऐसा कठोर निर्णय ले पायीं. और जैसा कि आपने खुद लिखा है कि इसका कारण उनका आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है. एक स्त्री अपनी पूरी निष्ठा के साथ किसी को प्यार करती है, और उससे प्यार और सम्मान मिलना तो दूर रहा, उल्टे मिथ्यारोप मिले तो स्त्री को इस प्रेम के भ्रमजाल से निकल आना चाहिये. लेकिन मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि सच्चा प्रेम सिर्फ़ किताबों में होता है. इस दुनिया में अब भी ऐसे लोग(पुरुष) हैं जो प्रेम के लिये अपने परिवार और समाज से लड़ने को तैयार हो जाते हैं. हाँ, ये ज़रूर है कि इसकी क़ीमत उन्हें चुकानी पड़ती है.
Alpna ji bahut behatrin prastuti hai ji aanand aaya padhkar I m come back
ReplyDeleteयह आलेख मानव मूल्यों के संधर्ष को एक नई आवाज तथा पहचान देता है। जिन्दगी को एक नए नज़रिए से देखने की ताक़त देता है।
ReplyDeletehindustan men to bahut hota hai aisa lekin itna sahas shayad hi koi dikh pati hain. mahilaon ko prerna deti katha.
ReplyDeletemadhur geet. badhaai.
गीत और पोस्ट दोनों हृदयस्पर्शी हैं!
ReplyDeleteमेरी श्रीमती जी आपके गाये गीतों को
अवश्य सुनतीं हैं जी!
पुरुष अपनी कमज़ोरी (जेहनी) स्वीकार नहीं कर सकता...यही उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है... कथा और गीत...दोनों शानदार...
ReplyDeleteजय हिंद...
सुन्दर कथा प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रेम के नाम पर क्या क्या नहीं होता ...आज कल के माहौल में अपनी आर्थिक स्वतंत्रता बहुत जरुरी है ...इस लिए वह अपने फैसले खुद ले सकी ...
ReplyDeleteअल्पना मेम!
ReplyDeleteकभी कभी खुद पर गुस्सा आता है की मैं उस दुनिया में रहता हूँ जहाँ अमल के पति जैसे लोग रहते हैं...
आपकी यह पोस्ट वास्तव में बहुत प्रेरणात्मक है... लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता था की अमल भी दूसरी शादी कर लेतीं... मैं मानता हूँ की अब उसका किसी पर भरोसा नहीं रहा होगा लेकिन, किताबों और कहानियों जैसा प्यार अब भी मिलता है जरुरत है उसे ढूँढने की...उसे महसूस करने की, जो की कोई भी महसूस नहीं करना चाहता... बस बनावटी भंवर में फंस कर रहना चाहता है...
आपकी इस पोस्ट से ऑंखें नम हो गयीं हैं...
भगवान से गुजारिश है की वो अमल के बच्चों को इतना काबिल बनायें की एक दिन उसका वो पति जिसने उसे छोड़ा वो बेंतेहा जलन करे...उसे अपनी गलती का पछतावा हो...
मीत
सचमुच प्यार की सुगंध महज किताबों में बंद होकर रह गयी !!! और अमल ने तो सचमुच एक साहसिक कार्य तो किया ही और अपनी आत्मिक संतुष्टि भी पा ली !
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट ने बहुत कुछ कहा है ....... मैने भी इतने वर्षों में इस देश में रहते हुवे कई बार इस बात की महसूस किया है की इतनी पाबंदी होते हुवे भी यहाँ स्त्री ज़्यादा स्वतंत्र हो कर निर्णय ले पाती है ......... पता नही कैसे ........ पर ये बात अपने देश में नज़र नही आती ......... पर जो बात असल मुद्दे की है वो यही है की ये सब अंत में स्त्री को ही क्यों सहना और साबित करना पढ़ता है ........ बहुत ही संजीदा पोस्ट ....
ReplyDeleteप्रेम ! कहानी एक सीख है और आपका गीत......मैं सुन रही हूँ,झूम रही हूँ
ReplyDeleteसच है प्यार भी समय और परिस्थिति का मोहताज है ..सच्चा प्यार सिर्फ़ किताबों में ही होता है वास्तविकता का उस से कोई लेना देना नहीं है...
ReplyDeleteKYA KAHUN...BAHUT VARSH TAK IS VAKY KO NAKARNE KA PRAYATN KIYA MAINE...PAR AB LAGTA HAI YAH SAHI HAI....VIRLE HI INSAAN DHARTI PAR HAIN,JO DAWA KAR SAKTE HAIN KI UNKA PREM PARISTHTI AUR SAMAY KA MUHTAAZ NAHI....
SAHELEE NE JO BHI NIRNAY LIYE PARISTHITI AUR BHAVUKTA ME AAKAR LIYE,USE HAM US PARISTHTI SE BAHAR RAHKAR SAHI GALAT NAHI THAHRA SAKTE....
HAAN, YAH BILKUL SAHI KAHA AAPNE,APNE PAAS YADI AARTHIK AATMNIRBHARTA HO TO STREE APNE MAAN SAMAAN KI RAKSHA BEHTAR KAR SAKTEE HAI..PARASHRIT HO GHUT GHUT KAR JEENE KEE USKEE VIVASHTA HI USKE JEEVAN KEE SABSE BADI ABHISHAAP BAN JAYA KARTEE HAI...
IS PRERNAPRAD AALEKH KE LIYE AAPKA SADHUWAAD....
Bahut khoob...naree yadee tyaag,dhary va samarpan se saraboor hai to samay aane par aapnaa maan rakhna bhee janti hai....
ReplyDeleteGreat !!
Your vioce is soo melodious ..
aaj pahlee baar aayi hun yahan Alpana ji..
Interesting blog...!
prem, hota hi nahi,kitabo me mahaz gyaan bhagharne ke liye hota he, mujhe lagtaa he prem jab kiya jataa he to usaka ant bhi nishchit hota he, prem ho to hi vo sthaaibhav me hota he/ par afsos prem hota nahi, kiya ja rahaa he...
ReplyDeleteaour esi kahaniya banati jaa rahi he..,
aapka lekhan marm ko jhakjhorta he, geet laazavaab he...
औरत की स्थिति कमोबेश हर जगह एक ही जैसी है. बढिया संस्मरण.
ReplyDeleteये तो एक मानवी प्रवृ्ति है कि इन्सान अपनी कमियों को या तो जानबूखकर अनदेखा करने का प्रयास करता है,अथवा उन्हे किसी दूसरे पर मडने का प्रयत्न करता है । ऎसे बहुत कम लोग होंगें जो उन्हे स्वीकार कर पाते हैं.......बहरहाल आपकी सहकर्मी नें बहुत हिम्मत का परिचय दिया जो कि वो अपने जीवन में इस प्रकार का निर्णय ले पाई....
ReplyDeleteExcellent + +
ReplyDeleteKeep it up!
-Kamath,TN
बहुत प्रेरक पोस्ट...और गीत...हमेशा की तरह...मन मोहक...
ReplyDeleteनीरज
स्त्री के अधिकार छीनने के लिए प्यार का ही नाम लिया जाता है। उसे मेक अप न करने देना, मोबाइल से नम्बर हटाना, यह सब शुरुआती लक्षण थे। शुरू में यह सब स्त्री को प्यार के नाम पर ठीक भी लगता है। अच्छा हुआ कि ऐसे व्यक्ति से पीछा छूट गया।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
bahut sundar achna!!!!!!!
ReplyDeleteatmaviswash se kuch bhi kiya ja sakta hai..
yh pyar jaise natk ka ptapeksh hai bhart men bhi tihas mem yh sahs tha prntu samajik tane bane ke andr tha niyog vyvstha isi ka udahrn hai jo ki samajik roop se svikrit tha prntu jarj santan me esi ki himakt thi jise manyta nhi thi jyotish men jarj yog ka jikr aata hai tatha is ka dorupyog bhi huaa ydi mhila men sahs hi tha to pti ki samne hi use sntan utnn kr ke dikhani chahiye thi tb use btati ki dekh yh mrd hai tb vh tlak leta or vh sahs se khti ki yh sntan is ki nhi hai koyon ki yh namrd hai prntu itna sahs aurt men khan hai
ReplyDeletedr. ved vyathit faridabad
email dr.vedvyathit@gmail.com
पूरा आलेख पढने के बाद यह समझ आया कि इस आलेख की सम्प्रेषण शक्ति इतनी गजब की थी इसको अक्षरश पढा गया. आलेख जब खत्म होता है तब तक बहुत कुछ सोचने को बाध्य कर चुका होता है.
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपको इस विषय पर इतने सटीक आलेख के लिये धन्यवाद.
निजी रुप से मेरा ऐसा सोच है कि जो निर्णय अमल ने खुद के लिये वो कहीं कचोटते भी हैं पर आज की नारी के लिये वो अनुकरणीय हैं.
आखिर नारी भी क्युं घुटती रहे? सिर्फ़ इसलिये कि वो नारी है.
गीत हमेशा की तरह कर्णप्रिय है. शुभकामनाएं.
अल्पना जी, सच्चा प्यार ही नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति परिस्थितियों की दास है। जब जैसी परिस्थिति होती है व्यक्ति उसके अनुसार काम करने के लिए मजबूर होता है।
ReplyDelete------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
तारीफ़ के लिए अलफ़ाज़ नहीं हैं.. मैने अबतक आपका गीतों वाला ब्लॉग ही देखा था.. ये तो उससे भी कमाल है... लेकिन गीत वाला ब्लॉग तो मेरे लिए किसी दोस्त से कम नहीं है... अकेलेपन का साथी है..
ReplyDeleteउन्होंने जो निर्णय लिया -अपने हिसाब से लिया -और जो भी किया सही किया ।इसलिये उनके निर्णय को सही या गलत कहना या ऐसा नही वैसा करना था -ऐसी किसी टिप्पणी से अलग हट कर बात करें तो अक्सर जो पुरुष शंकालु होते है वे निश्चित किसी विकार से ग्रस्त होते है ।शंका चाहे महिला हो पुरुष हो सबमे कमोवेश पाई ही जाती है ,लेकिन किसी मे अतिरेक हो तो वह बीमारी होती है ।महिला की आत्मनिर्भरता के लिये आर्थिक पहलू महत्वपूर्ण है , । यह अशिक्षा या मूर्खता की पराकाष्ठा है कि चिकित्सीय रिपोर्ट के बाद भी व्यक्ति अपनी कमी स्वीकार नही कर पाता है । मै किसी की आलोचना नही कररहा लेकिन जो भी कह रहे है कि आज भी सच्चा प्रेम है उन्हे एक दिन प्रेम और स्वार्थ का अन्तर समझ आ सकता है । यह भी मैने देखा है कि जब स्त्री-पुरुष दौनो की जांच का प्रश्न होता है पुरुष हमेशा पीछे हटने की कोशिश करता है कि कही उसमे दोष न निकल आये ,उसके पुरुषत्व को ठेस न लग जाये ,जब कि चिकित्सीय कमी पुरुषों मे ही निकलती है और हमेशा से औरत को दोषी ठहराया जाता रहा है ।वास्तविक और तर्क युक्त लेख बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteपुनश्च: आज आपकी दस साल पहले लिखी रेखा नामक कहानी भी पढी और रात और दिन दिया जले वाला गाना भी सुना ,रेखा नामक कहानी की मूल प्रति भी देखी ,अच्छा लगा
ReplyDeleteबृजमोहन जी ने बिलकुल सही कहा
ReplyDeleteपुरुष प्रधान समाज की मानसिकता पर तीखा प्रहार करने वाला लेख---बहुत सुन्दर शब्दों में आपने इस संवेदनशील मुद्दे को संजोया है।
ReplyDeleteपूनम
हम जब अपने समाज में ये बुराईयां देखतें हैं तो संवेदनशील मन धुखी हो जाता है. दूसरे देशों में भी जब यही हकीकत सामने आती है तो लगता है कि कुछ ’सिक’ मानसिकतायें हर जगह हैं.
ReplyDeleteमगर पता नहीं क्यों,पुरुष के साथ स्त्री भी इस मानसिकता की दोषी है. क्योंकि सास भी एक स्त्री ही है.
बाद में गीत भी सुना अभी और अब बस क्या कहें...
ReplyDeleteThis song has expression of grief and sorrow , drenched with emoting words, and you have not only sang with full swar management but also have kept the feelings live by your equally expressive voice.
Mixing is also perfect.
सुन्दर शब्द-चित्र !
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शी लेखन है आपका
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! लाजवाब
साभिवादन
Sundar sansamaran....adbhut geet...!!
ReplyDeleteपुरुष जाति का ये नित नया रूप अजीब वितृष्णा से भर देता है मन।
ReplyDeleteगीत नहीं सुन पा रहा मैम!
फिर खामोश कर दिया आपकी पोस्ट ने .....सोच रही हूँ कितनी चोट सही होगी उस स्त्री ने जिसने इतना बड़ा कदम सिर्फ अपनी सच्चाई पेश करने के लिए उठाया ......मेरा नमन उस स्त्री को ...उसके साहस को .....रब्ब उसे उन दोनों बच्चों की परवरिश के लायक बनाये ......!!
ReplyDeleteamal sach mein abhut sahasi nikli.bahut kuch khokar kuch khishiya bhi paa li usne.
ReplyDeletegana hameha ki tarah madhur.
insaniyat naam ki koi cheej hi ab nahi bachi hai...........
ReplyDelete"mere mn meiN phir bhi andhiyara hai..."
ReplyDeleteek aur bahut hi sachchaa geet sunvaaya aapne....t h a n k s
(beats ke pichhe bhaagne se zyaada achaa hai k beats ko apne peechhe lagaa liyaa jaae...is geet meiN lagaa mujhe aise...plz dont take it otherwise...)
abhi meri farmaayish pending chal rahi hai...!?!
Behad Bhavnatmak.....bahut hi accha laga Alpna ji.
ReplyDeleteअमल की कहानी अच्छी लगी. एक ज़माने में बच्चा न होने पर या तो फिर सिर्फ लड़कियाँ होने पर औरत को ताने मिलते और कभी कभार ज़िन्दगी से हाथ धोने पड़ते और मर्द को मिलती दूसरी बीवी. अफ़सोस की बात है...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत -२ हार्दिक शुभ कामनाएं
Bahot khoob..
ReplyDeleteAlpana ji..
wah wah..
Agar hosake to hamari pasand ke song hai.. agar wo aap ki bhi pasand ho to zaroor record kijiye..
Aap choice karein..
A. Mausam hai Ashiqana (Lata ji)
B. Aye dil mujhe batade (Geeta Dutt)
C. Parde mein rahne do (Asha ji)
D. Dil deewna bin sajna ke (Lata ji)
Ummeed ke aap ko bhi ye gaane bahot pasand honge..
Main intezar karoonga... waqt nikaliye.. aur record kijiye..
Thanks & Regards
Aap ka chhota sa bhai
Muftin
पिछली बार आया था तो हरबड में था. आज ध्यान से पढ़ा.
ReplyDeleteमुक्ति जी की टिप्पणी से सहमत.
ये प्यार नहीं था. ये विवाहपूर्व और विवाह पश्चात के एक संकीर्ण और कमजोर पुरुष के व्यवहार हैं. उक्त महिला के लिए दुखद ये रहा की उसका प्रेमी न तो वैवाहिक सम्बन्ध को निभाने वाला जिम्मेदार पति था और ना ही एक संवेदनशील इंसान. बाद में महिला ने वही किया जो उसे उत्तम विकल्प लगा. वह स्वतंत्र थी इसलिए कोई भी निर्णय उसके व्यक्तिगत जीवन के मद्देनजर उचित ही कहलायेगा.
और हाँ, अभी गीत नहीं सुन पा रहा हूँ. शायद ऑनलाइन प्लयेर में गड़बड़ी है. डाउनलोड पर लगा दिया है.
ReplyDeleteबाद में जरुर सुनूंगा..
शुभ रात्री.
nice
ReplyDeleteWakai, Sansmaranatmak raap me likha gaya gaya yeh lekh acha laga.Ek sandesh bhi deta hai yeh lekh.Aabhar.
ReplyDeleteEk aachi rachna jo bahut kuch sikhne ke liye prerit karti hai.
ReplyDeleteबहुत खूब सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत -२ धन्यवाद
स्त्री की स्थिति लगभग पूरी दुनिया में कमजोर है.
ReplyDeleteहमेशा की तरह कर्ण प्रिय आवाज में गीत की प्रस्तुति के लिए साधुवाद.
achchh geet
ReplyDeleteprerak katha
Good.
ReplyDeletePortugal
प्यार एक मन:स्थिति है. बस.
ReplyDeleteकाश अमल की तरह स्त्री अपने शर्तों पर जी पाती ......
ReplyDeleteDear Alpana ji ,
ReplyDelete'Agar bewafa tujhko'... Aapka geet suna....
hamesha ki tarah behtereen gaya hai aapne...dil se gaya hai ...kahin koi puraani yaadein????
LOL...kidding ...amazing progress you are making in this field...
congrats...best regards
Dr Sridhar Saxena
kitabo me chhapte hai chahat ke kisse ,haqikat me iski jagah koi nahi ,is lekh ko padhkar ye geet yaad aa gaya ,vandana ne sahi kaha hai ,aap aai behad khushi hui ,kyonki aap me apne mitr ki jhalak dekhi rahi ,saath hi aap banasthali se bhi judi hui hai .kahi to mel hai ,yahi aas hi sahi .rachna bahut achchhi rahi .gaane aapke meri pasand liye huye hai
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteहजारों मील की दूरी पर रहते हुए भी अपने लोग और अपनी सोंधी माटी की महक आपके जेहन में उमरती है। यह बहुत बड़ी बात है। वर्तमान में जब पड़ोसियों को एक-दूसरे से मिलना-जुलना नहीं सुहाता, वैसे में आपके जज्बे को प्रणाम।
ReplyDeleteआपकी रचनाओं को पढऩे का मौका मिला। काफी अच्छा लगा। आपके पूरे ब्लॉग को खंगालने के बाद यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं होता कि आपकी रचनाएं सामाजिक चेतना, मानवीय संवेदना और इनसानी जटिल प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति का दस्तावेज है। कहीं सपनों की सरसराहट, भावुकता की गुदगुदाहट का एहसास होता है तो अगले ही पल ठोस स्थितियां जीवन की वास्तविकता का बोध कराती है।
इस मणिकांचन संयोग के लिए आपको साधुवाद। साथ में अपेक्षा बढ़ती जाती है कि आपकी आगामी रचनाएं भी इसी प्रकार पढऩे को बाध्य किया करेंगी।
सुभाष चंद्र
नई दिल्ली
09871846705
Ravi Rajbhar has left a new comment on your post "'अपनी शर्तो पर जीना'":
ReplyDeleteDil se samman apki sunder lekhni ko..
Verma jee ish geet ki awaj to kis bollywod singer se nahi milti hai kya ye aapki awaj kai......?
Please mujhe jarur batayen..: :)
लगता है स्त्री की दुनिया में कही ज्यादा बदलाव नहीं है ..यहां हो या वहां ...बस चेहरे बदलते है .किरदार नहीं !
ReplyDeleteaapka blog blog naheen baag hai. jise dekh kar dil baag-baag ho gaya. badhai. apki soch ka bhi, khas kar desh ke prati.
ReplyDeletedoor vatan se rahati hoo par, mitti sadaa bulati hai.
isiliye to yaad hamesha mujhe desh ki aatee hai.
chali jati hai fir bhi sahas se jee uthti hai striya .
ReplyDeletebahut sundar snsmrnatmk aalekh .
chali jati hai fir bhi sahas se jee uthti hai striya .
ReplyDeletebahut sundar snsmrnatmk aalekh .
chali jati hai fir bhi sahas se jee uthti hai striya .
ReplyDeletebahut sundar snsmrnatmk aalekh .
सच है प्यार भी समय और परिस्थिति का मोहताज है ..सच्चा प्यार सिर्फ़ किताबों में ही होता है वास्तविकता का उस से कोई लेना देना नहीं है...यह हम सब के सामने उस के केस से प्रमाणित हो गया था.
ReplyDeletebahut sahi kah rahi hai aap ,
milta hai to chhapd phad ye kahavat aapki tippani sabit kar di ,aap blog par aakar kai rachna pe apne vichar chhod gayi aur main aaj dekhi ,byaan nahi kar sakti kitni khushi hui ,aankhe nam ho gayi ,nari ka sahyog naari ko mile
us sakti ki baat alag hoti ,main hamesha inhe jodkar rakhne ki koshish ki ,chahti hoon ek din wo har dukh se ubhare ,aur aadhiptaya unka ho ,shayad adhik kah di magar ,man kyo kah gaya ye nahi jaanti .
सच है प्यार भी समय और परिस्थिति का मोहताज है ..सच्चा प्यार सिर्फ़ किताबों में ही होता है वास्तविकता का उस से कोई लेना देना नहीं है..
ReplyDeleteekdm sach.
सुखान्त ....
ReplyDeleteहिम्मत वाली है अमल पर अपनी निर्दोष और स्वस्थ होने का प्रमाण तो उसने दे ही दिया । क्यूं स्त्री को ही अग्नि-परिक्षा से गुजरना होता है हर समाज में ।
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