भावनाएँ? भ्रमजाल है माया! |
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लगता है कुछ ठहरा हुआ सा है .
ज़िन्दगी मानो एक धुरी पर घूमते घूमते रुक गयी है .
ठिठक कर जैसे कोई पथिक आस-पास देखने लगता है .
अचानक ही जैसे जानेपहचाने माहौल में अजनबीपन के साए दिखने लगे हों.
ऐसी तमाम परिस्थितियों में इंसान के लिए अपनी मनः स्थिति को हमेशा समझ पाना संभव नहीं होता ,समझना तो दूर उसे सही तरह से बखान कर पाना भी दुष्कर लगता है .
माया अपने आसपास कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी .
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आज शुक्रवार है..अगले दो दिन छुट्टी है .पर ऑफिस से बाहर निकलते हुए मन अजीब सी उलझनों में घिरा हुआ था .ऐसा होना तो नहीं चाहिये लेकिन ऐसा कुछ है आज ! जब कभी सभी महिलायें एक साथ बैठती हैं तो सब के मन खुलने लगते हैं कुछ हँसते हुए, कुछ मुस्कराते हुए,तो कुछ मुंह बनाते हुए भाव भंगिमाएं बदल बदल कर अपने मन की बात कह ही देती हैं.अच्छा ही है न मन हल्का हो जाता होगा.
महिला दिवस की बधाई!...सुबह-सुबह सुनते ही माया चौंकी ..महिला दिवस?ओह ,आज 8 मार्च है! ...चलिए अच्छा है इस एक दिन महिलाओं के लिए लोगों की संवेदनाएं जागती हैं.
कल की बातें मन मस्तिष्क में गूंज रही थीं ..खुद पर खीझती है कि क्यों वह दूसरों के भावों में बहने लगती है ?सब की अपनी ज़िन्दगी है जैसे चाहे जियें . फिर भी उसे हर वो स्त्री याद आने लगी जो उसे बहुत अलग सी लगते हुए भी भीड़ का अहम् हिस्सा लगी .
स्त्री एक ---
33 साल विवाह सूत्र में बंधी हुई .
बच्चे अपने -अपने रास्ते पर चल रहे हैं .
लगभग हर दिन कोसती है अपने हमसफ़र को ..१२ साल से दैहिक सम्बन्ध नहीं फिर भी एक छत के नीचे रहते ..अक्सर जीवन से थकी हुई...एक स्नेहभरे आलिंगन का आग्रह करती ..कभी माया के कंधे पर सर रख कर माँ जैसे स्पर्श की चाह करती हुई .कभी भरी आँखों से वह माँ को याद करती है तो माया उसे बच्चे की तरह सीने से लगा लेती है !
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स्त्री दो-
१९ साल विवाह सूत्र में बंधी हुए..हाँ उसके लिए बंधन है जिससे मुक्त होना चाहते हुए भी वह मुक्त नहीं हो सकती ,उसका धर्म इजाज़त नहीं देता .
हर सप्ताह सप्ताहांत आते ही जब औरों को ख़ुशी होती है तो उसका चेहरा उतरा हुआ होता है,उसे सप्ताह के ये दो अवकाश अच्छे नहीं लगते .
भरे परिवार में भी वह बहुत अकेली हो जाती है ,जिसके साथ की अपेक्षा वर्षों से करती रही वह कभी वक़्त नहीं देता ..अब उसे कोई आशा भी नहीं ...जीवन लक्ष्यहीन सा लगता है ..बच्चे?हाँ बच्चे हैं ,मगर रिक्तता जो वह महसूस करती है उसे उसका जीवनसाथी महसूस नहीं करता क्योंकि वह अपना समय घर के बाहर दोस्तो में अपना समय गुजरना पसंद करता है ,उसे शोहरत की ख्वाहिश है साथ की नहीं.महीने बात नहीं भी करे तो उसे फर्क नहीं पड़ता ,जीवन तो चलता है चलेगा ही!
##माया उसके उतरे चेहरे को भूल नहीं पा रही है !सोचती है बाहर से दिखने वाली चीज़ से सुन्दर दिखे मगर ज़रूरी नहीं कि वह सुन्दर ही हो उसी तरह शायद सम्बन्ध भी होते हैं .
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स्त्री तीन -
विवाह के १० वर्ष बीत चुके हैं !
विवाह के १० वर्ष बीत चुके हैं !
उसे घर और घर के काम पसंद नहीं क्योंकि यहाँ वहां अकेले सब करना होता है , कामवाली रखने की उसकी हैसीयत नहीं तन्खावाह कम होने का ताना उसे मिलता है जिसका मलाल उसे हमेशा रहता है और रहेगा ही .
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स्त्री चार -
स्त्री होने का अहसास उसे बराबर कराया जाता है या कहिये वह पुरुष की छत्रछाया में है और पुरुष ही सर्वश्रेष्ठ कृति है विधाता की यह जताया जाता है .घर में हर उस आधुनिक सुविधा से वह हीन है जिसे हम आज के समय में आवश्यक मानते हैं .न कंप्यूटर उसके घर में रखने की अनुमति है न ही इन्टरनेट जैसी सुविधा ..मोबाइल भी बहुत ही मूलभूत ज़रूरतों हेतु उपलब्ध है.
विवाह के १३ साल बाद भी उसे यह सम्बन्ध अपने साथ 'एक देह' की उपस्थिति मात्र लगती है वह मुस्कुराती कम है ..
खुल के हँसते हुए माया ने उसे अपने साथ ही देखा था ,एक दिन जब बच्चों के साथ हम खुद बच्चे बन गए थे !उसने स्वीकार किया था कि अपने कोलेज समय के बाद वह उसी दिन खुल कर इतना हंसी और एक सवाल का जवाब देते हुए उसने अपने मन की सारी परतें ही खोल दी थीं ....मन द्रवित हो उठा था !
विवाह के १३ साल बाद भी उसे यह सम्बन्ध अपने साथ 'एक देह' की उपस्थिति मात्र लगती है वह मुस्कुराती कम है ..
खुल के हँसते हुए माया ने उसे अपने साथ ही देखा था ,एक दिन जब बच्चों के साथ हम खुद बच्चे बन गए थे !उसने स्वीकार किया था कि अपने कोलेज समय के बाद वह उसी दिन खुल कर इतना हंसी और एक सवाल का जवाब देते हुए उसने अपने मन की सारी परतें ही खोल दी थीं ....मन द्रवित हो उठा था !
माया कई दिनों तक वही सोच -सोच कर अपनी नींदें खराब करती रही कि अक्सर हम देखते कुछ हैं लेकिन असलियत इतनी अलग होती है क्यों?
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बस..अब इतना नहीं सोचना मुझे....माया ने रेडिओ का बटन दबाया तो लता की आवाज़ में एक गीत गूँज उठा ..'मेरे ए दिल बता ...प्यार तूने किया ..पाई मैं ने सज़ा क्या करूँ'.....
'ओह ! यहाँ भी एक कहानी ......'प्यार ''जिस शब्द से उसे कभी मोहब्बत नहीं, वही याद आ गया ...एक कहानी किसकी कहानी थी...स्त्री पाँच या छह?...
वह फिर कभी...सोचते हुए माया ने अपनी खिड़की के परदे हटा दिए धूप खिली हुई थी मानो कहती हो कि स्त्री जैसी सहनशील ईश्वर की बनाई कोई और कृति धरती पर नहीं है.
'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ!'
वह फिर कभी...सोचते हुए माया ने अपनी खिड़की के परदे हटा दिए धूप खिली हुई थी मानो कहती हो कि स्त्री जैसी सहनशील ईश्वर की बनाई कोई और कृति धरती पर नहीं है.
'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ!'
हर चेहरा आधा ही दिखता है ! |
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सब के अपने अपने दुःख।
ReplyDeleteकिसलिए मैंने प्यार किया दिल को यूं बेकरार किया................हां शाम-सवेरे तेरी याद आए ..........हं हं हं हं हं हं
ReplyDeleteसबका अपना आसमान हो, नैराश्य के बादल तजने की छूट।
ReplyDeleteबड़े अच्छे से चित्रण किया है आपने अल्पना जी , नारी की सहनशीलता का भी जवाब नहीं ...मगर ऐसी नाइंसाफ़ियों को बर्दाश्त करना ...जैसे जीते जी तकरीबन मुर्दा ...दुख होता है ...पिछले साल लिखा था मैंने ..नारी होना अभिशाप नहीं ...ये सबके बस की बात नहीं ...
ReplyDeletehttp://shardaarora.blogspot.in/2013/03/blog-post_8.html
सबका नसीब अपना अपना होता है...!
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
ufffff.........mam dil ko chu gayi yah post.....bahut khoob.....
ReplyDeleteaapko bhi mahila divas ki bahut-2 badhaiyan....:-)
ufffffffff.........mam aapki yah post dil ko chu gayi.....
ReplyDeleteamazing.......kya khub likha hain....
aapko b mahila divas ki dhero badhaiyan...:-)
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ReplyDeleteबढ़िया चित्रण....
ReplyDeleteI do not want to tell to the world but I can tell next type of woman who is not mentioned here is like a woman who did her job very best way but still not independent in this world full of so many social changes who has no rights of freedom even having all means of freedom because she is bonded with love for so samy reasons ,so many ways ,so many stories to hide from his own world . Because if she tells the truth she is put in hell not to speak and shut up .
ReplyDelete@Shashi,You are right...
ReplyDeleteMany more real stories are there to write ...I will share them later.
Just to say last still women are away from the word 'liberty'!
पुरुष का अहंकार उसे कभी स्वतंत्र नहीं होने देगा.
मेरे अनुभव के पिटारे में उन कथित स्वतंत्र आत्मनिर्भर महिलाओं की ही और भी कई बातें हैं जिनके जीवन का सिर्फ एक ही पहलू हम ताउम्र देखा करते हैं ..दूसरा पहलू कोई समझना या देखना भी नहीं चाहता.
ये सच है पुरुष का अहम स्त्री को सदा ही दबाता आया है ... आगे भी दमाता रहेगा .. क़ानून के बदलाव, बड़ी बड़ी बातें आटे में बस नमक ही डालेंगे ... दुःख तो खुद ही भोगने होते हैं .. क्योंकि खुद के लगाए ही होते हैं ....
ReplyDeletePida me annand jise ho
ReplyDeletebo hi pyare hote hain...
lakh purush hawi ho jaye
Matritva sukh ka varnan
ya anubhav nahi kar sakta...
likhit samvedna ka shayd sahbhagi
ho nahi sakta lekin empathy jarur
rakhta hoon...
sadar-
कहने को कानून बहुत कुछ कहता है पर हकीकत वही है जो आपने बयान की है. चंद महिलाओं के लिये कुछ बदलाव अवश्य आया हौ पर बहु संख्यक महिला आबादी आज भी घुटन में है. उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में हालात बदलेंगे.
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
आपने सुनहरी तस्वीर के पीछे छुपी स्याह हकीकत को उजागर कर दिया...भोगे हुए यथार्थ और संबंधों की जटिलताओं का अच्छा चित्रण.
ReplyDeleteमहिला दिवस पूरे समाज का ध्यान महिलाओं के उन मुद्दों पर खींचता है, जो रोजमर्रा के जिंदगी में दरकिनार रहते हैं. भूमंडलीकरण ने महिलाओं को तथाकथित रूप से पुरुषों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया है. आर्थिक रूप से स्वाधीन महिलाएं सामाजिक रूप से अभी तक स्वाधीन नहीं हो पायी हैं. पुरुषों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी. सबको मान, सम्मान व पहचान मिले तभी साबित होगी इस दिन की सार्थकता.
काश साथी एक दुसरे के कष्ट समझ सकें ...
ReplyDeleteसच्ची विवेचना....
ReplyDeleteइस पितृसत्तात्मक समाज के अंदर स्त्री की हसरतों को पंख लगने की कल्पना बड़ी बेमानी लगती है..अफसोस तो तब होता है जब महिलासशक्तिकरण की बात करने वाले धुरंधर विद्वान ही महिला के साथ दोहरा बर्ताव करते हैं..आपने जिस शैली के साथ स्त्री के इन विभिन्न रूपों से परिचित कराया है वो सराहनीय है..आभार आपका।।।
ReplyDeleteसामयिक पोस्ट...
ReplyDeleteआप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम
alpana bahut hi sundar prastuti ,stri ke roop ko uski mano sthti ko bahut hi tarike se bayan kiya hai tumne ,kabile tarif post ,sahi darshaya hai aurat ka chehra apna nazar kam hi aata hai ,tumhari yaad aa rahi thi so aa gayi ,face book par bhi dhoondhne ki koshish ki ,ab wapas face book se jud gayi hoon .
ReplyDeleteसुंदर चित्रण ।
ReplyDeletepretty nice blog, following :)
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