माघ में ऋतु परिवर्तन होते ही मानो प्रकृति मदनोत्सव मनाने लगती है.
यहाँ भी मौसम अंगडाई ले रहा है ,
जाती हुई सर्दी पलट कर वापस ऐसे आई है जैसे कुछ भूला हुआ वापस लेने आई हो.
भावों की सुगबुगाहट और अहसासों का कोमल स्पर्श लिए मन ओस की बूंदों में खुद को भिगो देना चाहता है ताज़े खिले फूलों की सुगंध में रचने बसने को आतुर हो उठता है.
मरू भूमि में गिरती बरखा की बूंदों को देख जैसी प्रसन्नता होती है वैसी ही अनुभूति अपलक ताकती चाहना के मौन स्वर दे जाते हैं और एक प्रेम गीत का जन्म हो जाता है !
गीत
मैं बनूँगी मौन की भाषा नयी
बन के धुन स्वर मेरे छू जाना तुम
मैं भरूँगी स्नेह से आँचल मेरा
बन के झोंका नेह का छू जाना तुम
मैं लिखूंगी प्रेम का इतिहास नव
बन भ्रमर बस पंखुरी छू जाना तुम
भीत मन की प्रीत के रंग में रंगे
बन के ओस अधरों को छू जाना तुम
बावरी हर चाह अठखेली करे
यूँ हृदय के तारों को छू जाना तुम
मैं गुनुंगी गीत भावों से भरा
बन किरण बस देह को छू जाना तुम
-अल्पना वर्मा-
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वाह! बहुत प्रेमिल किरणों से अहसास।
ReplyDeleteप्रेम की खुबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post प्रिया का एहसास
चाहना का सुरीला मधुर मौन!
ReplyDeleteप्रेमपगी पंक्तियाँ..
ReplyDeleteमैं लिखूंगी प्रेम का इतिहास नव
ReplyDeleteबन भ्रमर बस पंखुरी छू जाना तुम ...
यहाँ के बदलते मौसम ने हर किसी को रूमानी कर दिया है ... प्रेम और श्रृंगार में उलझे शब्द रचना बन बहने लगते हैं ... सुन्दर गीत के लिए बधाई ...
इस बार प्रक्रुति अपने अलग ही रंग दिखा रही है, बार बार सर्दी का लौट आने के पता नही क्या संकेत है.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावों में लिखा गीत, शुभकामनाएं.
रामराम.
खुबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-02-2014) को "अक्ल का बंद हुआ दरवाज़ा" (चर्चा मंच-1527) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
long wait but so sweet poetry .Loved each word of this poem .
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत प्रेम गीत. मन प्रसन्न हो गया पढ़ कर. प्रेम का सीधा संबंध मनुष्य की कोमल अनुभूति से है. मनुष्य का मन और प्रकृति एक दूसरे के बहुत निकट हैं. इसलिए बदलते हुए मौसम मन को प्रभावित करते हैं... भावनाओं से भरपूर इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति...वैसे भी जो मौन की भाषा न समझ पाये वो अल्फाज़ों की कही बात भी नहीं समझ सकता...
ReplyDeletevery beautiful !
ReplyDeleteअति सुन्दर,
ReplyDeleteभावमय मधुरता के लिए बधाई.
बहुत ही सुंदर भावों में लिखा गीत, शुभकामनाएं.
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