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छाया : सुनो माया, तुम्हारे पंख कहाँ हैं?
माया :पंख तो जब उतारे तभी से न जाने कहीं खो गए हैं।
छाया : तो अब क्या करोगी?
माया : नए पंख बना रही हूँ।
छाया : कब तक बन जायेंगे?
माया : मालूम नहीं।
छाया : तब तक ?
माया : तब तक धरती पर हूँ यहीं रहूंगी।
छाया : माया, तुम्हारे हाथ इतने ठंडे कैसे? तुम्हारा जिस्म भी ठंडा? सारी उष्णता कहाँ है?
माया : उष्णता सब भावों में समेट दी है।
छाया : भाव कहाँ हैं?
माया : ये देखो इस डिब्बे में हैं।
छाया : अरे, इस में तो सब दम तोड़ देंगे।
माया : नहीं, देखो मैंने कुछ सुराख बनाये हैं ... सांस लेते रहेंगे।
छाया : तुम इनका क्या करोगी?
माया : जब पंख बन जायेंगे तब इनसे रंग भरुंगी।
छाया : जब तक ये पूरे होंगे, तुम उड़ना भूल जाओगी माया तब तक।
माया : पता नहीं, लेकिन आखिरी सांस तक प्रयास रहेगा कि पंखों को पा सकूँ, चाहे उड़ना संभव हो या नहीं।
छाया : ये कैसी चाहत है माया?
माया : बिलकुल वैसी ही जैसी चातक को बरखा की पहली बूंदों की होती है।
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छाया : सुनो माया, तुम्हारे पंख कहाँ हैं?
माया :पंख तो जब उतारे तभी से न जाने कहीं खो गए हैं।
छाया : तो अब क्या करोगी?
माया : नए पंख बना रही हूँ।
छाया : कब तक बन जायेंगे?
माया : मालूम नहीं।
छाया : तब तक ?
माया : तब तक धरती पर हूँ यहीं रहूंगी।
छाया : माया, तुम्हारे हाथ इतने ठंडे कैसे? तुम्हारा जिस्म भी ठंडा? सारी उष्णता कहाँ है?
माया : उष्णता सब भावों में समेट दी है।
छाया : भाव कहाँ हैं?
माया : ये देखो इस डिब्बे में हैं।
छाया : अरे, इस में तो सब दम तोड़ देंगे।
माया : नहीं, देखो मैंने कुछ सुराख बनाये हैं ... सांस लेते रहेंगे।
छाया : तुम इनका क्या करोगी?
माया : जब पंख बन जायेंगे तब इनसे रंग भरुंगी।
छाया : जब तक ये पूरे होंगे, तुम उड़ना भूल जाओगी माया तब तक।
माया : पता नहीं, लेकिन आखिरी सांस तक प्रयास रहेगा कि पंखों को पा सकूँ, चाहे उड़ना संभव हो या नहीं।
छाया : ये कैसी चाहत है माया?
माया : बिलकुल वैसी ही जैसी चातक को बरखा की पहली बूंदों की होती है।
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पँख.
ReplyDeleteआह.
बहुत ही सुंदर रचना !
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाए...!
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
------ द्वन्द ------
ReplyDeleteपंख उगेंगे, भाव उड़ेंगे।
ReplyDeleteवाकई चातक जैसी दीवानगी इ ही होनी चाहिए ...इस रचना को मुझे पुनः पढ़ना होगा ...सादर बधाई के साथ
ReplyDeleteधन्यवाद आशुतोष जी .
DeleteDeewangi ki ye had bahut kuch sochne ko majboor karti hai ...
ReplyDeleteBahut samvedansheel likha hai ...
विजयादशमी की शुभकामनाए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
इस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-15/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -25 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
पंख रगेंगे, उड़ चलेंगे
ReplyDeleteचातक वर्षा में भीगेंगे.................सुन्दर।
वाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteइसे पढ़कर मुझे रमानाथ अवस्थीजी की कविता याद आ गयी।
" मेरे पंख कट गये है, वर्ना मैं गगन को गाता"
इसे यहां सुन सकती हैं।
http://hindini.com/fursatiya/archives/1257
वाकई उन्मुक्त भाव से लिखी रचना है यह. बेहद सुन्दर एक नयापन लिए.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
ReplyDelete''रटत रटत रसना लटी तृषा सूखिगे अंग।
ReplyDeleteतुलसी चातक प्रेम को नित नूतन रुचि रंग॥''
तस्वीर तो सचमुच चातक की ही है !
चातक की बात हो रही है तो चित्र उसी का लगाया है.
Deleteसुंदर रचना|
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना...
ReplyDeleteभावनाओं के सुंदर पंख
prathamprayaas.blogspot.in-
loved this poem ,so beautifully written .
ReplyDeleteशुक्रिया शशि जी ,आप का ब्लॉग नज़र नहीं आ रहा..क्या अब लिखना बंद कर दिया?
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (15-10-2013) "रावण जिंदा रह गया..!" (मंगलवासरीय चर्चाःअंक1399) में "मयंक का कोना" पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद sir.
Deleteबहुत खूब ! माया,छाया, किसकी ! जिसके जिस्म हो उसकी ! अल्पना की कल्पना -- मोहक भी और उमंग की सकारात्मकता भी...मुझे मोह लिया इस रचना ने
ReplyDeleteआभार Sir.
Deleteआस पर ही दुनिया है...सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही नायाब और अनोखा सोच, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteछाया : जब तक ये पूरे होंगे, तुम उड़ना भूल जाओगी माया तब तक।
माया : पता नहीं, लेकिन आखिरी सांस तक प्रयास रहेगा कि पंखों को पा सकूँ, चाहे उड़ना संभव हो या नहीं।
छाया : ये कैसी चाहत है माया?
माया : बिलकुल वैसी ही जैसी चातक को बरखा की पहली बूंदों की होती है।
बेहद के आशा वादी स्वर अरी बावली !ये पंख ही तो मेरी ज़िन्दगी हैं तू इतना भी नहीं जानती पूछे जा रही है सवाल दर सवाल।
सच कहा आप ने..आभार.
Deleteतीन बार रचना को पढ़ा फिर भी बहुत से भाव समझ नहीं आये..लेकिन जितने भी समझ में आये वे बेहद गहरे और मार्मिक हैं...
ReplyDelete@Ankur...आभार कि आप ने मेरी इस रचना को समझने का प्रयास किया ...
Deleteअनूप जी ने मुझे अपने कमेन्ट में कवि रमानाथ अवस्थी जी की कविता का लिंक दिया वही कविता मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ ..क्योंकि मुझे लगता है कि वह बहुत अर्थों में वही मायने रखती है जो मैं इस रचना में कहना चाहती हूँ --मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
कोई मुझे सुनावो
फिर से वही कहानी,
कैसे हुई थी मीरा
घनश्याम की दीवानी।
मीरा के गीत को भी
कोई विष रहा सताता!
मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
कभी दुनिया के दिखावे
कभी खुद में डूबता हूं,
थोड़ी देर खुश हुआ तो
बड़ी देर ऊबता हूं।
मेरा दिल ही मेरा दुश्मन
कैसे दोस्ती निभाता!
मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
मेरे पास वह नहीं है
जो होना चाहिये था,
मैं मुस्कराया तब भी
जब रोना चाहिये था।
मुझे सबने शक से देखा
मैं किसको क्या बताता?
मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
वह जो नाव डूबनी है
मैं उसी को खे रहा हूं,
तुम्हें डूबने से पहले
एक भेद दे रहा हूं।
मेरे पास कुछ नहीं है
जो तुमसे मैं छिपाता।
मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
रमानाथ अवस्थी
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प्याज ने रूलाया ज़ार-ज़ार,
ReplyDeleteमैं लन्दन की सैर कर भारत लौट आई हूँ।बाहर जा कर कौन अपने प्यारे भारत को भुला सकता है।पर यहाँ वापिस आकर देखा कि मँहगाई तो सब को मारे ड़ाले दे रही है।हर कोई जूझ रहा है उसी से। खास तौर पर प्याज ब हुत मँहगा हुआ है। इस की जरूरत हर सब्जी में होती है।मेरा नया लेख ,"प्याज ने रुलाया ज़ार-ज़ार"जरा पढ़ कर देखिये।आप का स्वागत है मेरे ब्लोग,"Unwarat.com" पर।अपने विचार अवशय व्यक्त करें|v
alpalna adbhut ,dono hi rachana apni apni jagah khash hai ,padhwane ke liye dil se aabhari hoon tumahari ,
ReplyDeleteBilkul waisee hee jaise chatak ko Warsha ke pahali boond kee hoti hai..............
ReplyDeletewah sunder adhyatm nayee shaili men.
is ichchha ko bachaye rakhiyega.
ReplyDeletealpana shukriyaan badhai ke liye ,do saal se bitiyaan ki shaadi ki taiyari me vyast rahi ab nani ki padvi sambhal rahi hoon ,2 oct ko nati ka janm hua ,bahut pyara beta hai ,soch rahi thi agli post par tasvir dalne ko ,magar ismat ki badhai se ab sab ko aage hi jaankaari ho gayi ,aaj hi swapn bhi dekhi hoon tumahara ki tum satna aai hui ho hum sub se milne ,tabhi jaan gayi rahi tum yaad jaroor ki hogi .
ReplyDeletea
आपका दूसरा ब्लॉग गुनगुनाती धूप देखा और आपकी आवाज में गीत दिल हुम हुम करे सुना, अच्छा लगा। कहीं- कहीं आपकी आवाज थोड़ी ज्यादा तेज लगी। बहरहाल, आवाज अच्छी है और गीतों का चयन सुरुचिपूर्ण।
ReplyDeleteधन्यवाद संतोष जी.
DeleteGyasu Shaikh:
ReplyDeleteनई-नई सी अभिव्यक्ति है
प्रतीकों से प्रयत्नों की उड़ान…
जो दमदार है…संबल भी दे।
वाह....अनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं