भारत में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आज के दिन ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जा
रहा है। यहाँ एमिरात में अधिकतर विद्यालय ८ सितम्बर से खुलेंगे इसलिए इस औपचारिकता
तो उसी हफ्ते किसी दिन पूरा किया जाएगा। दो मास का ग्रीष्म अवकाश समाप्त होने में
मात्र दो दिन रह गए हैं।
शिक्षकों को मान-सम्मान के साथ धन्यवाद देने का यह दिवस कुछ कार्यक्रमों
और भाषणों के साथ संपन्न कर दिया जाता है।सभी भाषण आदर्श बातें कहते हैं, उनका
अर्थ समझे जाने या ग्रहण किये बिना बस ‘कह’
दिया जाता है,उसके बाद वही दिनचर्या वही छात्रों का शिक्षकों के प्रति और छात्रों
का शिक्षकों के प्रति व्यवहार रहता है ।
क्या शिक्षक छात्रों के मन
में इस दिवस विशेष के बाद/के कारण अधिक
सम्मान अर्जित कर पाते हैं?
शायद नहीं क्योंकि हमारी शिक्षा व्यस्वथा ही ऐसी है कि बच्चों को एक निर्धारित
पाठ्यक्रम को बस पढ़ाया जाता है और छात्रों के लिए रिपोर्ट कार्ड में अच्छे ग्रेड
हासिल करना शिक्षकों और अभिभावकों का मुख्य लक्ष्य रहता है। उन्हें पढ़ने नहीं दिया
जाता ! स्वयं सीखने पर बल नहीं दिया जाता।
एमिरात शिक्षा बोर्ड के विभिन्न देशों के स्कूलों के एक अध्ययन में यह
बताया गया था कि भारतीय अध्यापक बोलते अधिक हैं, पढ़ाते समय छात्रों को बोलने का
अवसर नहीं दिया जाता! [यह रिपोर्ट स्थानीय
अखबारों में प्रकाशित हुई थी] और मुझे सबसे पहले यह खबर देने वाला पाँचवीं कक्षा
का मेरा एक विद्यार्थी था।
हम शिक्षकों को यह याद रखना होगा कि स्कूली जीवन उम्र का ऐसा दौर होता
है जिसमें छात्र हर पल कुछ न कुछ सीखता और ग्रहण करता रहता है यह अवस्था बहुत ही
संवेदनशील और गीली मिट्टी की तरह होती है जिसे कुम्हार कोई भी रूप दे सकता है। अपने
आसपास के वातावरण से ,अपने घर से अपने सहपाठियों से और फिर अपने अध्यापकों से
सीखता है।सिखाने से अधिक उसके सीखने पर बल
देना होगा।
शिक्षक दिवस पर खानापूर्ति के
आयोजन के अतिरिक्त हमें शिक्षा के वर्तमान
स्वरूप,शिक्षा-शिक्षकों के गिरते स्तर पर भी बात करनी चाहिए।उन समस्याओं पर भी विचार करना चाहिए जिनसे छात्रों और शिक्षकों के
बीच दूरी उत्पन्न हो गयी है। दोनों पक्षों के बारे में कुछ बातें मैं यहाँ कहना चाहती हूँ।
बहुत से शिक्षक पुस्तकों से
बाहर आना नहीं चाहते कक्षा में पुस्तकीय ज्ञान देकर समझ लेते हैं कि उनका कार्य
समाप्त हुआ जबकि ऐसा नहीं है ।घर के बाद बच्चा सब से अधिक समय विद्यालय में ही रहता है ,ये आठ घंटे
उसके जीवन के बहुमूल्य घंटे होते हैं। इस कारण भी एक विद्यालय और उसके शिक्षकों का
उसके भविष्य की नींव बनाने में बड़ा हाथ
होता है।मुझे दुःख होता है जब मैं किसी को कहते सुनती हूँ कि मुझे अपना स्कूल याद
नहीं करना या मुझे स्कूल पसंद नहीं है। स्कूल की छवि बच्चे के दिल में उसके संपर्क
में आए उसके शिक्षकों से बनती है। कहीं न कहीं इस के लिए हमारी शिक्षा व्यस्वथा भी
दोषी है जो पुस्तक में सिमट गयी है,सी बी
एस सी ने सतत सिखने की प्रक्रिया के तहत नए कार्यक्रम और पद्धतियाँ लागू की परंतु
वे इस बात को अनदेखा कर रहे हैं कि भारतीय
मानसिकता पहले अंकों में सिमटी थी और अब
ग्रेडिंग या सी जी पी ऐ में अटकी गई है ,बच्चे के सर्वांगीण विकास की यह नई योजना अब भी सही मायनो में कहीं सफल होती
दिखती नहीं है ।जिसके कारणों हेतु बहस के लिए यह एक अहम विषय हो सकता है।
छात्रों में अनुशासनहीनता की बातें आम हो गयी हैं जिसके कई कारण हैं
मुख्य कारण उसके आसपास का वातावरण है।ऐसे घटनाएँ देखी गयी हैं जिनमें छात्र अपने
शिक्षक के प्रति हिंसक हो जाते हैं ।
उनके मन में शिक्षकों के प्रति सम्मान की कमी होना भी कहीं न कहीं
शिक्षकों को भी दोषी बताता है।ऐसे शिक्षक जो स्वयं अनुशासनहीन हैं ,जो अहंकार, ईर्ष्या ,
द्वेष और पक्षपात का प्रदर्शन करते हैं जिन्होंने इसे व्यापार बना डाला है ,जो विद्यालयों में काम सिर्फ इसलिए करते हैं कि उन्हें अधिक से
अधिक ट्यूशन मिले ,जो अभिभावकों पर दवाब डालते हैं कि उन्हीं के पास उनके बच्चों
को ट्यूशन के लिए भेजा जाए तो उन्हें कौन मान देगा? आज के विद्यार्थियों में अगर
संस्कारों की कमी हैं तो उनका परिवेश ही
नहीं उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक भी कहीं न कहीं दोषी माने जाते हैं। ऐसी घटनाएँ
सुनने में आती हैं ऐसे शिक्षक भी हैं जो अपने छात्रों का शारीरिक तथा मानसिक शोषण करना
अपना अधिकार समझते हैं।कितने लोग
स्वीकारते हैं कि शिक्षा छात्रों का मौलिक अधिकार है,व्यापार नहीं!
कहना होगा कि वर्तमान हालात बहुत अच्छे नहीं
हैं लेकिन आज भी इस पद को गरिमापूर्ण और सम्मानीय माना जाता है।
मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हूँ कि मुझे स्कूल
से कॉलेज तक अच्छे शिक्षक मिले।
कक्षा चार की मेरी अध्यापिका श्रीमती गुरुचरण
कौर जी से मैं विशेष प्रभावित हुई थी और उन्हें
देख कर मैंने भी शिक्षक बनने का सोच लिया था।मेरा भी प्रयास है कि मैं भी उन्हीं की तरह सफल
अध्यापक बनूँ और अपने छात्रों को हमेशा याद रहूँ।
शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को बधाई और
शुभकामनाएँ!
गत वर्ष मिला कार्ड |
आपने कक्षा चार में शिक्षक बनने की जो बात सोची और जिस आधार पर सोची वही स्थितियां सभी विद्यालयों में होनी चाहिए। आज समाज में व्याप्त समस्याएं कहीं न कहीं उसी कमी की उपज हैं, जिसके तहत बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं दी जाती।
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteमुझे तो आज भी अपने समय की टीचर्स की बातें ओर व्यवहार सब कुछ याद है ... आज भी वो मिलते हैं तो वैसा ही स्नेह रखते हैं ... समाय के साथ व्यावसायिकता बढ़ गई है ... ओर इस रिश्ते में वो बात नही रही है ... खास कर के अमीरात के भारतीय स्कूलों में शिक्षक हर दूसरे दिन बदल जाते हैं ... वो बस जो मिले वही अर्जित करने आते हैं ... दोष सभी का है मैं मानता हूं पर शायद सबसे ज्यादा व्यावसायिकता का ...
ReplyDeleteआदरणीया ,
ReplyDeleteशिक्षक दिवस पर बहुत ही सार्थक लेखन |सुंदर प्रस्तुति|
नई पोस्ट:-
“जिम्मेदारियाँ..................... हैं ! तेरी मेहरबानियाँ....."
“शीश दिये जों गुरू मिले ,तो भी कम ही जान !”
शिक्षक दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteआभार !!
श्रद्धेय याद रहते हैं ..
ReplyDeleteअच्छे बुरे सभी तरह के शिक्षक पहले भी थे और आज भी हैं, लेकिन आज शिक्षकों पर भी द्बाव रहता है ठीक उसी तरह जैसे अखबार के संपादकों पर अखबार के मालिकों का रहता है.
ReplyDeleteपहले के समय में शिक्षा का दान होता था और आज शिक्षा का व्यापार होता है. इस अवस्था में कोई करे भी तो क्या?
बहुत ही विचारणीय आलेख, शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
ek teacher ko salam...
ReplyDeleteshubhkamnayen.. :)
सोचने पर विवश करती लेख..
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाये...!
भारत में सभी चीजों का क्षरण हुआ है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति !!शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाये...!
ReplyDeleteआप सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteजिस व्यक्ति को अपने शिक्षकों के प्रति इस तरह का सम्मान भाव वर्तता है वो निश्चित ही खुद भी एक उम्दा अध्यापक होता है..यकीनन आप एक ऐसी ही अध्यापिका होंगी...
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
शिक्षकों का ज़िन्दगी में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है... हर इक की ज़िन्दगी में कम से कम एक शिक्षक ज़रूर ऐसे होते हैं जो उम्र भर याद रहते हैं।
ReplyDeleteताऊ जी की प्रतिक्रिया बहुत सटीक है -
ReplyDelete"अच्छे बुरे सभी तरह के शिक्षक पहले भी थे और आज भी हैं, लेकिन आज शिक्षकों पर भी दबाव रहता है ठीक उसी तरह जैसे अखबार के संपादकों पर अखबार के मालिकों का रहता है."
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आज प्रायः स्कूलों में विद्यार्थियों को सिखाने से ज्यादा उनके पाठ्य क्रम को पूरा करने पर ध्यान भर रहता है … नतीजा ये होता है कि विद्यार्थियों में मौलिक चिंतन का गुण नहीं पनप पाता !
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मुझे अपने स्कूली जीवन के कई उत्कृष्ट शिक्षकों की याद आती है …. विज्ञान के माडल बनाने के लिए सबसे कहा जाता और छात्रों से पूछा जाता कि कौन क्या बनाएगा / क्या बनाना चाहता है …. मैं भी अपनी ऊलजलूल कई सारे आईडिया पेश करता …. मेरे शिक्षक ने कभी डांटा नहीं … न ही उपहास उड़ाया … बहुत ध्यान से बातों को सुनते और समझाते कि इसमें क्या कमी है ! आज इतना धैर्य शिक्षकों में नहीं देखने को मिलता !
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बहुत ही प्रभावी और सुन्दर पोस्ट है
बधाई / आभार
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाये.
very good article with real truth .I had been a teacher long time in India . Liked it very much .
ReplyDeleteबच्चों से शिक्षक का संवाद कैसे हो यह एक जटिल विषय बन गया है -अनुशासन कितना और खुली छूट कितनी यह एक कुशल शिक्षक तय कर सकता है -आप निश्चित ही एक कुशल शिक्षक होंगीं -शिक्षक दिवस की विलम्बित शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआदरणीया अल्पना जी शिक्षक दिवस पर आपका ये चिंतन अत्यंत बिचार्नीय है ...बहुत ही सम्मान का प्रोफेसन है किन्तु वाकई लोगों ने निजी स्वार्थों के कारन इसे बदनाम किया है .अपना हर अच्छा शिक्षा क हमेशा स्मृति पटल पर रहता है ..आपकी तरह मैं भी अपने को सौभग्यशाली मानता हूँ के मुझे आज तक सभी शिक्षक ऐसे मिले जिनहे भूल पाना नामुमकिन है ..शिक्षक दिवस के देर से ही सही ढेरों शुभकामनाओं के साथ
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ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteआप ने ठीक ही कहा है कि हर शिक्षक दिवस पर हर विद्यालय दो -चार भाषणों और कुछ एक प्रोगाम दिखा कर अध्यापको के प्रति अपने कर्तव्य का इति श्री समझा जाता है। पर दिन प्रति दिन छात्रों में अनुशासनहीनता देख कर लगता है कि सब बेकार है।
फिर भी हमें कोशिश करनी चाहिये कि छात्रों में अनुशासनहीनता दूर हो और मन से सब शिक्षकों के प्रति छात्रों में इज्जत हो।
आभार,
विन्नी,
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ReplyDeleteहम शिक्षकों को यह याद रखना होगा कि स्कूली जीवन उम्र का ऐसा दौर होता है जिसमें छात्र हर पल कुछ न कुछ सीखता और ग्रहण करता रहता है यह अवस्था बहुत ही संवेदनशील और गीली मिट्टी की तरह होती है जिसे कुम्हार कोई भी रूप दे सकता है। अपने आसपास के वातावरण से ,अपने घर से अपने सहपाठियों से और फिर अपने अध्यापकों से सीखता है।सिखाने से अधिक उसके सीखने पर बल देना होगा।
ReplyDeleteati sundar avam mahatavpoorn bhi .