स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

August 13, 2013

क्या बदला है अब तक? क्या बदलेगा आगे?

इस साल २०१३ का स्वतंत्रता दिवस आने ही वाला है ,हर वर्ष की भांति वही औपचारिकताएँ दोहराई जाएँगी।
भारत व भारत के बाहर भारतीय समुदायों में झंडा फहराया जाएगा,भाषण दिए जाएँगे ,मार्च पास्ट ,तरह -तरह के आयोजन एवं प्रतियोगिताएँ आदि होंगी।
समारोह समाप्त होने के बाद देशभक्ति की भावना अवकाश की प्रसन्नता में घुल जाएगी ।
हम फिर से वही हो जाएँगे जो देशगान और झंडे फहराए जाने से पहले तक थे अर्थात वही तटस्थ नागरिक जो स्वयं में मग्न है ,जो अपने आसपास होने वाली हर घटना से उदासीन है।
अन्याय कहीं हो रहा है तो होने दो।।हमारे साथ तो नहीं हो रहा न! यह सोच वाला एक आम नागरिक।

मैं इस नागरिक को दोष नहीं दूँगी क्योंकि इसे ऐसा परिस्थितियों ने बनाया है।

वह कहीं हो रहे हर एक अन्याय को रोक नहीं सकता क्योंकि उसके पास कई कारण हैं -

  • ·        उसके हाथ बंधे हैं
  • ·        उसे अपने मौलिक अधिकारों का ज्ञान नहीं है
  • ·        वह कमज़ोर है [आर्थिक/सामाजिक/शारीरिक किसी भी स्थिति से]
  • ·        वह डरता है कुशासन से ।
  • ·        वह जानता है कि अगर वह यहाँ हस्तक्षेप करेगा तो उसका खुद का या उसके सगे सम्बन्धियों का जीवन भी दांव पर लग सकता है।
  • ·        वह चिल्ला नहीं सकता क्योंकि उसे न्याय व्यवस्था पर पूर्ण विश्वास नहीं है।
  • ·        वह शंका में है कि शिकायत करे तो किस से ?
  • ·        उसकी आँखों पर ऐसी पट्टी है जो उस ने खुद ही बाँधी है ,जिसके द्वारा वह कुछ भी ऐसा देखना नहीं चाहता जो उसे किसी कठिनाई में डाल दे।
  • ·        वह बचता -बचाता चलता है जब तक स्वयं  कुव्यवस्था की किसी दुर्घटना का शिकार न हो जाए !
  • आदि,आदि 

अब प्रश्न यह है कि एक आम नागरिक में देश के प्रति प्रेम क्यों नहीं है? किसने उसे ऐसा उदासीन बनाया?
शायद उसके ऐसा बनने की दोषी  बहुत हद तक यहाँ की व्यवस्था  भी है जो आज भी गुलामी वाली मानसिकता का शिकार है !
आज भी गोरी चमड़ी वाले विदेशी के आगे नतमस्तक हो जाने की मानसिकता,उन्हें ही उच्चकोटि का उच्चवर्ग का  मानने की मानसिकता ! बिना सोचे -समझे उनके हर अच्छे-बुरे आचरण  का अनुकरण / अनुसरण  करने की मानसिकता। स्वयं  को उनसे हीन समझने की मानसिकता

स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हम में बदला क्या है ?जो भी परिवर्तन हुआ है उस में अधिकतर ऐसे नकारात्मक बदलाव भी हैं जो समय रहते न चेते तो देश और देश की संस्कृति को गहरे रसातल में ले जा सकते  हैं !
मेरी नज़र में कुछ परिवर्तन ऐसे  हुए हैं,जो चिंताजनक तो हैं ही भविष्य में अवश्य ही देश को नुकसान पहुँचायेंगे-
 
साभार-गूगल 
पहला ,हम अपनी भाषा को तुच्छ मानने लगे हैं ,आप झुठलायें  मगर यह सच है कि अंगेजी बोलने वाले को सम्मान और अपनी भाषा में ही सिर्फ बात करने वाले को नीची नज़र से देखा जाने लगा है।
अन्य विदेशी भाषा सीखना /आना अच्छी बात है मगर उसे अपनी भाषा की जगह दे देना ,भविष्य के लिए बिलकुल अच्छा नहीं है।
अंग्रेज़ी बोलना स्टेट्स सिम्बल बन गया है।
एक उदाहरण खुद का देखा हुआ--अक्सर घरों में बच्चों से कहते सुना होगा कि  बेटे एपल ले लो, बेटे ग्रेप्स खा लो!
अंग्रेज़ी के प्रति मोह इतना है कि हमने  नूडल्स,पास्ता या पिज्ज़ा के नाम नहीं बदले बल्कि अपने व्यंजनों के हिंदी के नाम अंग्रेज़ी में बदल दिए ।।पानी-पूरी को वाटर बाल्स' कहने लगे! 
हिंदी बोलने वाले अब हिंगलिश बोलने लगे हैं !
 फिल्मों का भी भाषा के प्रसार में बड़ा हाथ है,अब की फ़िल्में हिंगलिश को बढ़ावा दे रही हैं।

हमने  विदेशी कंपनियों का सामान देश में बेचना -खरीदना शुरू कर तो दिया लेकिन उन्हें उनके सामान पर जानकारी हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में देना अनिवार्य नहीं किया ।
क्यों?जबकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि उत्पाद की जानकारी उसके लेबल पर हिंदी या  क्षेत्रीय भारतीय भाषा में भी हो। क्या यहाँ सभी अंग्रेज़ी जानते हैं ?
हमारी सरकारी तंत्र ही कभी अपनी भाषा को लेकर गंभीर हुआ ही नहीं तो विदेशी कंपनियां भी क्यूँ रूचि लें?

यूँ ही नहीं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने वर्षों पूर्व अपनी कविता मातृभाषा में कहा है  कि 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।'

दूसरा बड़ा परिवर्तन है पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण! हम अपनी समृद्ध भारतीय संस्कृति को भूल रहे हैं जो आने वाले कल के लिए घातक साबित होगी।

बड़ों के साथ व्यवहार ,उनके सामने उठने -बैठने ,बोलने की तमीज-तहजीब,कपड़े पहनने का तरीका  सब पश्चिमी तौर तरीकों के अनुसार किया जाने लगा है।

मदिरापान यानि लिकर का प्रयोग जहाँ भारतीय संस्कृति में वर्जित था इसे असुरों का पेय बताया जाता था वहीँ अब नयी युवा पीढ़ी को आप इसके सेवन का आदी देखें तो आश्चर्य नहीं होगा! क्या लड़के ,क्या लड़कियाँ ।।अब इसे फैशन और स्टेटस सिम्बल बताते हैं।
भारत आगे आने वाले १० सालों में युवाओं का देश  होगा क्योंकि उस समय यहाँ सबसे अधिक युवा होंगे लेकिन अगर ये युवा इस तरह पश्चिमी तौर तरीकों का ,उनकी संस्कृति का अंधानुकरण करेंगे तो क्या यह देश को आगे ले जाने में सक्षम होंगे?
 
चित्र गूगल से 
युवाओं में नशे की आदत को बढ़ाने के लिए मैं न केवल उनके अभिभावकों जो उन्हें खुल कर पैसा देते हैं,उनकी गतिविधियों पर नज़र और नियंत्रण नहीं रखते बल्कि फिल्मों  को भी दोष दूँगी जिन्होंने पीना -पिलाना इतना ग्लेमरस बना दिया है कि युवा इसे फैशन या स्टेटस सिम्बल मानने लगे हैं।१९५० की एक फिल्म के गाने का दृश्य देखा था जिस में पार्टी चल रही है और सभी के हाथों में चाय का कप था ।और फ़िल्में जिन्हें समाज का दर्पण भी कहा जाता है ।आज की फ़िल्में देख लिजीए । चाहे हीरो हो या हेरोइन नशा करते ,नशे में झूमते -गाते दिखाई दे जाते हैं !
मुझे जहाँ तक याद है कि [शायद] फ़िल्मी परदे पर सबसे पहले 'साहब ,बीवी और गुलाम' में परदे पर मीना कुमारी के किरदार ने बहुत परेशान हो कर जब पीना शुरू किया तो सभी के दिल में किरदार के प्रति सहानुभूति जाग गयी थी।
उसके बाद फिल्मों में  पीना-पिलाना सिर्फ निराशा और हताशा की स्थिति में ही दिखाया जाता था लेकिन   आधुनिकता के नाम पर अब तो फिल्म में हीरो- हीरोईन खुशी में ,रोमांच के लिए पीते हैं । हेरोईन गाती है 'मैं टल्ली हो गयी!'। भाषा में अभद्र शब्दावली की बात क्या  करें अश्लील गाने गाना वाला आज ७० लाख रूपये प्रति गाना ले रहा है । क्योंकि उसकी माँग है वही पसंद बन गयी है मगर क्यों? क्या यह एक संकेत नहीं कि युवाओं की मानसिकता में क्या बदलाव आया है?
पाश्चात्य जीवन शैली जो आत्मकेंद्रित मानी जाती है उसे अपना कर अपनों से दूर रहने में सुख का अनुभव करते हैं। ऐसे में आपसी सहयोग, एकता ,प्रेम का महत्व ये कितना समझ पाते हैं?
कहाँ ले जा रहे हैं हम अपनी इस युवा पीढ़ी को ? हम इन से क्या नैतिकता की बातें कर सकते हैं?

[यह चित्र फेसबुक से लिया गया है.इस पर लिखा शेर किसका है मालूम नहीं ]

तीसरा जो परिवर्तन है वह राजनीति में है -राजनैतिक नैतिकता का ह्रास होना ,राजनैतिक चरित्र में गिरावट का आना ।जिसके चलते इतने वर्षों बाद भी हर नागरिक को खाना,पानी,आवास,शिक्षा  जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हैं
उन नेताओं की सोच इसका कारण है जो सिर्फ कुर्सी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है।जिन्होने कृषि प्रधान देश को कुर्सी प्रधान देश  बना डाला ! आम जनता को बेवकूफ बनाने के लिए राज्यों  को /लोगों को भी बाँट रहे हैं। उनके लिए उनकी स्वार्थपूर्ति पहले हैं देश नहीं ।
एक समय था जब इस देश में श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया था।।'जय जवान,जय किसान ' क्योंकि वे इन दोनों का महत्व जानते थे।
लेकिन आज न किसान को महत्व दिया जा रहा है बल्कि वह तो गंवार अनपढ़ और 'परे हट' वाली श्रेणी में रखा जाने लगा  है ! और जवान!।। उसके लिए तो बिहार एक मंत्री यह कहते सुनायी दिए कि वे तो जाते ही मरने के लिए हैं ! अफ़सोस होता है ऐसी सोच पर! इसी तरह की सोच के व्यवहार का एक उदाहरण देखें 'किसे क्या मिला?' इन चित्रों में -
कमांडो के लिए साधारण बस [ताज पर हुए आतंकी हमले पर जीत के बाद ]
खिलाडियों के लिए डिलक्स बस मेच जीतने के बाद 

आज क्रिकेट के खिलाडियों और फ़िल्मी कलाकारों को जिस स्तर पर  सम्मान  /आर्थिक सहायता /पुरस्कार दिए जाते हैं क्या वैसे ही कभी सैनिकों या किसानो के लिए दिए गए?
हम कहते हैं उन्हें आप ये सभी सम्मान नहीं देते परंतु  कम से कम मान तो दें!

मेरे विचार में हमारे देश में यही दो सबसे अधिक उपेक्षा के शिकार हैं जो भविष्य के लिए हितकारी नहीं है।

आने वाले कल की युवा पीढ़ी जो सब कुछ इंस्टेंट चाहती है ,जो आराम पसंद है वह जब ऐसे वातावरण में बढ़ी होगी तो क्या कल सेना  में या खेतों में काम करना पसंद  करेगी?

कौन अन्न पैदा करेगा और कौन देश की जल/थल/वायु सीमा की रक्षा करेगा ? और तो और ,इन सेवाओं  में लोग नहीं भरती होंगे तो स्वयं इन नेताओं को सुरक्षा घेरा देने वाले नहीं होंगे!

रोज़गार के अवसर और सुरक्षित  वातावरण जब तक देश में नहीं होगा तब तक देश से प्रतिभाओं का पलायन भी होता रहेगा। देश से प्रतिभाओं के पलायन व्यवस्था में दोष के कारण ही है।
सब जानते  हैं कि राजनैतिक चरित्र गिरता है तो राष्ट्र पर सीधा असर पड़ता है।
ईश्वर की कृपा है इस देश  पर कि अभी भी कुछ अच्छे लोग राजनीति  में हैं जिनके कारण हम भविष्य के लिए आशा बनाए रख सकते हैं।
लिखने को कहने  को बहुत कुछ है लेकिन आज के लिए बस इतना ही!

जिस तरह की घटनाएँ बनती दिखाई दे रही हैं उनके चलते एक विचार आता है  कि  स्वतंत्रता दिवस हर वर्ष मनाना है तो हर नागरिक को देश के प्रति प्रेम की भावना जगाए रखना होगा और अपनी आँखें भी खुली रखनी होगी ताकि किसी भी  रूप में आ कर कोई' अपना या पराया  हमारी यह आज़ादी न छीन  ले!
 १५ अगस्त -स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!


26 comments:

  1. अल्पना जी बहुत खूब कहा है आपने..
    सब कुछ बदलेगा... जब हर व्यक्ति बस खुद को बदलने कि सोच ले..
    http://prathamprayaas.blogspot.com

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  2. बहुत ही सार्थक विचार मंथन
    देश को आजाद हुए 66 वर्ष बीत गए …. बहुत ही लंबा अरसा गुजर गया !
    हमने क्या पाया और क्या खोते चले गए …. ये सोचने की बात है
    आपने जिन-जिन मुद्दों की बात की वो सभी ज्वलंत मुद्दे हैं जो सीधे तौर पे राष्ट्रीय अस्मिता और उसके स्वावलंबन से जुड़े हैं
    बहुत ही सुन्दर - बेहतरीन और पठनीय पोस्ट

    आभार / शुभ कामनाएं

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  3. बहुत ही सटीक और सामयिक आलेख लिखा है आपने, जिसमे वर्तमान की कई विसंगतियों को समेटा है.

    आम आदमी करे तो क्या करे? हमारा परिवेश और कुशासन के तंत्र ने लोगों को एनाकोंडा की तरह जकड लिया है. साधारण आदमी तो अपने बाल बच्चों की खातिर डर कर समझौते कर लेता है पर अन्ना हजारे जैसे लोगों का क्या हश्र किया इन लोगों ने?

    हमारी तथाकथित लोकशाही में सब अपने स्वार्थ को फ़लीभूत होते देखना चाहते हैं, स्थितियां वाकई खतरनाक हैं, जिन्हें देख सुनकर ही डर लगता है.

    रामराम.

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  4. भाषा और सामाजिक मान मर्यादा का भी क्या कहें? हर चीज पैसे की गुलाम होगई है. पैसे दो और जो चाहे करवालो, गवालो, सिर्फ़ पैसे से मतलब है, किसी भी तरह के सामाजिक सरोबार से हमको मतलब नही रह गया है.

    आपने बहुत ही ज्वलंत समस्याओं पर सटीक लिखा है, काश हम वाकई स्वतंत्रता दिवस मना पायें.

    स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं. स्वीकार करें.

    रामराम.

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  5. सारगर्भित आलेख. ऊपर के बिन्दुओं में ४ और ५ आपस में जुडे हैं. आज के जमाने में सफल होने के लिए अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान जरूरी है परन्तू अपनी भाषा की कीमत पर नहीं. नैतिकता की बात करना बेमानी लगने लगा है.

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  6. आज में जीने का आदर्श जहाँ अधिकतर ने अपना रखा है ,वहां कल की कौन फिक्र करता है.। वास्तविकता तो शायद इससे भी कुरूप है.। पर निराशा के भाव में अभी हम कह सकते है " कुछ बात तो है की हस्ती मिटती नहीं हमारी "। धुंधले आयना को साफ करता लेख,

    अच्छी प्रस्तुति ….

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  7. स्वतंत्रता दिवस मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है ,,,

    RECENT POST : जिन्दगी.

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  8. आज बच्‍चे या तो टीवी/वीडि‍यो गेम आदि‍ के भरोसे हैं या स्‍कूलों के, मातापि‍ता को भी उनके साथ बैठना चाहि‍ए

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  9. बहुत ही सार्थक लेखन |

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  10. सटीक विचार ..... खिलाड़ियों को इतना अधिक पैसा और सम्मान और सैनिकों और किसान को कुछ भी नहीं .... विडम्बना है देश की .

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  11. Alpanadi------aapka lekh akxharsha sach hai.sambhavatah is lekh ko padhne ke baad bhi aankhen khul saken----------
    poonam

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  12. Alpna di------aapke aalekh ek-ek shabd akxharsh sach hai. kash! ise padhne ke baad bhi logonon ki aankhen khul saken----------
    poonam

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  13. आदेर्नीया अल्पना जी ..आपके अथक प्रयास और चिंतन की परिणित इस लेख के माध्यम से हम लोगों तक पहुंचा .आजादी के इतने सालों के बाद हमने सिर्फ खोया ही खोया है ...खिलाडियों और सैनिको और किसानो के बीच भेदभाव को आपने बखूबी उभारा है ..आपके इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई..सादर

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  14. न जाने किस राह चला है देश हमारा..

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  15. भारत आगे आने वाले १० सालों में युवाओं का देश होगा क्योंकि उस समय यहाँ सबसे अधिक युवा होंगे लेकिन अगर ये युवा इस तरह पश्चिमी तौर तरीकों का ,उनकी संस्कृति का अंधानुकरण करेंगे तो क्या यह देश को आगे ले जाने में सक्षम होंगे?...............................इन युवाओं के भरोसे सब खत्‍म ही होगा।
    आज क्रिकेट के खिलाडियों और फ़िल्मी कलाकारों को जिस स्तर पर सम्मान /आर्थिक सहायता /पुरस्कार दिए जाते हैं क्या वैसे ही कभी सैनिकों या किसानो के लिए दिए गए?........सब के मन का दुख कह दिया आपने। अत्‍यन्‍त विचारणीय आलेख।

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  16. राजनैतिक पतन .. सही दिशा न दे पाना समाज को ... आधुनिकरण अंधा धुंध ...
    सच लिखा है आपने ... सभी कारण जो आपने लिखे हैं वो जिम्मेवार हैं देश को रसातल में ले जाने के लिए ... आजादी के बाद अगर देश के युवाओं को सही दिशा दी जाती तो आज समाज का चेहरा देश का चेहरा कुछ और होता ...

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  17. स्वाधीनता दिवस पर आपने खुल कर अपने विचार व्यक्त किये हैं -एक सार्थक चिंतन जिससे असहमत नहीं हुआ जा सकता!

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  18. प्रभावी अभिव्यक्ति...बधाई...

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  19. बिलकुल सहमत हूँ आपसे
    हम अपनी भाषा अपनी संस्कृति से जितना दूर होते जा रहे हैं वो वाकई चिंताजनक है
    फिल्मों में तो अब लगभग हर सिनेमा में एक गाना ऐसा मिल ही जाता है जिसमें या तो नायक-नायिका बोतले लिए नशे में झूम रहे हों
    या फिर गानों के शब्द उसको प्रोत्साहित कर रहे हों
    बहुत दुःख होता है यह सब देखकर
    लालबहादुर शास्त्री जी ने जवानों और किसानों दोनों की अहमियत जानी थी
    पर आज के नेता क्या समझेंगे, उनसे कुछ आशा रखना बेकार है

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  20. influencial expression.You are right.
    Vinnie

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  21. बहुत खूब चित्रण किया है आपने , आजकल सब कुछ हासिये पर है

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  22. पढ़ते-पढ़ते कई तरह की भावनाएं आयीं और गयी....कोरे भी भींगे..जबड़े भी भींच गये ...बहुत सार्थक लेख अल्पना जी...आपको पढ़ना हमेशा अछा लगेगा !
    बहुत अच्छा लगा आपसे जुड़ना भी...ताऊ जी को धन्यवाद जो हमें बहुत अच्छे -अच्छे मित्रों से मिलाये...!!

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  23. बहुत ही सटीक आलेख लिखा है आपने

    संजय भास्कर
    शब्दों की मुस्कराहट पर ...तभी तो खामोश रहता है आईना

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  24. It is sad to see independent India is
    slave of western culture . We cannot do anything . It is sad . Few saints and leaders like Anna and Ram dev have enemies like they are only Indians rest are NRI Indians .

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  25. आवश्यक चिंतन का विषय ...
    आभार !!

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आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना