क्या आप सुन सकते हैं ?हाँ..तो आप को सुनना ही होगा..
इस विडियो को देख कर मैंने समझा कि इस उपेक्षित वर्ग को हमारी आपके सहयोग की कितनी ज़रूरत है ,आप देखेंगे तो आप भी जान सकेंगे कि किस प्रकार उनका अब तक का यह सफ़र रहा और मिलिए उत्तरांचल के करण से जिस की कहानी किसी भी बघिर विकलांग व्यक्ति को प्रेरणा दे सकती है उसमें आत्मविश्वास भर सकती है .
अगर मैं आप से कहूँ कि आप अपने कानो को अच्छी तरह से बंद कर लें..और
इसी तरह कम से कम एक घंटा अपनी सामान्य दिनचर्या करने का प्रयास करें .क्या आप कर
सकेंगे?अगर हाँ ,तो कितनी देर तक?
है न मुश्किल? हम जानते हैं कि हमारी पाँच इन्द्रियों में से श्रवण
क्षमता का होना उतना ही ज़रुरी है जितना हमारा देख सकना.हम पूरी तरह से सक्षम हैं
फिर भि किसी एक इंद्री के कमज़ोर हो जाने पर खुद को असहाय सा समझने लगते हैं
क्या आप ने कभी उनके बारे में सोचा है जो कभी सुन नहीं पाते.ईश्वर ने उन्हें
इस क्षमता से महरूम रखा है.
बच्चे सुनकर बोली सीखते हैं ,जब ऐसे बघिर बच्चे कुछ सुन ही नहीं सकेंगे
तो बोलेंगे कैसे?इस तरह वह सुन न सकने के कारण बोलना भी सीख नहीं पाते. और हम
जानते हैं कि भाषा स्वयं
को अभिव्यक्त करने के लिए आवश्यक है.
भारत में बहुत ही कम स्थानों पर इन बच्चों के लिए विशेष विद्यालय
हैं,उनकी शिक्षा उनके रोज़गार की व्यवस्था कैसे हो ?क्या हमने आपने कभी इस बारे में
सोचा है?
कोई हाथ- पैर से विकलांग होता है तो वह दिखता है, उसे तुरंत नोटिस किया जाता
है लेकिन जो व्यक्ति देखने में पूर्ण
परंतु बघिर है तो तुरंत आप उस के बारे में जान नहीं पाते.
ऐसे व्यक्ति की
समस्या को समझना आसान नहीं होता .
वे अगर इशारों की भाषा सीख भी गए तो हर किसी को यह भाषा आती नहीं तो इन से
कैसे संवाद करें और आपसी संवाद न कर सकने की स्थिति में ये समाज से कट ही जाते हैं.
घर ही नहीं बल्कि बाहर भी उपेक्षित इन बच्चों और व्यक्तियों के लिए न
तो कोई समय देता है न इन्हें शिक्षा और रोज़गार के पर्याप्त अवसर मिल पाते, सच तो यह है कि लोगों को पूरी जानकारी भी नहीं होती कि इनके लिए भी कुछ किया जा सकता है.
आज हम आधुनिक तकनीक के विकासशील दौर में हैं जहाँ समाज के इस वर्ग के
लिए हमें हर स्तर पर कुछ न कुछ करना चाहिए .
यह भी जानना चाहिए कि विकलांग का अर्थ सिर्फ शरीर के हाथ या पाँव का न
होना ही नहीं है ,विकलांगता का अर्थ है शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक,
बौद्धिक
विकास में किसी प्रकार की कमी का होना .
श्रवण क्षमता का न होना भी विकलांगता के अंतर्गत ही आता है, इसे श्रवण
विकलांगता कहते हैं .
इसके कई कारण होते हैं जैसे अनुवांशिक
बघिरता,समय से पहले जन्म होना ,जन्म होते समय ऑक्सीजन की कमी,गर्भावस्था के समय के
रोग ,उस दौरान ली गई किसी दवा का दुष्प्रभाव ,कां के अंदरूनी हिस्से में चोट लग
जाना ,किस रोग विशेष से पीड़ित होना ,कान की बीमारियाँ आदि.
जिन दोषों को दूर नहीं किया जा सकता वहाँ यह
विकलांगता स्थायी हो जाती है और व्यक्ति अक्षम लेकिन हम और आप अगर सहयोग करें तो
समाज का यह उपेक्षित इस वर्ग अपनी अक्षमता
को अपनी ताकत बनाकर सब के साथ कदम मिला कर चल सकता है.माना जाता है कि श्रवण
विकलांग व्यक्ति में ध्यान केंद्रित कर सकने की अभूतपूर्व क्षमता होती है इसलिए ऐसे
व्यक्ति अपना हर कार्य बेहतर कर सकते हैं.
रुमा रोका एक ऐसी ही
सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं जो इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं.२००४
में उन्होंने संकेतों की भाषा सीखी ताकि इस वर्ग विशेष से जुडकर उन्हें समाज की
मुख्य धारा से जोड़ सकें .तब से अब तक उनके प्रयासों से ५८० युवक-युवतियाँ देश के २५
बड़े संस्थानों में सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं .
इस विडियो को देख कर मैंने समझा कि इस उपेक्षित वर्ग को हमारी आपके सहयोग की कितनी ज़रूरत है ,आप देखेंगे तो आप भी जान सकेंगे कि किस प्रकार उनका अब तक का यह सफ़र रहा और मिलिए उत्तरांचल के करण से जिस की कहानी किसी भी बघिर विकलांग व्यक्ति को प्रेरणा दे सकती है उसमें आत्मविश्वास भर सकती है .
समाज सेवी रुमा रोका की अब तक की यह यात्रा हमें सीख देती है और हर नागरिक को जागरूक करती है कि अगर
वे इस वर्ग विशेष के लिए इतना कुछ कर सकती
हैं तो हम आप क्यूँ नहीं ?क्योंकि उन्हें सहानुभूति नहीं हमारा-आप का सहयोग चाहिए!
--भारत सरकार ने विकलांग व्यक्तियों के लिए
नौकरियों में छूट दी है जिनसे हम-आप अनजान रहते हैं इस लिंक पर और अधिक जानकारी के
लिए देखें और अन्य लोगों के साथ भी बाँटें ताकि समाज का यह वर्ग अलग-थलग न पड़े ,बल्कि हमारे साथ चले.
सार्थक लेख, असल तस्वीर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
निश्चय ही प्रशंसनीय कार्य है उनका, समस्त सहयोग प्राप्त हो उन्हें।
ReplyDeleteप्रशंसनीय कार्य
ReplyDeletelatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
बहुत ही प्रशंसनीय काम कर रही हैं ... रोमा जी ...
ReplyDeleteआज की जरूरत है समाज के ऐसे वर्गों के लिए कुछ न कुछ करना जितना भी जिसके बस में हो ...
जहां बैठ कर आपकी पोस्ट पढ़ रहा हूँ यहां विडियो मोड ब्लॉक है। परन्तु आपके उल्ल्ोखनीय विवरण ने सब कुछ अच्छे से बता दिया है। ऐसे सराहनीय और प्रशंसनीय कार्यों को चहुं ओर से पूर्ण सहयोग प्राप्त हो, ऐसी कामना करता हूँ।
ReplyDeleteभारत दर्शन वाले ब्लॉग पर टिप्पणी बॉक्स लगाने का कष्ट करें।
Deleteवहां टिप्पणी बॉक्स खोल दिया है.
Deleteआभार.
aapke madhymam se roma jee ke baare me jaankaaree milee..behad prasansneey kaarya kar rahee hain roma jee ..aapko aaur roma jee ko hardik badhayee
ReplyDeleteअनुकरणीय हैं वे ..
ReplyDeleteविकलांगता के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला आपने.
ReplyDeleteरामराम.
पेशे के मद्देनज़र कई लोगो से मिलना हुआ ....एक नन्ही बच्ची को हॉस्पिटल विज़िट भी करनी पड़ती थी .जान बूझ कर दोपहर बाद करता था मन बहुत देर तक अजीब सा रहता था .
ReplyDeleteरुमा रोका के काम की जितनी प्रसंशा की जाये वह कम पडेगी, विकलांगता भी अभिशाप है जिसे हटाने का काम रुमा रोका जैसे लोग ही कर सकते हैं. बहुत ही प्रेरणास्पद आलेख.
ReplyDeleteरामराम.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01/08/2013 को चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
बहुत ही सार्थक और प्रेरणास्पद आलेख.
ReplyDeleteभारत में बहुत काम होना बाकी है
ReplyDeleteबहुत ही प्रशंसनीय सार्थक आलेख ,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
भारत में काफी जागरूकता आनी बाकी हैं ,फिर भी इस क्षेत्र में काफी सकारात्मक सक्रियता बढ़ रही हैं |
ReplyDeleteएक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
बेहतरीन और अत्यंत सार्थक पोस्ट है
ReplyDeleteरुमा रोका जैसे लोग समाज के वास्तविक नायक हैं …
ऐसे लोगों के लिए सराहना का कोई भी शब्द बहुत छोटा है।
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विकलांगता के दर्द को समझना है तो आपको विकलांगता को महसूस करना होगा। समाज के लोगों को अपनी मानसिकता बदलने की जरुरत है क्योंकि विकलांग होना कोई अभिशाप नहीं है। भारतीय समाज विकलांगों के प्रति बड़ा कठोर है. लंगड़ा, बहरा, अंधा, मानसिक विक्षिप्त – ये सभी शब्द व्यक्ति की स्थिति कम उसके प्रति उपेक्षा ज्यादा दर्शाते हैं। इसलिये अगर किसी घर में कोई विकलांग है तो उसे समाज की नजरों से बचा कर रखा जाता है – कौन उपेक्षा झेले ...
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एक नागरिक होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उनकी जरूरतों को समझें, उनकी बाधाओं (शारीरिक और मानसिक) जो कि उन्हें आम जीवन जीने से रोकती हैं, को दूर करने का प्रयास करें और अगर यह संभव न हो तो कम से कम उन्हें चैन से जीने ही दें। विकलांगता का शिकार कोई भी हो सकता है इसलिए इन्हें घृणा का पात्र न मानें बल्कि स्नेह दें।
विकलांगता किसी भी रूप में हो , इसका दर्द वही जान सकता है जो इसे ग्रस्त होता है. लेकिन साहस के साथ सामना करते हुए ये लोग जीना सीख लेते हैं. बेशक रुमा जैसी समाज सेविकाओं की मदद से इनके जीवन में कुछ तो कमी दूर होती है.
ReplyDeleteमानवीय जीवन मूल्यों पर सौहार्द से सजगता का आपका यह प्रयास स्तुत्य है। बहुत बहुत शुभकामनाएं……
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट
ReplyDeleteप्रिय अल्पनाजी,
ReplyDeleteआप के लेख में जो आप ने समाज सेवी रीमा रोका के बारे में लिख है प्रशन्सनीय है।
पर मैं तो आजकल लन्दन में हूँ जहाँ हर विकलांग को हर क्षेत्र में सुविधा दी जाती है।
अभी, कल की बात है मैं H.S.Visley फूलों के उद्यान को देखने गयी थी ।
वहाँ चलने मे असमर्थ लोगों को मुफ्त Scooty,wheel chair घूमने को उपलब्ध थी.
यहाँ तक कि व्हील चैयर को चलाने वाले व्यक्ति का टिकट भी नहीं लगता ! सब जगह स्कूटी को चलाने के लिये खास रास्ते बने हैं।
अगर भारत और भरतवासी इस और ध्यान दे तो सच में यह हम सब के लिये अच्छा है।
कृपया समय-समय पर अपने विचार मेरे ब्लोग की बारे में व्यक्त करते रहियेगा। प्रोत्साहन मिलेगा।
धन्यवाद.
विन्नी,
मैं आपकी बात को बहुत अच्छे से समझता हूं। क्योंकि जब तक खुद भी ऐसी समस्या से रूबरू न हुआ जाये तब तक उसे समझ पाना बहुत कठिन है। करीब—करीब असंभव। मैं आपकी बात को पूरा का पूरा समझता हूं।
ReplyDeleteयहां भारत में विकलांगों को कुछ ज्यादा ही मुसीबत झेलनी पड़ती है।
सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteरुमा रोका का यह प्रयास सचमुच प्रेरणा दायक है -आपने साझा किया -आभार!
ReplyDeletehttps://youtu.be/XEyLzyCtQso
ReplyDeleteHere is the link of Arsh Dilbagi who invented a technology for people who vannot speak . You shared very good information Alpana.Liked it. Thanks
Thanks Shashi ji for sharing link of a good news.
ReplyDeleteThank you Alpana . Hope you could find it by copy paste as well . He is my friend's son so we came to know . He also got award from president on Repubic day ! The world is so small now and we all can solve so many problems together .
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