एक ऑफिस में वहाँ काम करने वाली कुछ महिलाएँ बातें करने में मशगूल हैं।
सबसे अधिक उम्र वाली महिला की उम्र ६१ साल और सब से कम उम्र वाली महिला ३२ वर्षीय है.
सभी विवाहित हैं । तीन तो दादी /नानी भी बन चुकी हैं। कुछ के बच्चों की शादी हाल ही में हुई है तो कुछ की होने वाली है।
सभी की आर्थिक स्थिति लगभग एक सी है। उसमें बहुत अंतर नहीं है ।
सभी की आय में भी बहुत अधिक अंतर नहीं है।
अचानक एक ४० वर्षीय महिला कर्मी ने उठकर कहा मैं आप सब से एक प्रश्न पूछना चाहती हूँ.
बुजुर्ग महिला कर्मी ने कहा, " हाँ पूछो,पूछो!"
प्रश्नकर्ता ने कहा कि आप सभी कृपया ईमानदारी से जवाब दिजीयेगा ,कि क्या किसी व्यक्ति को वसीयत अपने जीते हुए लिखनी चाहिए ?
एक को छोड़ कर सभी ने एक स्वर में कहा ," हाँ बिलकुल ,अपने जीते जी ही लिखनी चाहिए.
लेकिन वह एक जिन्होंने कहा 'नहीं,जीते जी वसीयत नहीं लिखनी चाहिए।
वही इस समूह की सब से अधिक उम्र की महिला थीं। भय की छाया उनके मुख पर देखी जा सकती थी।
उन्हें सब ने समझाते हुए अपने तर्क दिए तो उन्होंने कहा कि इस विषय पर बात न करो क्योंकि वसीयत का संबंध मृत्यु से है और अभी से उस के बारे में क्यों सोचना ??जब वक्त आएगा तब देखेंगे।
उनके भावों का सम्मान करते हुए फिर किसी ने उस बात पर अधिक बात नहीं की।
मृत्यु एक सच है जिसे जानते हुए हम सभी जीवन जीते हैं ,योजनाएँ बनाते और कार्यान्वित करते हैं।फिर भी इसका नाम सुनकर भय उपजना स्वाभाविक है।
लेकिन प्रश्न अब भी वहीँ है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी वसीयत कब लिखनी चाहिए?
क्या तब जब उसे आभास हो कि वह अधिक दिन नहीं जियेगा या सामान्य जीवन के दिनों में?
आप की क्या राय है ?
[लिखी तो मैंने भी अभी तक नहीं है ,न ही ' हाँ ' कहने वालों में से किसी ने !]
पोस्ट को १४ अप्रैल को सम्बंधित विषय के जानकार एडवोकेट दिनेश राय द्विवेदी जी की टिप्पणी के साथ अपडेट किया गया है.
उन्होंने कहा कि-: कोई भी व्यक्ति जिस की आयु 18 वर्ष या उस से अधिक हो गई है वह अपनी वसीयत करने के लिए सक्षम है। इस कारण से जो भी व्यक्ति संपत्ति रखता है उसे अपनी वसीयत जल्दी से जल्दी कर देनी चाहिए। जरूरत पड़ने पर दूसरी वसीयत की जा सकती है जिस से पहले वाली निरस्त हो जाती है। मेरी राय में 18 वर्ष या उस से अधिक आयु के मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों को जिन के भी संपत्ति हो या जिन का धन बैंक में जमा हो या जीवन बीमा पॉलिसी अथवा अन्य सीक्योरिटीज हों उन्हें तुरन्त अपनी वसीयत आवश्यक रूप से लिख देना चाहिए। अब आप क्या सोच रहे हैं? यदि अब तक आप ने अपनी वसीयत नहीं बनाई है तो तुरन्त बना दें।-----------------------------------------------------------------------------------------------------
नीचे की लिंक पर पूरा आलेख पढ़ा जा सकता है।
वसीयत कब और किस आयु में कर देनी चाहिए ?
विभिन्न व्यक्तियों की जीवन दृष्टि पर निर्भर करता है। वैसे देखा जाए तो जो जीवन-मृत्यु के बाबत सजग है उसे इस वसीयत-उसीयत की खबर ही नहीं रहती।
ReplyDeleteसबकी अपनी सोच होती हैं ..बड़े बड़े पैसे पल्ले और व्यापारियो को वसीयत की ज्यादा चिंता रहती हैं ....अपने पास तो कुछ है नहीं इसलिए सोचा ही नहीं ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
नवरात्र और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ...!
सही लिखा आपने। मौत बहुत डराता है
ReplyDeleteजब तक राय बदलती रहे तब तक नहीं लिखनी चाहिये।
ReplyDeleteKoi Zindgi m Wasiyet kare ya na kare .. Islam aur Quraan mein to sab haqdaron (rishtedaron) ka naam aur unke hisse ka zikar maujood hai .. lekin agar koi apni zindgi mein .. kisi ko bhi kuchh dena chahta hai to wo apni zindgi mein hi … Bahosho Hawas ye wasiyet … likh ker de sakta hai .. Rahi baat maut se darne ki .. to Hazrat Ali ka Qaul hai .. ke Muat zindgi ki hifazat karti hai .. to jo zindgi ki hifazat kar rahi ho .. wo itni khaufnaak kaise ho sakti hai .. insaan roz raat ko sota hai aur roz subha jagta hai .. ye neend bhi ek maut hai aur jaagna ek zindgi hai … bas maut bhi aisi hi ek hamesha ki neend hai .. Jo maut ke bare m zyada sochte hain … wo banbaas le lete hain .. lekin zindgi…….. zindgi zinda dili ka naam hai .. Murda dil kya khaak jiya karte hain…
ReplyDeleteSA Feroz
वसीयत लिखना पारिवारिक सम्बन्ध आपके साथ कैसे है उस पर निर्भर करता है,बिपरीत परिस्थिति में गोपनीय रूप से वसीयत बनवा देना चाहिए,,,, !!!
ReplyDeleteनववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
recent post : भूल जाते है लोग,
हाफ सेंचुरी मारने के बाद सही मानसिक-शारीरिक अवस्था में लिख देनी चाहिये और गोपनीय रूप से सुरक्षित रख देनी चाहिये.
ReplyDeleteबिलकुल लिखी जानी चाहिए ...
ReplyDeleteमेरे ख़याल से जीवित होने पर ही वसीयत लिख देनी चाहिए. हमारी अर्जित की हुयी सम्पत्ति किसको मिले इस पर हमारा वश होना ही चाहिए. मृत्यु तो अवश्यम्भावी है, उससे कैसा डरना?
ReplyDeleteवसीयत तो जीते रहते ही लिखी जा सकती है अल्पना जी :-)
ReplyDeleteमगर ये बात ही क्यों ? :-(
अरविन्द जी ,यह बात इसलिए आई थी कि हाल ही में यहाँ ऐसा एक किस्सा हुआ कि वसीयत नहीं लिखी होने के कारण सारी जायदाद उनके राज्य के कानून के मुताबिक़ रिश्तेदारों में बँट गयी .
ReplyDeleteबेटियाँ देश से दूर होने के कारण अपना हिस्सा न लेने आई न आयेंगी तो उनका हिस्सा सरकार के कब्ज़े में चला जायेगा.[जैसा मैंने सुना है]
आप को आश्चर्य होगा,मुझे भी हुआ था जानकर कि भारत के विभिन्न राज्यों में इससे सम्बन्धित अलग -अलग कानून है.
हम में से अक्सर कई लोगों को अपने ही राज्यों के कानूनों का भी पूरा ज्ञान नहीं होता कि कानूनन हमारे बाद कौन हमारे छोड़े सामान का हकदार होगा?हम सब इस विषय पर बात करने से ही डरते हैं लेकिन मेरे विचार में इस बारे में हर किसी को सही जानकारी होनी चाहिए ताकि हमारे बाद सही हाथों में हमारी मिल्कियत पहुंचे !
@कविता जी ,स्त्रियों के केस में अक्सर वे अपने गहने और कीमती कपड़े आदि अवश्य ही अपनी बेटी या बहनों में बाँटना चाहती हैं .
@वसीयत अपने जीते जी ही लिख कर गोपनीय रखी जानी चाहिए यह मेरा भी मत है .
@जीते जी की बात इसलिए कही क्योंकि जब यह सवाल किसी से पूछा जाए तो जवाब यह मिलता है कि नहीं भी लिखेंगे तो पति के बाद पत्नी या पत्नी के बाद पति को...आदि..आदि..मिलेगी..लिखने की क्या ज़रूरत है !
ReplyDeleteलेकिन यह जवाब हर केस के लिए सही नहीं है .
आदमी भाग रहा है जिस से ...वो तो उसके साथ साथ चल रही है ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
कामकाजी महिलाओं को लेकर आपने सुन्दर संस्मरण प्रकाशित किया है अल्पनना जी!
ReplyDelete@Dr.Shastri Sir,शायद मैं अपनी बात आप को सही तरह से नहीं समझा पायी हूँ तभी आप ने इसे कामकाजी महिलाओं का संस्मरण लिखा है.
ReplyDeleteमैंने एक प्रश्न पर मत माँगा है कि क्या किसी व्यक्ति के लिए उसका संपत्ति निर्वसीयत छोड़े जाना सही है ?अगर नहीं तो फिर आदर्श या व्यावहारिक .. वसीयत लिखने का कौन सा समय सही होना चाहिए?
अल्पना जी नमस्कार आपका वसीयत को लेकर पाठ पढा और उस पर लिखी टिप्पणियां भी पढी। अरविंद जी को लेकर आपका प्रत्युत्तर भी पढा। मैं मेरे विचार व्यक्त कर रहा हूं इससे किसी के मन को ठेंस नहीं पहुंचनी चाहिए। इसलिए सावधानी से आरंभ में यह भूमिका बांधी है।
ReplyDeleteउत्तर स्वरूप आई टिप्पणियों में कविता रावत की टिप्पणी अत्यंत रोचक लगी। आपने इसको नजरंदाज किया दुबार गौर करें। शायद आपके मन में फिलहाल वसियत को लेकर सोच जारी है कारण आपने आस-पास कुछ घटनाओं को घटते देखा है इसलिए। पर मै आपको कह दूं कि इस दुनिया में हमारा प्रवेश खाली हाथ हुआ है और जाना भी खाली हाथ ही है। यह नियम हमारे पीछे रहने वाले बच्चों के लिए भी और सारी दुनिया को भी लागु होता है। हममें ताकत होती है इसलिए कुछ जायदाद कमाते हैं। बच्चों में ताकत हो तो वे भी कमाएंगे। वैसे माता पिता की मृत्यु के पश्चात उनके बच्चों का ही जमीन जायदाद पर कानूनी अधिकार होता है। अगर हमारी मृत्यु के बाद बच्चों में जायदाद को लेकर झगडे शुरू हो गए तो हम पीछे केवल जायदाद छोड गए अर्थ होगा संस्कार और नैतिकता नहीं। जायदाद की अपेक्षा कई चीजे महत्त्वपूर्ण है जो छोडी जानी चाहिए उसे हम छोडते नहीं। वैसे मैं क्षमा चाहता हूं शायद छोटे मुंह वाली बात होगी और आदर्शवादी विचारों वाला भजन-कीर्तन होगा। आज कल भागदौड में सोचने का समय और वक्त नहीं है। भाई ईश्वर ने इतनी अच्छी जिंदगी दी है हमें और सबको, हमारे बाद के भी सारे लोगों को उसका ईमानदारी से आनंद उठाओं, खुश रहो। जिंदगी के रेशे-रेशे में वसियत लिखी जाती है कागज के टुकडों पर थोडे ही लिखना होता है।
वसीयत तो लिख ही देनी चाहिए .
ReplyDeleteमरने के बाद संपत्ति को लेकर जो झगडे होते हैं, और संपत्ति के वारिसों में जो वैमनस्य होता है, शायद उसमें कुछ कमी आ सके .
very useful post . would think.
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete@तुषार रस्तोगी जी . इस पोस्ट में क्या वाह करने लायक बात लगी ..क्या 'बहुत खूब' लगा आप को??
ReplyDeleteकौन सी रचना है जो अत्यंत सुन्दर लगी??
कम से कम थोडा पढ़ लिया होता कि क्या लिखा है पोस्ट न सही कोई टिप्पणी ही पढ़ लेते ...
Please do not post a comment if you have not read the post.
ReplyDeleteI do not need numbers here ,need views.
Hereafter any improper comment shall be removed.
Thanks.
वसीयत जैसे विषय पर पहली बार कोई पोस्ट देख रहा हूँ ! अच्छा लगा ... हमें हर विषय पर बात करनी चाहिए !
ReplyDelete-
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अगर व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो मेरे खानदान में दूर-दूर तक कभी किसी ने वसीयत नहीं की
लेकिन मैं अवश्य करूँगा ... :-)
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जैसा कि आये दिन देखता-सुनता रहता हूँ ... बहुत बार वसीयत न करना अनेक समस्याओं और मनमुटाव की वजह बन जाता है ! खून के रिश्तों में ही अलगाव और टकराव की नौबत आ जाती है ! ऐसी स्थिति से बचाने के लिए वसीयत जीते जी कर जाना ही अच्छा है ...अगर हमारे द्वारा ही अर्जित संपत्ति है तो उसका वारिस भी हमारी मर्जी - हमारी पसंद से ही होना चाहिए ! लेकिन वसीयत की गोपनीयता भी जरुरी है !
वसीयत जितनी जल्दी लिख दी जाय, अच्छा है.
ReplyDeleteकोई भी व्यक्ति जिस की आयु 18 वर्ष या उस से अधिक हो गई है वह अपनी वसीयत करने के लिए सक्षम है। इस कारण से जो भी व्यक्ति संपत्ति रखता है उसे अपनी वसीयत जल्दी से जल्दी कर देनी चाहिए। जरूरत पड़ने पर दूसरी वसीयत की जा सकती है जिस से पहले वाली निरस्त हो जाती है। मेरी राय में 18 वर्ष या उस से अधिक आयु के मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों को जिन के भी संपत्ति हो या जिन का धन बैंक में जमा हो या जीवन बीमा पॉलिसी अथवा अन्य सीक्योरिटीज हों उन्हें तुरन्त अपनी वसीयत आवश्यक रूप से लिख देना चाहिए। अब आप क्या सोच रहे हैं? यदि अब तक आप ने अपनी वसीयत नहीं बनाई है तो तुरन्त बना दें।
ReplyDeleteनीचे की लिंक पर पूरा आलेख पढ़ा जा सकता है।
http://www.teesarakhamba.com/2013/04/%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%AC-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%B0/
सच कहू तो कई बार सोचने की कोशिश की है ... डर जिसका उस औरत ने जिक्र किया है वो भी लगता है .... कुछ निश्चय नहीं हो पाता ... पर कहते हैं की यहाँ के (यू ए ई)नियमों अनुसार तो जरूर लिख लेनी चाहिए खास कर जो केश या प्रोपर्टी है उसके सही हाथों में आसानी से जाने के लिए ...
ReplyDeleteजब माल ज्यादा हो तो वसीयत की चिंता करे कोई.
ReplyDeleteकानून विषय के जानकार आदरणीय दिनेश जी की टिप्पणी से पोस्ट में उठे प्रश्नों के उत्तर मिल गए हैं .
ReplyDeleteइस अमूल्य राय हेतु आप का बहुत -बहुत धन्यवाद.
पोस्ट को आप की इस टिप्पणी और आप के लेख के लिंक के साथ के साथ अपडेट कर दिया गया है.
सादर
पहले से वसीयत कर रखना कुछ लोगों के लिए अहितकर भी हो सकता है. कुछ लोग अपने कुनबे के लोगों को झाँसे में रखे रहना भी चाहते हैं ताकि लालच में सब देख् रेख करते रहें.
ReplyDeleteCamping at Chennai since two months taking care of my mother (90)who has not left a will!
अल्पना जी,
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छा किया कि इतना गम्भीर विषय उठाया। मेरे विचार में किसी के पास सम्पत्ति और धन कितना है यह वसीयत करने के लिये जरुरी नहीं। अगर समय रहते ही वसीयत को कानूनी रुप दे दिया जाये तो इस का मतलब यह कभी नहीं कि आप उस मे जरूरत पड़ने पर सुधार करवा नहीं सकते।
वसीयत का सर्व-विदित लाभ तो यह है ही कि व्यक्ति विशेष के चले जाने पर उस के परिवार में किसी प्रकार मत भेद और झगड़े नहीं होते।
हाँ! वसीयत में गोपनीयता भी बहुत जरूरी है।
अन्ततः मेरे विचार में हर एक को वसीयत जरुर करनी चाहिये।
अल्पना जी, कभी मेरे ब्लोग http://wwwUnwarat.com पर आइये। पढ़ने के उपरान्त अपने विचार अवश्य व्यक्त कीजियएगा।
विन्नी
अल्पना जी,
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छा किया कि इतना गम्भीर विषय उठाया। मेरे विचार में किसी के पास सम्पत्ति और धन कितना है यह वसीयत करने के लिये जरुरी नहीं। अगर समय रहते ही वसीयत को कानूनी रुप दे दिया जाये तो इस का मतलब यह कभी नहीं कि आप उस मे जरूरत पड़ने पर सुधार करवा नहीं सकते।
वसीयत का सर्व-विदित लाभ तो यह है ही कि व्यक्ति विशेष के चले जाने पर उस के परिवार में किसी प्रकार मत भेद और झगड़े नहीं होते।
हाँ! वसीयत में गोपनीयता भी बहुत जरूरी है।
अन्ततः मेरे विचार में हर एक को वसीयत जरुर करनी चाहिये।
अल्पना जी, कभी मेरे ब्लोग http://wwwUnwarat.com पर आइये। पढ़ने के उपरान्त अपने विचार अवश्य व्यक्त कीजियएगा।
विन्नी
अल्पनाजी, आपने अत्यन्त गम्भीर विषय पर चर्चा कर सराहनीय कार्य किया है । वसीयत लिखना चाहिए । बधाई
ReplyDeleteवसीयत तो कर ही देनी चाहिये जरूरत पडने पर इसे बदला जा सकता है पर ना होने पर उत्तराधिकारियों को परेशानी हो जाती है, यह मेरी देखी बात है। इस विषय को उठाने का धन्यवाद।
ReplyDelete