पिछले बीस-तीस साल में लगभग हर क्षेत्र में बहुत अधिक अंतर आ गया है.
यूँ तो इस बात को बताने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है .
फिर भी एक बार देखें तो कहाँ और कैसे परिवर्तन बच्चों की दिनचर्या /उनकी पसंद -नापसंद में हुआ है---एक झलक :-
यूँ तो इस बात को बताने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है .
फिर भी एक बार देखें तो कहाँ और कैसे परिवर्तन बच्चों की दिनचर्या /उनकी पसंद -नापसंद में हुआ है---एक झलक :-
‘अब का ‘फन' | तब की मस्ती |
खाना-पीना | |
अब बाहर का ‘टेस्टी’ लगता है. | पहले था पसंद घर का बना… |
अब के खेल | तब के खेल |
अब आभासी दुनिया के मीत. | तब खेल के साथी |
वास्तव में समय बदल गया है ......सबूत भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं !
ReplyDeleteपरिवर्तन का सफर, सही कहा बस एक छोटी सी झलक है.
ReplyDeleteसच कहा आपने, वह भी क्या दौर था।
ReplyDeleteसहज परिवर्तन है अब ये सब .और वी गेम्स को आपने कैसे छोड़ दिया .वैसे चुस्की आज भी कई नाम रूपों में मुंबई दिल्ली जैसे महानगरों में आज भी मौजूद है कहीं काला खट्टा बन कहीं शरबतिया और यहाँ पाप्सिकिल के रूप में छाई है .
ReplyDeleteram ram bhai
शनिवार, 15 सितम्बर 2012
सज़ा इन रहजनों को मिलनी चाहिए
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Tasveeron mei V-games bhi included hain..
Deletedhnywaad.
सही कहा बहुत कुछ बदल रहा है..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत वर्णन
ReplyDeleteअरुन = www.arunsblog.in
ये छोटी सी झलक बदलते परिवेश ... बदलते समय की झलक के साथ साथ कितना कुछ रिवाइंड भी करा जाती है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
Constant change in the world around us is natural. But adapting to it is a challenge takes time.
ReplyDeleteThese days the cycle of change is very fast and reducing, which creates problems of adaptability, and that leads to an lifestyle problems of adjustability and many lifestyle diseases.
Sach me ....Bahut Kuchh Badal Gaya hai ....
ReplyDelete
ReplyDeleteलाजवाब ढंग से नियोजित किया है आपने "अब और तब" को...
ठंडी साँसों से भरी एक आह सी निकल जाती है मुंह से...
A lovely kaleidoscopic depiction of old and contemporary living!
ReplyDeleteतब के दौर और अबके दौर को तस्वीरों के
ReplyDeleteमाध्यम से खूबसूरती से दर्शाया है आपने.
पहले बच्चे बंद मुठ्ठी लिए जन्म लेते थे,
अब देखता हूँ कि खुली मुठ्ठी से ही जन्म
ले लेते हैं.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,अल्पना जी.
जो हजारों-लाखों शब्द नही कह पाते उसे एक तस्वीर बखूबी बयां कर देता है...बहुत ही उम्दा संकलन...बचपन के दिन याद आ गए|
ReplyDeleteसमय के साथ सबका बदलना तय है...यही रीत है |
सादर नमन |
उम्दा संकलन |बदलते परिवेश में खान -पान रहन -सहन सब कुछ बदल जाना स्वाभाविक है |
ReplyDeleteतस्वीरों के माध्यम से पूरी एक कहानी सामने रख दी आपने. सच में, आपकी बहुमुखी प्रतिभा के हम तो कायल हैं.
ReplyDeleteबहुत सु्दर, समय का बदलाव बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा है।
ReplyDeleteक्या कहने
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
uf kitna sahi sach kya tulna ki hai yahi ho raha hai
ReplyDeleterachana
बहुत सुन्दर आज के दिन और गये दिन।
ReplyDeleteजिन्दगी तेज़ हो गई इसलिए हर किसी के पास टाइम नहीं है. बदलते
ReplyDeleteपरिवेश में रहन-सहन ही नहीं खान-पान भी प्रभावित हुआ है .
सही है ...
ReplyDeleteसही है ...
ReplyDeleteसराहनीय संकलन. मैंने पाया है कि "तब" की में अब भी कई बच्चे आनंदित होते हैं. अभी अभी ही जब कोच्ची में था तो मेरे सबसे छोटे भाई के १४ वर्षीय पुत्र को पूछने पर अपनी पसंद पिज्जा बतायी. हमने उसे पिज्जा खिलाने का कार्यक्रम रखा. उसने कहा "मैं अनलिमिटेड" वाला यू एस पिज्जा खाऊंगा. हम भी यही चाहते थे कि वह खा खा के अघा जाए. उसने उस दूकान में ढेर सारी सर्विंग ली. साथ में मुफ्त में ही सूप और आइसक्रीम भी थी. पूरा खा लेने के पंद्रह मिनट बाद सब बाहर आ गया. घर आकर उसने बगैर किसी के कहे ही प्रतिज्ञा की कि अब वह कभी पिज्जा नहीं खायेगा.
ReplyDeleteदिन रात का फ़र्क आ गया है. सार रूप में यह भी कहा जा सकता है कि पहले संतोष था अब उसकी जगह असंतोष ने ले ली है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हाँ ये तो है!
ReplyDeleteपर कोई उपाय है क्या इसे रोकने का ?
बहुत दिन बीते कोई पोस्ट नहीं - क्या बात है ? आशा है सब ठीक है !
ReplyDeleteवाह सब कुछ कह दिया.
ReplyDeleteकुछ साल बाद दोनों फ़ोटो के शुरू में एक कॉलम और जुड़ जाएगा :)
दीप पर्व की
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर
लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
A great post showing so much has changed really !!
ReplyDelete