अनुकरणीय व्यक्तित्व -वन्दनीय गुरु
बहुत दिनों से इस पोस्ट को लिखने का मन था किसी न किसी कारणवश देर हो रही थी.
आज यह अवसर आया है कि मैं एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार आप के साथ साझा करूँ जो न केवल अनुकरणीय है बल्कि वन्दनीय भी है.
आज यह अवसर आया है कि मैं एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार आप के साथ साझा करूँ जो न केवल अनुकरणीय है बल्कि वन्दनीय भी है.
गुरु कैसा हो जब कभी यह प्रश्न आता है तो मेरे दिमाग में एक नाम ज़रूर आता है वह है 'श्रीमति सरस्वती नारायणन 'का ..गुरु हो तो ऐसा हो!
आईये,उनसे आप का परिचय करा दूँ .
श्रीमती सरस्वती नारायणन , जिन्होंने ३२ साल पहले इस देश की धरती पर कदम रखा और साथ ही एक ऐसे स्कूल में उनकी नियुक्ति हुई जिस अभी-अभी शुरू किया गया था ..मात्र ५ छात्रों की भर्ती के साथ!
आईये,उनसे आप का परिचय करा दूँ .
श्रीमती सरस्वती नारायणन , जिन्होंने ३२ साल पहले इस देश की धरती पर कदम रखा और साथ ही एक ऐसे स्कूल में उनकी नियुक्ति हुई जिस अभी-अभी शुरू किया गया था ..मात्र ५ छात्रों की भर्ती के साथ!
वे तमिलनाडु के त्रिचरापल्ली शहर में कोलेज में अंग्रेज़ी की प्रोफ़ेसर थीं ,यहाँ आते ही एक बहुत ही छोटे से शहर में शुरू हुए प्रवासियों के इस छोटे से स्कूल के आरम्भिक दौर में हर विषय को पढ़ा सकने वाली अध्यापिका के रूप में नौकरी करना एक चुनौती ही था.
पूरे ३२ साल बाद उसी स्कूल से उपप्रधानाचार्या के पद से सेवानिवृत होना कितने गौरव की बात है इस का अंदाज़ा इसी बातसे लग सकता है कि आज इस शहर में प्रतिष्ठित इसी स्कूल में एक हज़ार से अधिक छात्र हैं ! स्कूल की इस प्रगति और
उन्नति का श्रेय स्वयं 'गवर्निंग कोंसिल' सरस्वती Madam को भी देती है .
मेरा परिचय उनसे तब से है जब से मैं यू.ऐ.ई में आयी हूँ.उन्हें बराबर देखती रही हूँ मिलती रही हूँ.मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं कि उनके जैसा कर्मठ और प्रभावशाली व्यक्तित्व मैं ने बिरला ही देखा है !इसीलिये मैंने शीर्षक में उनके व्यक्तित्व को अनुकरणीय लिखा.
अपने काम के प्रति इतना अधिक समर्पण आज के समय में बहुत ही दुर्लभ है.
बहुत बार उनकी फुर्ती और कार्यकुशलता को देख कर सभी आश्चर्यचकित रह जाते थे.
शायद उनकी इस असीमित ऊर्जा का रहस्य उनका काम के प्रति सच्ची लगन थी .
बहुत बार उनकी फुर्ती और कार्यकुशलता को देख कर सभी आश्चर्यचकित रह जाते थे.
शायद उनकी इस असीमित ऊर्जा का रहस्य उनका काम के प्रति सच्ची लगन थी .
ऐसा नहीं कि उन्होंने अपनी इस नौकरी के लिए अपने घर को नज़रंदाज़ किया हो. ख़ास कर उनका घर और अपने काम में संतुलन बनाए रखने की कला तो अद्भुत थी.३२ साल लगातार संतुलन बनाने रखना और अपने प्रोफेशन में सफलता हासिल करते रहना आसान नहीं है.
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उनका बेटा और बेटी जो अब अपनी -अपनी life में settled हैं. उनका अपनी माँ के लिए क्या कहना है यह इस चिट्ठी से ज़ाहिर होताहै जो उन्होंने लिखी थी--
{P.S.अपने बच्चों के द्वारा जब हम इतनी अच्छी बातें सुनते हैं तो लगता है जैसे जीवन भर की तपस्या
सफल हो गयी }.
एक अध्यापक के रूप में उन्होंने कभी समझौता नहीं किया .हमेशा छात्रों लिए ,उनकी भलाई के लिए ही सोचा.
उन्होंने छात्रों को हमेशा प्रेरित किया , जिसका प्रभाव उन पर हमेशा सकारात्मक रहा.
उनकी याददाश्त की तारीफ यह है कि उन्हें अपने हरनए-पुराने छात्र का नाम याद रहता था .
सर्वश्रेष्ठ आध्यापिका के उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं .
मेरा सौभाग्य है कि मैंने उनके मार्गदर्शन में उनके अधीन काम किया है और उनसे बहुत कुछ सीखा है.उनकी पैनी नज़र की तारीफ़ है कि वे सामने खड़े व्यक्ति के मनोभाव को पहचान लेती थीं.एक उपप्रधानाचार्या के रूप में वे बेहद सख्त थीं इस में कोई दो राय नहीं !
मुझे याद है जब कभी मैं किसी बात पर नाराज़ हो कर उनके पास जाती थी तो तुरंत पहचान जातीं कि किस बात पर मेरी नाराज़गी हो सकती है.मेरे कुछ कहने से पूर्व मुस्करा कर कह देतीं कि मैं किस बात के लिए आई हूँ और मेरा सारा आक्रोश पानी हो जाता! और मेरा यही सवाल होता कि आप ने कैसे जाना ?तब मुझे लगता जैसे वे मेरी सीनियर नहीं मित्र हैं!जो आप को अच्छी तरह पहचानता है.
यही उनके सरल, मित्रतापूर्ण स्वभाव की खासियत थी कि हर किसी को यह लगता था कि वे उनके नज़दीक हैं.
त्योहारों पर ही नहीं यदा-कदा भी अपने हाथों से पकवान बना कर लाना और हम सभी अध्यापिकाओं के साथ बाँट कर साथ खाना उनके व्यक्तित्व के कोमल और मित्रतापूर्ण पहलू की झलक देता था .
त्योहारों पर ही नहीं यदा-कदा भी अपने हाथों से पकवान बना कर लाना और हम सभी अध्यापिकाओं के साथ बाँट कर साथ खाना उनके व्यक्तित्व के कोमल और मित्रतापूर्ण पहलू की झलक देता था .
कई बार हम सभी सोचते थे कि वे कैसे २४ घंटों के समय को मैनेज करती हैं ! घर और बाहर सब जगह अपना रोल बखूबी निभाना आसान नहीं है ,कई बार उनसे पूछने पर वे कहतीं कि उन्हें लगता है कि काश दिन में ४८ घंटे होते !
न जाने कितने काम वे एक साथ दिमाग में लिए रहतीं थीं.
उनके जैसे व्यक्ति आज के समय में बेशक कम हैं लेकिन जो हैं उनसे हम सभी कामकाजी महिलाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए और सीखना चाहिए कि घर को बराबर ध्यान देते हुए अपने काम के प्रति कैसे पूर्ण समर्पण दिया जा सकता है.
उनके जैसे व्यक्ति आज के समय में बेशक कम हैं लेकिन जो हैं उनसे हम सभी कामकाजी महिलाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए और सीखना चाहिए कि घर को बराबर ध्यान देते हुए अपने काम के प्रति कैसे पूर्ण समर्पण दिया जा सकता है.
मैं दिल से उनकी शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मुझे एक साथ कई जिम्मेदारियाँ दे रखी थीं और इस काबिल समझा था कि मैं उन
को बेहतर निभा सकती हूँ.
अब भी जब उनका ऑफिस देखती हूँ तो लगता है जैसे अभी भी वे वहीँ हैं.
मेरे अनुभव में ,जब भी कभी छात्रों /अध्यापकों के लिए किसी ने उनसे कुछ माँगा है तब वे प्रशासन और अध्यापकों के बीच सेतु बनीं जो उनकी लोकप्रियता का एक कारण रहा.
उनके बारे में मैं जितना लिखूं कम है ,बस यही आशा है कि वे अपना आशीर्वाद हम पर रखें और उन्होंने जो उम्मीद हम से रखी हैं हम उन्हें पूरी कर पाएँ.
३२ वर्ष अपनी सेवायें देने के बाद पिछले माह मई में वे इस स्कूल से सम्मानसहित सेवानिवृत हुईं और स्वदेश लौट गयीं.
उनके विदाई समारोह में सभी ने उन्हें अश्रुपूरित आँखों और भरे मन से विदा कहा.
हम यह भी जानते हैं कि Mam' आप खाली बैठने वालों में से नहीं हैं ,आप की लिखी किताब की हमें प्रतीक्षा रहेगी. ताकि उस के ज़रिए आने वाली पीढ़ी को आप का मार्गदर्शन मिलता रहे .
ईश्वर आप को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी उम्र दे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ ...
अपने भावों को समेट कर मैं यह छोटी सी कविता आप को समर्पित करती हूँ -
अपने भावों को समेट कर मैं यह छोटी सी कविता आप को समर्पित करती हूँ -
चातुर्य ,बुद्धि और कुशलता
जिनका पर्याय बना है ,
सदा निरंतर चलते रहना
जिनसे ये सीखा है ,
आलोकित है पथ मेरा
जिनके आशीर्वचन से,
स्नेह बना संबल है मेरा
जिनके मधुर वचन से,
चलना जिनके पद्चिन्हों पर
हृदय आन ठना है,
उनको शीश झुका कर
-मेरा नमन सदा है!
~~~~Alpana~~~~~ |
विदाई समारोह की झलकियाँ--
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति.
ReplyDeleteश्रीमती सरस्वती नारायणन जी के बारे में जानकर
अच्छा लगा.
उनके गुरु रूप व्यक्तित्व को सादर नमन.
बहुत कम और खास कर के यू ऐ ई में और वो भी टीचिंग के क्षेत्र में इतना डेडिकेशन देखने को बहुत ही कम मिलता है ... मेरा नमन है सरस्वती नारायण जी को जो अपने आप में मिसाल हैं सभी के लिए ... आपने सही शब्दों में उनके व्यक्तित्व का चित्रण किया है अपनी रचना में ...
ReplyDeleteअल्पना जी, सरस्वती जी के लिये आपके दिल में जो सम्मान और स्नेह है, वो आपके शब्द-शब्द से झांक रहा है. ऐसी कर्मठ विभूति को मेरा भी नमन.
ReplyDeleteकर्तव्य निष्ठा ही श्रेष्ठ लोगों की धरोहर है..
ReplyDeletekoi jab dil me basta hai, to aise hi shabd nikalte hain.... aur kartavyanisht log sabke apne hote hain:)
ReplyDeletemera bhi naman saraswati maam ko:)
ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व को नमन.
ReplyDeleteओह यह पोस्ट मुझसे छूटी-खुद को कोस रहा हूँ और आप पर भी थोड़ी गुस्सा आयी -बता नहीं सकती थीं ?
ReplyDeleteएक श्रेष्ठ गुरु के सानिध्य में रहकर आप अपने कार्य में निश्चय ही दक्ष हुयी हैं -
श्रीमती नारायणन को मेरी भी आदर भरी शुभकामनाएं !
और एक बात कहूं ? समझ लीजिये! :-)