स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

March 15, 2012

की बोर्ड वाली....

कुछ दिनों पहले हिंदी की महिला ब्लोगरों पर डॉ. ज़ाकिर का लिखा एक बहुत अच्छा लेख लखनऊ के अखबार में छपा था 'की बोर्ड वाली औरतें '..
जिस  का ज़िक्र उन्होंने अपने ब्लॉग पर भी  किया.शीर्षक पढ़ कर थोडा अटपटा सा लगा .सच  कहूँ तो बुरा लगा..क्योंकि 'औरतें' शब्द सुनना खराब लगता है.उन पर की बोर्ड वाली औरतें!...'महिलाएँ' लिखा होता तो सही लगता ..एक  ब्लोगर ने टिप्पणी भी दी..'कि तथाकथित ब्लोगरों में से किसी  ने अभी तक इस शब्द पर आपत्ति क्यूँ नहीं की!
उस के जवाब में डॉ.ज़ाकिर का कहना था कि यह संपादक का दिया शीर्षक है .
मैं ने भी पोस्ट पढ़ी ,लिखना चाह रही थी लेकिन वहाँ कुछ लिखा नहीं न जाने क्यूँ  यह बात मन में घूमती रही..'की बोर्ड वाली औरतें!'
[ज्ञात हो कि की बोर्ड का कनेक्शन अंतर्जाल से भी  है .]
पिछले साल जब मैं भारत गयी तब साथी महिला ब्लोगरों से भी मिलना हुआ था ..बातों -बातों में यह बात भी सामने आई कि पुरुषों द्वारा  अंतर्जाल पर  फेसबुक पर/आने पढ़ने या लिखने वाली महिलों को 'उपलब्ध' अंग्रेज़ी में कहें तो 'available'! समझा जाता है.

ब्लॉग लिखना जिस जोश और उत्साह  से शुरू किया था वह धीरे धीरे ब्लॉग जगत /अंतर्जाल में महिलाओं के प्रति लोगों [सामन्यतः]के विचारों
को जानते हुए कम होने लगा.



सिर्फ एक पढ़ा -लिखा समझदार तबका दिखता है जो महिलाओं को हर तरह से सम्मान देता है जिस की  सोच का दायरा बड़ा है[क्या वाकई?].........वर्ना अंतर्जाल पर आने वाले सामान्यतः पुरुष वर्ग ही नहीं  घर में बैठी महिलाओं का [जो खुद कुछ करती वरती  नहीं है..सिर्फ टी वी के आगे बैठना उनका प्रिय शगल है ]वे भी ब्लॉग लिखने वाली महिलों को हेय दृष्टि से देखती  हैं .उनके विचारों में इन महिलों को कुछ काम नहीं है या उनको कोई भाव नहीं देता इसलिए भटकती हुई अंतर्जाल का सहारा लेती हैं ..एक दिन फेसबुक पर भी यही पढ़ा कि जिन्हें घर में कोई महत्ता नहीं मिलती वो ही अंतर्जाल पर सक्रीय होते हैं ...मैं नहीं जानती क्या सच है क्या नहीं लेकिन इतना ज़रूर है ..सदियों बाद भी आज भी पुरुष की  मानसिकता वही है वह कभी नहीं चाहता कि स्त्रियाँ घर से बाहर दिखें/देखें .


अमूमन  पुरुष कहते मिलेंगे ..मैं तो अपनी बीवी को कभी कंप्यूटर इस्तमाल नहीं  करने देता.मेरी साथी अध्यापिका हैं पंजाब की  रहने वाली ,उन्होंने बताया कि उनके पतिदेव  फेसबुक पर  अकाउंट नहीं खोलने देते !ऐसा ही कहना केरल की  रहने वाली एक साथी टीचर का भी है कि उनके यहाँ नेट ही नहीं लगवाया गया  कि  कहीं वो चेट या  फेसबुक न शुरू कर दे! धन्य हैं ऐसे पढ़े लिखे पुरुष जो नौकरी करने के लिए बीवी को बाहर भेज सकते हैं लेकिन स्त्री ब्लॉग लिखे या फेसबुक खोले तो वो खराब हो जायेगी/या खराब कहलाएगी ?

यह मानसिकता तथाकथित पढ़े-लिखे समझदार पुरुषों की न जाने कब बदलेगी कि अंतर्जाल पर  स्त्रियों 'खराब   होतीं हैं...क्यूँ नहीं  सहमत होते  कि वहाँ उनके द्वारा सकारात्मक कार्य भी हो सकते हैं .
ऐसी मानसिकता रखने वाले ही फेसबुक या अंतर्जाल के अन्य स्थानों पर दिखने वाली स्त्रियों को प्रेम सन्देश भेजते हैं .वे सोचते हैं कि अंतर्जाल पर दिखें वाली हर स्त्री 'उपलब्ध 'है!
 अगर कोई अच्छी सोच से कुछ  करने के लिए यहाँ कदम रखती है तो इस तरह के लोगों के घटिया प्रयासों से  बोल्ड से बोल्ड स्त्री का मनोबल भी टूट सकता है .
मुझे नहीं लगता कि सृष्टि के अंत तक भी  उनकी सोच में कभी कोई परिवर्तन आएगा .

सिर्फ एक वर्ग विशेष को छोड़ कर जो पहले  भी  सम्मान देता था आज भी  देता है  .उस के अलावा अन्य  पुरुषों से कभी कोई उम्मीद 'की बोर्ड वाली  महिलाओं 'आप को नहीं  रखनी है !या फिर उम्र के उस मोड पर ही आ कर 'की बोर्ड' संभालना है जब आप पर  कोई उंगली न उठा सके .

41 comments:

  1. सबको अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, हमें सदा ही एक दूसरे से सीखते रहना चाहिये।

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  2. विचारों की जाहिलता है कब जायेगी ...पता नहीं !

    खैर शायद आपको इस बात से निश्चित्नता मिले कि अक्सर जो साथी अंतरजाल के विषय में ज्यादा नहीं जानते और नहीं जानते हम सब के कार्यों को ....वही साथी अक्सर किसी के द्वारा परिचय दिए जाने पर इन्टरनेट का नाम सुनते ही मुस्कराते हैं ......और दो चार तो मौक़ा पाकर किनारे आकर "वो" वाली बढ़िया साइटों का पता पूछने लगते हैं!

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    1. एक समय था जब फिल्मों में काम करना बुरा माना जाता था शायद वैसा ही समय महिलाओं के लिए ब्लॉग्गिंग का है जब ब्लोगर महिलाओं को या नेट का इस्तमाल करने वाली महिलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता है.

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  3. बिल्कुल सही कहा आप ने अल्पना जी उन चंद लोगों को छोड़ दिया जाए पुरुषों और महिलाओं में भी जो इसे बुरा नहीं समझते वर्ना तो अक्सर लोगों को यही लगता है कि ये सब कुछ जो हम कर रहे हैं,निरर्थक ही है
    समय की बर्बादी और तारीफ़ पाने की चाह का दूसरा नाम ही ब्लॉगिंग है

    कोई बात नहीं समय सब समझा देगा सब को कि हम कहाँ और कितने ग़लत हैं .............धन्यवाद इस विषय को उठाने के लिये

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    1. अपनी पहचान को सकारात्मक तरीके से विस्तृत करना गलत नहीं है,अपने कार्यों की प्रशंसा की चाह करना गलत नहीं है, स्त्री एक 'शक्ल ' के सिवा भी कुछ है यह बताने का प्रयास करना गलत नहीं ..अच्छे लोग हैं इस लिए हमें भी आगे बढ़ने का अवसर मिलता है अन्यथा..स्थिति ऐसी है एक हाथ आप को आगे बढाता है तो दस हाथ पीछे खींचते हैं .

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  4. बहुत हद तक सहमत हूँ आपसे !

    ब्लॉगर मंच स्त्रियों को अभिव्यक्ति की आज़ादी दे रहा है , वे बहुत कुछ सीख रही हैं और अपनी रचनात्मकता को नया आयाम दे रही है . स्वय को अत्याधुनिक मानने वाले बुद्धिजीवी , प्रगतिशील लोगों का भी ये हाल है कि यदि कोई महिला इनसे आगे होकर बातचीत शुरू कर ले तो उन्हें उसमे दाल में काला नजर आने लगता है ....
    स्त्री का सम्मान /असम्मान करने वाले हर जगह हर रूप में मिल जाते हैं , क्या कीजे !

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    1. जी हाँ हर तरह के लोग हैं यहाँ ..लेकिन ऐसे-वैसे लोगों का दुस्साहस देख कर खुद को अपराधी सा लगता है जैसे अपने परिचय के विस्तार की चाह में हमसे भूल तो नहीं हो गयी?

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  5. आपकी बातों से सहमत हूं ... कितनी सहजता से आपने सार्थक व सटीक बात कही है ...आभार

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  6. सोचने पर मजबूर करती हुई पोस्ट!
    सात साल से ज्यादा के ब्लॉगिंग के अनुभव से लगा कि महिलाओं के बारे में कई लोगों के विचार बड़े भयानक हैं। खासतौर पर विरोध करने की स्थिति में महिलाओं पर व्यक्तिगत हमले किये। घर परिवार की महिलाओं या पुरुषों में नेट पर मौजूद महिलाओं के बारे में धारणायें पूर्वग्रह के आधार पर ही होती हैं।

    बहुत दिन बाद आपकी पोस्ट पढ़ी। अच्छा लगा।

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    1. मन आहत था इसलिए लिखना पड़ा..

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  7. जो बात कई बार मेरे दिल में भी उठी उसको आपने अल्फाज दे दिए हैं अल्पना ...मानसिकता अब भी वही नजर आती है जो सच्ची आपने लिखी है .बहुत सी बाते मैं भी सुनती हूँ की जब कहीं कुछ करने को नहीं मिलता inhe तो इसलिए भटकती हुई अंतर्जाल का सहारा लेती हैं...

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    1. मुझे भी ऐसा ही सुनने को मिलता है .इसलिए अब किसी को बताना ही छोड़ दिया कि मैं ब्लॉग्गिंग करती हूँ..पुरुष ही नहीं कुछेक स्त्रियों का भी ये ही कहना होता है .मेरे ब्लोगर होने की बात पर मेरी एक सहकर्मी का कहना था ---अरे..हमारे पास समय नहीं है ब्लोगिंग जैसे फालतू काम करने को !हमारे 'हसबेंड अलो' ही नहीं करते नेट इस्तमाल करने के लिए ..आप को कैसे समय मिलता है?.....उनकी बात सुन कर सुनने वाले सब ऐसे सहमत होते हैं जैसे अंतर्जाल पर नाम आ जाने भर से स्त्री का मान -सम्मान सब खतम!
      **इस बात पर मुझे लगा कि क्या हम अगर ब्लॉग्गिंग करते हैं तो फ़ालतू हैं ?या बहुत बुरा काम करने लगे हैं!

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    2. मेरी असहमति दर्ज कर ले आप दोनों
      ब्लॉग लेखन को ज्यादा तर लोग सोशल नेटवर्क बना लेते हैं और इस लिये
      समय बर्बादी का तमगा घर और बाहर दोनों पाते हैं
      और अगर क़ोई आप को गलत कहता हैं तो प्रतिकार जरुरी हैं ना की चुप रहना
      जानती हूँ प्रतिकार करना और विद्रोह करने से आप लोगो की आँख का कांटा
      बनते हैं नाकि तारा पर आप यहाँ अपनी बात कहने आये हैं और अपनी बात को
      दूर तक पहुचाने आये हैं नाकि कमेन्ट पाने . ना जाने कितनी महिला ब्लॉग लेखिका
      जो कभी महिला ब्लॉग लेखिका की पोस्ट पर कमेन्ट नहीं करती कुछ ऐसे ब्लॉग पर उनके
      कमेन्ट अवश्य होते जो महिला का अपमान करते हैं
      आप दोनों पूरी इमानदारी से सोचे क्या कभी आप ने किसी महिला ब्लॉगर
      के अपमान के बाद चुप्पी साध ली ये सोच के " हमे क्या करना , चुप रहना बेहतर हैं "

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    3. मेरा आग्रह मानिये हर उस जगह जहां महिला ब्लॉगर का अपमान होता हैं
      वहाँ खुल कर विरोध करिये
      ब्लॉग लेखन से दूर मत जाए
      इसको अपने मन मुताबिक़ माहोल का बनाए
      कुछ मेहनत करिये , जल्दी और बदलाव आयेगा
      जेंडर बायस से मुक्ति चुप रहने से मिलती तो भारतीये महिला कबकी बराबर हो चुकती

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    4. आप की बात सही और अच्छी लगी..जहाँ भी किसी महिला का अपमान होता है वहाँ हमें खुलकर इमानदारी से बोलना चाहिए.तभी शायद कुछ बदलाव आएगा.

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  8. बहुत दिनों बाद आपको दुबारा इस ब्लॉग पे देखना अच्छा लगा ...
    ये सच है कुछ पुरुष (हो सकता है अधिकाँश) इस मानसिकता में रहते हैं आज के दौर में भी ... पर समय बदल रहा है ... सामाजिक क्रान्ति अपना आकार लेने लगी गई ...
    सच कहूँ तो मेरा खुद का अकाउंट नहीं है फेसबुक पे पर मेरी पत्नी का एकाउंट है ... और ऐसे कई मिल जायंगे ... ये शायद एक अच्छी शुरुआत तो है ...

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    1. मैं ने कहा दिगम्बर जी कि एक वर्ग विशेष के लोग हैं..जो खुल कर सोचते हैं..समझते हैं.

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  9. अल्पना ,यह प्रतिक्रियात्मक ,नकारत्मक ऊर्जा से प्रेरित लेख है -मुझे क्षमा करना यह लिख रहा हूँ.....
    दुनिया में अच्छे बुरे सब तरह के लोग हैं -हम अंतर्जाल पर अंततः उन्ही लोगों का साथ करते हैं जैसा खुद होते हैं ...
    क्योकि यहाँ भी अच्छे भी बुरे भी हैं ..धोखेबाज भी हैं ,मुखौटे लगाए लोग हैं ....मगर यह हमारी दृष्टि का दोष है अगर हम बुरों को
    सर चढाते हैं -आपका अनुभव तिक्त रहा है ,हमारा भी रहा है -हमारा भी घरे मोहभंग हुआ है मगर यहाँ हैं इसलिए कि अच्छे भी हैं जो हमें यहाँ से जाने नहीं देते -उसमें एक आप भी हैं ....अब जाने जैसी बातें तो करो मत डियर ! !

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    1. अरविन्द जी ,मैं जाने की बात नहीं कह रही लेकिन कुछ समय से जो महसूस किया और अनुभव किया वही यहाँ लिखा है.हम अगर अंतर्जाल पर मिले साथियों से नर्म व्यवहार करते हैं तो भी गलत मतलब निकला जाता है और अगर स्वभाव कडा हो तो भी.

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    2. अच्छे लोग हैं यहाँ इसीलिये अभी तक हैं हम सब लेकिन लगता यही है कि उम्र के सेफ ज़ोन [६० के बाद]में जाने के बाद ही अंतर्जाल की दुनिया में आना चाहिए अन्यथा नहीं .

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    3. जब यह बातें आधी दुनियाँ की ओर से आती हैं तो मुझे सहज बोध सा हो उठता है कि कहीं यह विदाई गीतिका तो नहीं :(
      इसलिए ही लिखा,मगर आपने आश्वस्त किया अच्छा लगा ! मैं वह पहला ब्लॉगर रहा हूँ (शायद ) जिसने आपकी अनुपस्थिति का गहरा अनुभव किया था -रचनात्मकता तिरोहित न हो ..बाकी सब कुछ बर्दाश्त है ...आपको सक्रीय देखकर बहुत अच्छा लग रहा है .....और हाँ ६० साल के उम्र वाले क्या हसीं नहीं होते :) यह तो सरासर अपमान है उनका :) अब आगे और कुछ नहीं लिखूंगा चाहते हुए भी :) यहाँ लोग मसाला ढूँढने को लालायित रहते हैं !

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  10. good and very truthful blog post
    i have put the link on naari blog for mass circulation

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  11. अल्पना जी, एक गम्भीर यथार्थ का अवलोकन किया है। सौजन्य पूर्वक भले आप कहें कुछ को छोडकर। पर यह मानसिकता अच्छे अच्छे पढ़े-लिखे विद्वानों में भी व्याप्त है। हम कितना ही विकास करलें यह मानसिकता है कि पिछा ही नहीं छोडती।

    आपने एक कुटिल मुस्कान वाली सोच पर प्रहार किया है। ऐसा सुक्ष्म निरिक्षण होना ही चाहिए।

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    1. इस स्थिति की मनोवज्ञानिक विश्लेषण की भी आवश्यकता है.

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  12. अल्पना जी, मुझे नहीं लगता कि औरत शब्द में कोई अनादर निहित था। सच कहूँ तो महिला से अधिक मैं स्त्री कहलाना पसन्द करती हूँ। महिला में कुछ लेडी वाला भाव आता है जबकि स्त्री में विशुद्ध दो तरह के मनुष्य में से एक का।
    वैसे शब्दों के प्रति यह बायस या पूर्वाग्रह स्वाभाविक है। मुझे पुरुष शब्द ठीक लगता है और मर्द नहीं। शायद जीवन में पहली बार यह शब्द टाइप कर रही हूँ। मुँह से तो शायद कभी निकाला ही नहीं। आपने कहा.....
    पुरुषों द्वारा अंतर्जाल पर फेसबुक पर/आने पढ़ने या लिखने वाली महिलाओं को 'उपलब्ध' अंग्रेज़ी में कहें तो 'available'! समझा जाता है
    ..... बात शायद यह है कि साथ पढ़ने वाली, काम करने वाली या सड़क पर चलने वाली या यात्रा करने वाली स्त्री की तरह हम भी उनकी पहुँच के भीतर आ गई हैं। सो उन्हें लगता होगा कि कुछ भी कहने, सुनाने, अभद्रता करने के उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर आ गईं हैं।
    मेरा पति/पिता /भाई /पुत्र/ सास/ माँ मुझे यह या वह करने देता है या नहीं करने देता है कहने वाली स्त्री अपनी दास मानसिकता का परिचय देती है। यदि हम अपने लिए निर्णय लेने के अधिकार किसी अन्य को थमा देती हैं और वह भी तब जब हम आर्थिक रूप से भी सक्षम हों तो किसी को क्या दोष दें?
    मुझे इस क्लिप की कोई सार्थकता नहीं दिखाई देती। यह पाक, खुदा आदि बातें सच नहीं हैं। रात और दिन दोनों के सजे, केवल पुरुष के नहीं। हम कोई त्याग की देवियाँ नहीं, जीती जागती हाड़ माँस की मनुष्य हैं। बुरी भी और अच्छी भी।
    घुघूती बासूती

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    1. @क्लिप हटा दी है..मुझे औरत के विषय में जो बातें उस में कही गए थीं ....मर्मस्पर्शी लगी थीं..और हकीकत भी इसलिए लगायी थी.
      @आप की बात सही है कि औरत शब्द में बुराई नहीं लेकिन जब इस शब्द को की-बोर्ड -के साथ जोड़ दिया गया..तब बहुत हल्का लगने लगा .

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  13. हाँ इस मानसिकता में बदलाव इतने सदियों में भी कम ही आया है..
    वो चाहे हमारे यहाँ देख लें या फिर पश्चिम की ओर.. पढ़े-लिखे होने से आपकी मानसिकता नहीं बदलती.. शिक्षित होने से बदलती है
    पर आजकल पढ़े-लिखे वालों की ही पूछ ज्यादा है..
    मेरे ख्याल से अपना मनोबल न टूटने देने वाली महिलाएं ही विजयी होंगी.. और आशा और विश्वास पर तो जीवन चल रहा है..
    यही स्वेच्छा है कि स्त्रियों के प्रति अच्छी मानसिकता वाले लोगों की तादाद और बढ़ेगी और यह दुनिया एक अच्छी जगह कहलाएगी..

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    1. उम्मीद ही रह गयी है !

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  14. कुछ मामलों में तो लोग वाकई बड़ा ही अटपटा व्यवहार करते हैं, फिर वही अपनी सुविधा और स्वार्थपूर्ति हेतु.

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    1. आप ने सही समझा.

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  15. शब्द से ऐतराज हो सकता है। मुझे घुघूती बासूती जी की बात भी अच्छी लगी।

    हां विकृत मानसिकता वाले लोग किस क्षेत्र में नहीं हैं।

    हम तो अपनी ही कह सकते हैं।

    घर में श्रीमती जी का अपना ब्लॉग है। फ़ेसबुक पर एकाउंट है। उनका अपना लैपटॉप भी है।

    अंतरजाल पर कितनी महिलाओं से यदा कदा बात चीट (चैट) हो जाया करती है। सम्मान का हनन किसी भी पक्ष से आजतक नहीं हुआ।

    रचना जी के दूसरे कमेंट को मेरा भी समझा जाए।

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    1. ऐसा होना चाहिए..मान-सम्मान की ही बात मुख्य है.

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  16. संकीर्ण और दकियानूसी मानसिकता के लोगों की बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. अपनी राह चलते रहना चाहिए. अपनी भावनाओं को कुंठित नहीं होने देना चाहिए. उन्हें अभिव्यक्त होने देना चाहिए.

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  17. आपका कहना सही हैं.ये मानसिकता अभी गई नहीं हैँ लेकिन फिर भी मैं दिगम्बर नासवा जी से भी सहमत हुँ.औरत शब्द बुरा तो नहीं हैं पर पता नहीं क्यों अब सुनने में बडा अजीब लगता हैं.लेकिन मर्द और मर्दानगी जैसे शब्द तो सचमुच बहुत घटिया लगते हैं.

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  18. नारी प्रतिभा को उभरने से पहले संशय ग्रस्त करने की दुर्भावना ही होती है।


    सविनय आमन्त्रण-
    निरामिष: शाकाहार अपनाइये प्रसन्न रहिये।

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  19. baat kuchh hadd tak to sahi hai, par aisa agar hota to aap sab naam chin blogger itna sakriya nahi hotin...:)
    hamne to bahut se lady blogger ko ideal samjha hai!!

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  20. yah ek lambee aur gambheer bahas ka maamlaa he..kintu samaadhaan????kher..aap mahilaa he..mujhse behatar janti samjhati he..me to bas padhhta-likhta rahtaa hu..hnaa ghumtaa bhee khoob hoo ..aashcharyjanak badlaav he..sachmuch aashcharyjanak...sthitiyaa vesi nahi he jesi ukt lekh me jaahir kee gaee he yaa hogi...| agar sthitiyaa vesi bhi he to pratishat me kam..jee, me sharo ki hi baat nahi kar rahaa gaav gaav ki baat kar rahaa hu...ek varg vishesh ki unnati-avnati par nigaahe na daali jaaye..balki sampoornta ka pratishat nikaalaa jaaye...stree svachchand hui he..ho rahi he...

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  21. जहाँ तक 'की बोर्ड वाली औरतें' शीर्षक से आपत्ति की बात है तो यह एक ध्वन्यात्मक अर्थ उत्पन्न करता है और इसीलिए संपादक को व्यावसायिक-हितों के अनुकूल लगा होगा.पूरा शीर्षक किसी पुराने उपन्यास या भुतिया कहानी के जैसा लगता है.सच में ..कई बार किसी खास सन्दर्भ में शब्द-विशेष से भी अनर्थ उत्पन्न हो जाते हैं.निश्चित ही अब समय के अनुसार स्त्री शब्द सभ्य और आत्म-निर्भर सा लगता है.

    स्त्रियों के अंतर्जाल को लेकर उनके स्वयं के डर हैं और यहाँ आशंकाएं भी उतनी हैं.हर जगह अच्छे -बुरे लोग हैं. इसलिए दृढ़-निश्चयी लोगों के लिए कहीं कोई परेशानी नहीं है !

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  22. hi.. laxmikant maurya-aaj ke naujawan bachho se yahi ummid rakhuga ki apne kartabay ka palan kare aur galat raste ka pryog na kare

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आप के विचारों का स्वागत है.
~~अल्पना