आज एक नया संग्राम लाना चाहिए,
हो गया पुराना संसार नया चाहिए,
आईनों के धुंधले अक्स नहीं चाहिए,
लेबलों से लदे इंसान नहीं चाहिए,
आज एक नया संग्राम लाना चाहिए,
हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
झूटे करें वादे और लूटे भोलेपन को,
सत्ता के ऐसे गुलाम नहीं चाहिए,
बहता हो जिससे लहू मासूमों का,
ऐसे खूनी फरमान नहीं चाहिए,
पैसों के कांटे छीले प्यार की कली को,
आज हमें ऐसे धनवान नहीं चाहिए,
रिश्तों में बहता हो सिर्फ़ खारा पानी,
ऐसे रिश्तों की पहचान नहीं चाहिए,
आज एक नया संग्राम लाना चाहिये,
हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
इंसानियत के खूनी इंसान
आज हमें ऐसे हैवान नहीं चाहिए,
जो न मिलने दे इन्साफ के खुदा से हमें,
आज हमें ऐसे दरबान नहीं चाहिए,
जिस से बरसता हो सिर्फ़ काला पानी,
आज हमें ऐसा आसमान नहीं चाहिए,
जिस घर में सन्नाटे और चीखें हों,
आज हमें ऐसे मकान नहीं चाहिए,
आज हमें नया संग्राम लाना चाहिये,
हो गया पुराना संसार नया चाहिए.
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जिस से बरसता हो सिर्फ़ काला पानी,आज हमें ऐसा आसमान नहीं चाहिए,
ReplyDeleteजिस घर में सन्नाटे और चीखें हों, आज हमें ऐसे मकान नहीं चाहिए,
अच्छा कहा आपने ..सुन तो नही पायी अभी पर पढने में यह दिल के हालात को बयान करती है
मन आक्रोशित ओर गुस्सा है अल्पना जी......सच में अब ये हालात बदलने चाहिये
ReplyDeleteपैसों के कांटे छीले प्यार की कली को,आज हमें ऐसे धनवान नहीं चाहिए,
ReplyDeleteरिश्तों में बहता हो सिर्फ़ खारा पानी, ऐसे रिश्तों की पहचान नहीं चाहिए,
बहुत ओजस्वी कविता ! आज इसी जज्बे की आवश्यकता है !
रामराम !
ऐसे समय में ऐसे ओज और परिवर्तन को गुहारती कविता की बहुत आवश्यकता महसूस होती है। आपकी इस प्रस्तुति ने उस शून्य को भरा। धन्यवाद।
ReplyDeleteइंसानियत के खूनी इंसान आज हमें ऐसे हैवान नहीं चाहिए,
ReplyDeleteजो न मिलने दे इन्साफ के खुदा से हमें,आज हमें ऐसे दरबान नहीं चाहिए,
" wow what a wonderful creation of your on the subject..... these two lines are just core of the poem and reflecting fact of the mumbai incident.."
अल्पना जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है और आपकी आवाज़ तो मधुर है ही।
बेहतरीन कविता...
ReplyDeleteअल्पना जी ये कर डाला आपने,एक तो ओजस्वी कविता और ऊपर से ये मखमली आवाज वह क्या खूब कहा आपने बहोत खूब .. बधाई किस शब्द में दूँ वो शब्द नही है मेरे पास ... बहोत खूब लिखा और पढ़ा आपने ......बहोत खूब...
ReplyDeleteइंसानियत के खूनी इंसान आज हमें ऐसे हैवान नहीं चाहिए,
ReplyDeleteजो न मिलने दे इन्साफ के खुदा से हमें,आज हमें ऐसे दरबान नहीं चाहिए,
sach aha alpana ji bahut hua ab e badlav jaruri hai,bahut hi achhi sashakt rachana badhai
झूटे करें वादे और लूटे भोलेपन को,सत्ता के ऐसे गुलाम नहीं चाहिए,
ReplyDeleteबहता हो जिससे लहू मासूमों का, ऐसे खूनी फरमान नहीं चाहिए,
अल्पना जी बहुत ही सुंदर कविता लिखी आप ने
धन्यवाद
abhi-abhi
ReplyDeleteजब कभी यादों के दर्पण टूट जाएंगे,
kavita aapki avaj mein suni...
lajwab
आपने बहुत अच्छा िलखा है । शब्दों में यथाथॆ की अिभव्यिक्त है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है । समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें -
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
कडवी सच्चाई को बडी सरलता से सामने रख दिया्।
ReplyDeleteओजपूर्ण एवं विचारोत्तेजक कविता पढवाने का आभार।
ReplyDeleteaap bilkul sahi kah rahi hain.
ReplyDeleteये सिर्फ़ गीत नही आह्वान है .
ReplyDeleteबहुत बधाई आपको.
सुलभ पत्र - Hindi Kavita blog
...naya sangraam lana chahiye, vichaar bahot hi sachcha aur steek hai. kavita parh kr kaheeN n kaheeN mn mei dbe aakrosh ki tripti bhi hoti hai. ye sandesh apni manzil tk jaye...isi kaamna ke sath badhaaee svikaareiN.
ReplyDelete---MUFLIS---
बहुत अच्छी कविता। लेकिन बात इच्छा और इंतजार से आगे की भी होनी चाहिए।
ReplyDeleteअल्पना जी,
ReplyDeleteबधाई
इंसानियत के खूनी इंसान आज
हमें ऐसे हैवान नहीं चाहिए,
जो न मिलने दे इन्साफ के खुदा से हमें,
आज हमें ऐसे दरबान नहीं चाहिए,
bahut sundar
- vijay
बहुत सुंदर गीत।
ReplyDeleteaisa aasmaaan nahi chahiye.....wah! bahut achchha likha aapne...badhai sweekarien...
ReplyDeleteबेहतरीन सृजनात्मक प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteHi alpana,
ReplyDeletepls chk yahoo mail.
I have presented you with an award, please come by my blog and pick it up. Hope you're having a terrific week-end.
ReplyDeleteaapki kavita ne ek aisi tasweer prastut ki hai , jo hamen ek acche samaj ke liye protsahit karti hai .
ReplyDeleteitni acchi kavita ke liye badhai..
regards,
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
ये कविता तो भारत के नेताओं को जरुर पढना चाहिये और इससे प्रेरणा लेनी चाहिये ।
ReplyDeleteआप साहित्य की हर विधा में निपुण है यह सहज सिद्ध है बहुत सुंदर बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमाफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.
ReplyDeleteआज कुछ कलम घसीटी है.
आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. यूँ ही निरंतर लिखते रहिये
bahut sundar hai yah post.
ReplyDeleteआज पहली बार आना हुआ आपके ब्लोग पर। और यह रचना पढी भी और सुनी भी। क्या कहूँ शब्द नहीं कुछ कहने को। दिल को छू गई यह रचना। सच में अब ये संसार बदलना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत खूब | सुंदर रचना | विचारों की बेबाक अभिव्यक्ति ||
ReplyDeleteसाधुवाद और स्वागत...
हम सब आप के साथ हैं...आप की जुबानी हम सब की दिल की बात कही गई है...साधुवाद...
ReplyDeleteनीरज
बहुत लगा बहुत सुंदर राचना !
ReplyDeleteआह आह कितनी सुंदर पोस्ट मैंने आज ही क्यूं पढी पता नहीं चला माफ करना बाकी काफी दिन हो गए अगली पोस्ट का इंतजार कर रहे हैं ताकि जल्दी से पढकर कमेंट करें शुभाशीष
ReplyDeleteअल्पना जी........अब वो संग्राम बस होने को ही है...बर्दाश्त की हद बस ख़त्म होने को ही है...!!
ReplyDeletejee han ab bas aar ya paar hona hi chaheeye!
ReplyDeleteaar ya paar jaisa kuchh nahin. samsya ki jad dhudhen. hum ese to nahin hai. jang samsya ka hal kabhi bhi nahin hoti hai. aapka gussa jayaj hai. sabra.
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण स्वर दिया है आपने. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअल्पना जी सुन्दर प्रस्तुति ए लाइने अच्छी लगी बेहद-जिस से बरसता हो सिर्फ़ काला पानी,आज हमें ऐसा आसमान नहीं चाहिए,
ReplyDeleteजिस घर में सन्नाटे और चीखें हों, आज हमें ऐसे मकान नहीं चाहिए,। कभी मौका मिले तो मेरी रचना देखे खिलाएगे तुम्को विरियानी और फासीं पर बहस करेगे। धन्यवाद ।
अल्पना जी नमस्कार्। बहुत सुन्दर भाव हैं मुझे ए लाइने अच्छी लगी।
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