परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है।
जो इस पल है बिलकुल वैसा ही अगला पल नहीं होगा यह भी तय है..
यह सब हमेशा से ही सुनते आये हैं और सुनते रहेंगे ,महसूस करना और इस कथन को जीने में भी फर्क है...
जब इस कथन को जीना पड़ता है ,तब तकलीफ होती है ।
जीवन कब करवट बदलता है पता ही नहीं चलता .
आने वाले बदलाव जीवन में सुख लाएँगे या दुःख...
कुछ कह नहीं सकते ,मात्र आज का ही पता है।
कहा जाता है कि वर्तमान में जिओ ..
क्या वर्तमान में जीने से भविष्य अपने आप संवारा हुआ मिलेगा.?
भविष्य के लिए योजनाएँ भी बनानी तो पड़ेंगी ही..
योजना बनाने के लिए कोई आधार भी होना चाहिए।
ब्लॉग डायरी के पन्ने पलटने मैं यहाँ बहुत दिनों बाद आई हूँ।
मुझे वापस लाने वाली ,आने वाले कल की अनिश्चितता है ।
गत वर्ष जब पहली बार विपश्यना ध्यान सीखा तब लगा जैसे स्थिरता पाने का मार्ग मिल गया है परन्तु नहीं ..
वह स्थिति अभी कोसों दूर है।
पिछले कुछ वर्षों से एक नियम सा बंध गया था यूँ तो उतार चढ़ाव कम कभी रहे नहीं
लेकिन फिर भी कहीं न कहीं निश्चितता थी।
कई अपरिहार्य पारिवारिक कारणों से नौकरी छोड़ कर अब स्वदेश लौटने की तैयारी में हूँ ,मन अशांत है।
यूँ तो कई बार तकदीर ने करवटें ली हैं...लेकिन इस बार जो मोड़ आ रहे हैं उनसे मन में उलझन है.
शायद अनिश्चितता कारण हो...
सलवटें मेरे माथे की हाथों की लकीरों सी लगती हैं मुझे।
ना जाने नियति ने क्या तय किया है मेरे लिए ?
भारत अब तक जाते रहे हैं तो लौट आने के लिए ..लेकिन इस बार से यह उल्टा हो जाएगा.
अध्यापन की नौकरी से ब्रेक में फिर से लिखना नियमित हो पायेगा यह तो तय है।
चलते -चलते फिल्म -किसना के एक गीत की पंक्ति याद आ रही हैं ..
'हम हैं इस पल यहाँ ,जाने हों कल कहाँ''
इसलिए जल्द ही अगली पोस्ट के साथ मिलती हूँ...
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यह सोच कि कल क्या होना है ? या कल के लिए , भविष्य के लिए क्या ? यही हमें वर्तमान से विलग कर देता है। अभी क्या है ? हालांकि यह एक कठिन कार्य है। अभी में जीना कठिन है। किन्तु '' जो है बस वही है '' का भान रखा जा सकता है। इसके अतिरेक '' होई जो राम रचि राखा ' का सूत्र हमारी समस्त मानसिक दुविधाओं का हनन करता है। इससे से भी अगर हम संतोष न हों तो '' जाहि विधि रखे राम ताहि विधि रहिये '' को मन में घर देना अधिक उचित है। बाकी जो हो , सो हो।
ReplyDeleteआपने सही कहा...जाहि विधि रखे राम ताहि विधि रहिये ''मन में रखें तो असंतोष नहीं होगा I सांत्वना देने हेतु आभार.
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-06-2016) को "अपना भारत देश-चमचे वफादार नहीं होते" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरे ब्लॉग की इस पोस्ट को चर्चा में शामिल करने हेतु धन्यवाद डॉ.शास्त्री जी.
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " थोपा गया आपातकाल और हम... ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद बुलेटिन में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु.
Deleteआपका मन समझ सकता हूँ ... आप आने की तयारी में हैं ... सोच समझ के निर्णय लिया होगा ... जरूर लिया होगा ... कई बार आचानक भी हो जाता है जैसे एक रात का सपना ... मैं आने के बाद अभी तक नहीं जा पाया, समय अपने साथ साथ दौड़ा रहा है ... पर होता वही है तो प्रभू चाहता है ... नियति जो चाहती है ...
ReplyDeleteजी दिगंबर जी ,फैसला लिया है ..मन को तैयार कर रही हूँ.
Deleteआसान नहीं है ,बाकी प्रभु इच्छा.
आभार आपका !
jo bhi hoga thik hoga... chinta-uljhan me n rahiye............
ReplyDeleteइन शब्दों के लिए धन्यवाद राहुल जी .
DeleteRespected Smt. Alpana Ji
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Thanks iBlogger team for listing my blog.
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Regards
Alpana