कहीं दूर चलें
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सोचती हूँ आज ,कहीं दूर चलें,
गुनगुनाती शाम के धुंधलके में,
चाँद की रोशनी के मद्धम होने तक ,
तुम करो बातें और मैं सुनती जाऊँ .
फूलों की खुशबू और झरने के मधुर स्वर,
गिरते पानी की बूंदों को हवा -
-मेरी अलकों पर मोती सा सजाती ,
माथे पर गिरी बूंदों को तुम्हारी उँगलियों की छुअन-
सोयी आरजूएं जगा जाती लेकिन..
अधरों पर आ कर हर बात ठहर जाती.
रात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
दिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...
सोचती हूँ आज कहीं दूर चलें..
[--Alpana Verma]
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सोचती हूँ आज ,कहीं दूर चलें,
गुनगुनाती शाम के धुंधलके में,
चाँद की रोशनी के मद्धम होने तक ,
तुम करो बातें और मैं सुनती जाऊँ .
फूलों की खुशबू और झरने के मधुर स्वर,
गिरते पानी की बूंदों को हवा -
-मेरी अलकों पर मोती सा सजाती ,
माथे पर गिरी बूंदों को तुम्हारी उँगलियों की छुअन-
सोयी आरजूएं जगा जाती लेकिन..
अधरों पर आ कर हर बात ठहर जाती.
रात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
दिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...
सोचती हूँ आज कहीं दूर चलें..
[--Alpana Verma]
रात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
ReplyDeleteदिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...
सोचती हूँ आज कहीं दूर चलें..
अरसे बाद ....कुछ रूमानी सा आपकी कलम से पढने को मिला .......गुलाब ने उसे ओर रूमानी बना दिया है
अच्छे भाव और सुंदर ख्याल है ..कहीं दूर चले ...बहुत बढ़िया बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा अच्छा लगा
ReplyDeleteरात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
ReplyDeleteदिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...
सोचती हूँ आज कहीं दूर चलें..
" very beautiful thoughts and words with romantic and loving touch." so nice to read you after a long time.
Regards
सोचती हूँ आज कहीं दूर चलें....सुंदर कविता है
ReplyDeleteरात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
ReplyDeleteदिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...
आपका लिखा पढ़ा अच्छा लगा
sundar .bhaavpoorn panktiyan hain..
ReplyDeletehar subah achchhi lagi har sham bhi achchhi lagi;
ReplyDeleteaapse parichaya hua to zindagi achchhi lagi.
bhor men batiya rahi thi ik kali se ik iran,
os men bhigi tumhari tazagi achchhi lagi.
रात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
ReplyDeleteदिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...
haaye bahut khubsurat pal sajaya hai en panktiyon mein,dil mein kuch armaan jage:),bahut sundar rachana.
bahut dino baad aapse milna hua,hum achhe hai alpana ji, aasha hai aapki diwali bahut behtarin rahi hogi,belated wishes for diwali.apna khayal rakhiega.
SATYM SHIVAM SUNDARAM
ReplyDeletekavita par tippani kar ne ke liye aap sabhi ka dhnywaad :)..haan main yah sochti thi ki main kuch aisa nahin likh paungi.magar..kabhi kabhi..qalam ki tabeeyat bhi badal jaati hai...aisa anubhav hua abhi abhi...
ReplyDeletekahin ek sher suna tha---'aankh se duur na ho dil se utar jayega'....main yah soch rahi thi ki meri absence mein mujhey bhuul gaye hongey sab...lekin sab kuch waisa hi paa rahi hun..aur wapas blog Jagat mein aa kar bahut achcha lag raha hai..:)--abhaar sahit-Alpana
बहुत पसँद आयी आपकी भावभरी सुँदर कविता ~~~
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteसुंदर अऩुभूतियां....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्दों का संचार इस कविता के माध्यम से रचा.
ReplyDeleteबहूत खूबसूरत रचना है
ReplyDeleteबहुत अच्छा िलखा है आपने । किवता में भाव की बहुत संुदर अिभव्यिक्त है । अपने ब्लाग पर मैने समसामियक मुद्दे पर एक लेख िलखा है । समय हो तो उसे भी पढे और अपनी राय भी दें -
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
गुनगुनाती शाम के धुंधलके में,
ReplyDeleteचाँद की रोशनी के मद्धम होने तक ,
तुम करो बातें और मैं सुनती जाऊँ .
bahut roomani hai...lovely.
बहुत सुंदर गहरे भावों को संजोये बेहतरीन कविता ... बधाई कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें आशा है आपको पसंद आयेगा
ReplyDeleteबहुत खूब आपने अपने विचारों को सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
ReplyDelete
ReplyDeleteदिनांक 17/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
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अनाम रिश्ता....हलचल का रविवारीय विशेषांक...रचनाकार-कैलाश शर्मा जी
सुन्दर कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जल्दी से निकल जाइए सैर पर
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