चित्र गूगल से साभार |
सब कहते हैं कि यह भागती -दौड़ती दुनिया है । दुनिया भी तो हमीं से बनी है ,क्या हम सभी भाग नहीं रहे ?इस दौड़ में कौन आगे कौन पीछे रह गया यह तब मालूम चलता है जब कहीं रुक जाएँ ,ठहर जाएँ।
माही को भी आज अचानक रुकना पड़ा क्योंकि सीधी ,ऊँची-नीची तो कभी टेढ़ी या लहरदार ही सही मगर हर राह से वह बहुत तेज़ी दौड़ती हुई सी गुज़री है।
आज उसे ठहरना पड़ा है क्योंकि जिस बिंदु पर वह रुक गयी है वहाँ से आगे कई रास्ते फैले हुए हैं ।
वह असमंजस में है रुकने पर ही उसे अहसास हुआ कि वह कितनी अकेली है।
उसके हर और धुंध सी छायी है, कोई कहीं दिखाई भी नहीं देता है।
भागते -दौड़ते हुए उसे न कभी किसी के साथ की ज़रूरत पड़ी न ही रौशनी या अँधेरे में फर्क महसूस हुआ।
कैसी अंधी दौड़ थी ?माही इस मोड़ पर आ कर हताशा के घेरों में घिरी है।
अचानक उसे याद आया कुछ उसके पास हमेशा रहता है ,उसकी जमा पूंजी ..हाँ ,कमर में बंधी पोटली निकाल कर उसके मुंह की डोरी ढीली की और हाथ भीतर डाला तो कुछ चुभा !उसने देखा उसकी उँगलियों से खून बह रहा था। सारी पोटली ज़मीन पर पलट दी, अब वहाँ कुछ पत्थर और कुछ कांच के टुकड़े थे !
पत्थर? शायद वक़्त के साथ-साथ कब मोम के टुकड़े पत्थर हो गए मालूम ही नहीं चला और काँच?
ओह.....! माही जैसे नींद से जागी ,याद आया कि किसी ने कभी कहा था 'रिश्ते कांच के समान होते हैं 'हैंडल विथ केयर !
माही सोच रही है क्या अब उसे टूटे काँच से लगे इस रिसते घाव के साथ ही उम्र भर जीना होगा?
वह तो उस मुकाम पर है जहाँ पीछे कोई रास्ता नहीं और आगे राहों का जाल बिछा है.
माही को इलेक्ट्रिक शोक दिया जाना है।
माही के माथे पर इलेक्ट्रोड लगाते हुए मैं असहनीय वेदना से गुजर रही हूँ ,सोचती हूँ न जाने हम में से कितने अब भी भाग ही रहे हैं 'एक अंधी दौड़' जिसका अंजाम हमेशा सुखकर नहीं होता।
=========================अल्पना वर्मा ==========================
मार्मिक
ReplyDeleteकई बार लगता है की भागना शुरू ही न करो ... और शुरू करो तो इतना भागो की भागते ही रहो ... कब सांस पूरी हो जाए इसका भी पता न चले ... बीच में रुकना पशोपश में पड़ना होता है ... जैसे हम सब का .. जो बहार आ गए देश से और कई बार लगता है न इधर के हैं न उधर की ...
ReplyDelete:( ...जी सही कहा .
Deleteसही कहा दिगंबर जी ने। जीवन की मझधार में फंसना कष्टकारी होता है।
Deleteबहुत सही
ReplyDeleteबहुत उम्दा और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...तमाम उम्र हम भागते ही तो रहते हैं झूठी और अनजानी अभिलाषाओं के पीछे और अंत में निराशा ही हाथ लगती है।
ReplyDeleteमार्मिक भाव व्यक्त करती हुयी कुछ सोचने पर विवश करती कहानी। .
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteइस दौड़ में हर कोई आगे निकलना चाहता है…पर रास्ता है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता ...
ReplyDeleteअति मार्मिक अभिव्यक्ति। बधाई। सस्नेह
ReplyDeletetouchy thoughtful post
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