१४ सितम्बर ' हिंदी दिवस वर्ष बिता कर लौट आया है.
भारत में ८५० भाषाएँ हैं लेकिन जिस भाषा को हम देश की जीवन रेखा कहते हैं ,राष्ट्र को एकता में बाँधने वाला कहते हैं ,उसे एक दिन का सम्मान मिलता है फिर अंग्रेजी के मानस पुत्रों द्वारा होता है वही रोज़ का अपमान ,इस में संदेह नहीं कि अपने ही देश में पराई होती जा रही है।
अंग्रेजी भाषा को केवल ५ % भारतीय समझ पाते हैं उसे ही सबसे अधिक मान हिंदी की कीमत पर दिया जा रहा है.
कहने को राजभाषा है ,परन्तु राजकाज में इसे कितना अपनाया गया ?मंत्रालयों में ही नहीं ,अन्य कुछ क्षेत्रों में भी देखें तो जैसे कि शेयर मार्किट,सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और बीमा कम्पनियाँ आदि । हिंदी का प्रयोग न के बराबर ही पाएँगे मानो वहाँ सभी अँगरेज़ हैं !हम अंग्रेजी के विरोधी नहीं हैं,यह चाहते हैं कि इन स्थानों पर अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी काम हो।
भारत सरकार के कानून के अनुसार हिन्दी में वेबसाइट बनाना और उसे समय-समय पर अंग्रेजी वेबसाइट के साथ अद्यतन करना कानूनन अनिवार्य है परकई राज्यों की वेबसाइट मात्र अंग्रेजी में हैं उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषा में भी नहीं हैं हिंदी तो दूर की बात है।
ये राज्य अपनी वेबसाइट पर जानकारी अंग्रेजी में ही बता कर गर्व का अनुभव कर रहे हैं।
कौन सुध लेगा?
आप हिंदी भाषी राज्य की ही बात करें तो उत्तर प्रदेश की साईट देखें ,यह साईट अंग्रेजी में ही खुलती है ,मैंने उन्हें २ महीने पहले इस विषय में लिखा था तब यहाँ हिंदी का टेब भी नहीं था ,अब हिंदी पेज है लेकिन अधूरा !आप 'प्राकृतिक संपदा 'पर ही चटका लगायें तो जिस पेज पर पहुंचेंगे वह अंग्रेजी का होगा।
आशा है हिंदी पेज पर पूरी जानकारी कम से कम हिंदी भाषी राज्य तो अपनी वेबसाइट पर दें!
मध्य प्रदेश सरकार की सराहना करनी चाहिये जहाँ साईट का पता डालते ही हिंदी में साईट खुलती है.
केरल की पर्यटन साईट भी हिंदी ,अंग्रेजी दोनों में है.
भाषा प्रेम का एक अच्छा उदाहरण एमिरात से ही लीजिये जो कि भारत की तुलना में एक छोटा देश है यहाँ बाज़ार में मिलने वाला सभी सामान चाहे वह आयातित हो या घरेलू ,हर वस्तु पर अंग्रेजी /या जिस देश से उत्पाद आया है वहाँ की भाषा के साथ अरबिक में भी उत्पाद की पूरी जानकारी उसकी पैकिंग पर होती है. मगर हमारे भारत देश में मिलने वाले सामान /मॉल/वास्तु पर क्षेत्रीय या हिंदी भाषा में जानकारी का होना अनिवार्य नहीं है ,अधिकतर उत्पादों पर अंग्रेजी में जानकारी छपी होती है। ग्राहक उत्पाद की जानकारी कैसे जाने? ढेरों सरकारी रूपये खर्च कर ग्राहक जागो का अभियान चलाती है मगर इस पक्ष पर सरकार ने आँखें मूंद रखी हैं.
हम चाहते हैं कि सरकार जल्दी ही कोई कड़ा कानून बनाए ताकि हर कम्पनी अपने उत्पाद की जानकारी उसकी पैकिंग पर राजभाषा हिंदी में या क्षेत्रीय भाषा में जानकारी दे और ९५% ग्राहकों के अधिकारों का हनन न हो. मोती लाल गुप्ता जी ने एक मुहीम इसी विषय पर चलाई हुई है परन्तु सरकार की तरफ से अभी तक कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं हुई.
सच यही है कि हिंदी को उसका पूरा मान दिलाने का प्रयास सभी देशवासियों को मिलकर करना है।
'हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ '

अंग्रेजी भाषा को केवल ५ % भारतीय समझ पाते हैं उसे ही सबसे अधिक मान हिंदी की कीमत पर दिया जा रहा है.
कहने को राजभाषा है ,परन्तु राजकाज में इसे कितना अपनाया गया ?मंत्रालयों में ही नहीं ,अन्य कुछ क्षेत्रों में भी देखें तो जैसे कि शेयर मार्किट,सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और बीमा कम्पनियाँ आदि । हिंदी का प्रयोग न के बराबर ही पाएँगे मानो वहाँ सभी अँगरेज़ हैं !हम अंग्रेजी के विरोधी नहीं हैं,यह चाहते हैं कि इन स्थानों पर अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी काम हो।
भारत सरकार के कानून के अनुसार हिन्दी में वेबसाइट बनाना और उसे समय-समय पर अंग्रेजी वेबसाइट के साथ अद्यतन करना कानूनन अनिवार्य है परकई राज्यों की वेबसाइट मात्र अंग्रेजी में हैं उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषा में भी नहीं हैं हिंदी तो दूर की बात है।
ये राज्य अपनी वेबसाइट पर जानकारी अंग्रेजी में ही बता कर गर्व का अनुभव कर रहे हैं।
कौन सुध लेगा?

आशा है हिंदी पेज पर पूरी जानकारी कम से कम हिंदी भाषी राज्य तो अपनी वेबसाइट पर दें!
मध्य प्रदेश सरकार की सराहना करनी चाहिये जहाँ साईट का पता डालते ही हिंदी में साईट खुलती है.
केरल की पर्यटन साईट भी हिंदी ,अंग्रेजी दोनों में है.
भाषा प्रेम का एक अच्छा उदाहरण एमिरात से ही लीजिये जो कि भारत की तुलना में एक छोटा देश है यहाँ बाज़ार में मिलने वाला सभी सामान चाहे वह आयातित हो या घरेलू ,हर वस्तु पर अंग्रेजी /या जिस देश से उत्पाद आया है वहाँ की भाषा के साथ अरबिक में भी उत्पाद की पूरी जानकारी उसकी पैकिंग पर होती है. मगर हमारे भारत देश में मिलने वाले सामान /मॉल/वास्तु पर क्षेत्रीय या हिंदी भाषा में जानकारी का होना अनिवार्य नहीं है ,अधिकतर उत्पादों पर अंग्रेजी में जानकारी छपी होती है। ग्राहक उत्पाद की जानकारी कैसे जाने? ढेरों सरकारी रूपये खर्च कर ग्राहक जागो का अभियान चलाती है मगर इस पक्ष पर सरकार ने आँखें मूंद रखी हैं.
हम चाहते हैं कि सरकार जल्दी ही कोई कड़ा कानून बनाए ताकि हर कम्पनी अपने उत्पाद की जानकारी उसकी पैकिंग पर राजभाषा हिंदी में या क्षेत्रीय भाषा में जानकारी दे और ९५% ग्राहकों के अधिकारों का हनन न हो. मोती लाल गुप्ता जी ने एक मुहीम इसी विषय पर चलाई हुई है परन्तु सरकार की तरफ से अभी तक कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं हुई.
ऐसे कई हिंदी प्रेमी हैं जो इस भाषा की सेवा में जी जान से लगे हुए हैं ,इसे प्रयाप्त सम्मान मिले ऐसे प्रयास कर रहे हैं । इनमें कई उल्लेखनीय नाम हैं जैसे मोती लाल गुप्ता , मुम्बई के प्रवीण कुमार जैन और मोहन गुप्ता जी। और कई नाम होंगे मगर मेरी जानकारी में नहीं हैं ,आप जानते हों तो अवश्य ही हमें भी बताएँ।
प्रवीण जैन जी ने हाल ही में अपने प्रयासों से एक बड़ी सफलता हासिल की - 'अब पसूका वेबसाइट की सभी सेवाओं में हिन्दी को प्राथमिकता मिलेगी '… जिसे आप उनके ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं।सच यही है कि हिंदी को उसका पूरा मान दिलाने का प्रयास सभी देशवासियों को मिलकर करना है।