जब भी देखा तुमको,
सोचा-
पूछूँ-
रंग चुराया धूप से तुमने
या फिर कोई रोग लगा है?
झुलसते जलते मौसम में
कैसे तुम लहराते हो?
खुश्क गरम हवाओं को भी
कैसे तुम सह पाते हो?
कैसे तपती धरती को
छाया दे बहलाते हो?
झूमर कुछ पल मौन रहे,
पर-
फिर भी यूँ बोल गये,
कड़ी धूप नहीं कोई समस्या
ये तो बस है एक तपस्या,
कठिन डगर जीवन की
जो ऐसे ही तय कर पाते हैं,
वो ही रंग और संग जीत का
जीवन में पा जाते हैं।
--अल्पना वर्मा
अनुभूति हिंदी पत्रिका में [जून २००७ ]में प्रकाशित .
"सोचा पूछूँ रंग चुराया धूप से तुमने
ReplyDeleteया फिर कोई रोग लगा है?
झुलसते जलते मौसम में
कैसे तुम लहराते हो?"
खूबसूरत अभिव्यक्ति है...
Very creative and thoughtful indeed. What else you can expect from a poet???
ReplyDeletekya likha hai wah bahut accha.......
ReplyDeleteअल्पना जी
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लाग पर आई हूँ । अच्छा लगा । आपकी भावाभिव्यक्ति प्रशंसनीय है ।
Excellent collection Alpana,
ReplyDeleteThanks for sharing.
I don't know anything about you beyond your poems.
ReplyDeleteBut whatever you wrote is really nice and adorable. all poem are some extent parallel to our legend.
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति अच् में अल्पना जी बहुत गहरे भावः भरी है आपकी कविता आपके गाये गीत भी बहुत मधुर हैं कभी आपके लिखे गीतों को भी रिकॉर्ड करे कृपया
ReplyDeletebehad khubsurat kavita.
ReplyDelete'amaltaas ke jhumaar'aap ki yah kavita main ne abhivyaktimein bhi padhi thi.
sundar rachna hetu .badhayee
अल्पना जी,
ReplyDeleteआपकी यह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी!
कल ही मैंने अमलतास के बहुत सुंदर फ़ोटो लिए
और आज आपकी यह कविता मिल गई!
इनके साथ मैं आपकी यह कविता
ससम्मान "सरस पायस" पर प्रकाशित करना चाहता हूँ!
अनुमति देने की कृपा कीजिए!
"सरस पायस" का अवलोकन करने के लिए
आप सादर आमंत्रित हैं, इस द्वारे से -
http://saraspaayas.blogspot.com
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रावेंद्रकुमार रवि (संपादक : सरस पायस)
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मेरा ई-मेल पता है -
ReplyDeleteRaavendra.Ravi@gmail.com
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रावेंद्रकुमार रवि (संपादक : सरस पायस)
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अब यह रचना बहुमूल्य हो गयी है.हमतो अल्पना का नाम देख उस ब्लॉग पर चले गए. हमने केवल कविता पढ़ी जो मुझे बहुत अच्छी लगी. अमलताश से हम लोगों का रिश्ता बहुत पुराना है. विशु (बिहू) में यह अनिवार्य होता है. हम ने यह भी नहीं देखा कि अल्पना के बारे में किस प्रकार का परिचय दिया गया है. हमें उसे पढने की जरूरत जो नहीं थी.
ReplyDeleteहम तब न आये थे तो क्या हुआ..अब आ गये जी!!
ReplyDeleteआज़ यहां चर्चा के ज़रिये आना हुआ
ReplyDeleteसच बेहतरीन रचना है...
बधाईयां अल्पना जी
To read More comments for this poem--go to this link--
ReplyDeletehttp://anand.pankajit.com/2009/11/blog-post_03.html
unforgettable and Beautiful comment-Thanks to mumbai tiger ji-
ReplyDeleteSELECTION & COLLECTION SELECTION & COLLECTION said...
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जय ब्लोगिग विजय ब्लोगिग
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फिर भी यूँ बोल गये,
कड़ी धूप नहीं कोई समस्या
ये तो बस है एक तपस्या,
कठिन डगर जीवन की
जो ऐसे ही तय कर पाते हैं,
वो ही रंग और संग जीत का
जीवन में पा जाते हैं।
सन २००७,१३ सितम्बर,अल्पनाजी की लिखी पहली पोस्ट
पढकर मैने यह महसुस किया कि वो ही सुन्दर-प्राभावित करने वाली लिखाई का रंग है..और संग जीत का वो ही जुनुन है।
अल्पनाजी, के बारे मे मै इसलिऍ इतना लिखने की जरुरत कर सकता हू क्यो की इन्ही के ब्लोग 'Vyom ke Paar...'व्योम के पार' पर अल्पनाजी की दिल को छूने वाले अक्षरो ने मुझे इस हिन्दी चिठाकारी मे खिचा..... मैने पहले भी एक जगह कहा था-"हिन्दी चिठाकारी मे अल्पनाजी के समकक्ष बहुत कम
लोग है जिनकी लेखनी प्रभावित करती है।"
मैने जब 'हे प्रभू यह तेरापन्थ' ब्लोग बनाया था
तभी सबसे पहला हिन्दी चिठ्ठा 'व्योम' ही था जो मुझे इस और आकृष्ट किया।
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पहेली मे भाग लेने के लिऎ निचे चटका लगाऎ
कोन चिठाकार है जो समुन्द्र के किनारे ठ्हल रहे है
अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी
मुम्बई-टाईगर