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ग़लती से क्लिक हुई छाया एक साए की |
आज सागर का किनारा ,गीली रेत,बहती हवा कुछ भी तो रूमानी नहीं था.
बल्कि उमस ही अधिक उलझा रही थी
माया और लक्ष्य !
तुम मुक्त हो माया! लक्ष्य ने कहा।
मुक्त?
हाँ ,मुक्त !
ऐसा क्यों कहा लक्ष्य?
माया ,मैं हार गया हूँ ! तुम खुदगर्ज़ हो ,तुम किसी को प्यार नहीं कर सकती!
लक्ष्य ,यह निर्णय अकेले ही ले लिया ?
हाँ!
लक्ष्य ,क्या इतना आसान है मुक्त कर देना ?माना कि ये बंधन के धागे तुमने बाँधे थे ,सीमाएँ भी तुमने तय की थी.लेकिन ....
लक्ष्य मौन है ।
माया खुद को संभालते हुए बोलती रही,"बंधन ?संबंधों की उम्र से उसकी मजबूती या परिपक्वता का कोई सम्बन्ध नहीं रहा ?
मुट्ठी में क़ैद की थी न तुमने तितली ! रंगबिरंगे पंखों वाली एक तितली !तितली से पूछा उसे क्या चाहिए मुक्ति या बंधन या बस थोड़ी सी रौशनी?
"मैं इसकी ज़रूरत नहीं समझता "- लक्ष्य ने कहा।
हाँ ,अपने निर्णय तुम खुद ही लेना और देना जानते हो,आखिर हो तो पुरुष ही ! पुरुष जिसके हृदय के स्थान पर उसका अहम् धडकता है !वह उसे ही जीता है ,वह स्त्री के मन को कभी समझ नहीं सकता ।
माया ,क्या तुमने मुझे समझा ?हर समय संदेह ,सवाल और शिकायतें !तुम कभी प्यार कर ही नहीं सकती ,न प्रेम जैसे शब्द को समझने की क्षमता !
माया जड़ हो गयी !'मेरी चाहत को बस इतना आँका तुमने ? उसे लगा जैसे उसको किसी ने ऊँचाई से गिरा दिया हो !
लक्ष्य जा रहा है ।
उसकी हथेलियों में अब भी तितली के पंखों के रंग लगे हुए हैं और तितली उसकी हथेली से चिड़िया बन उड़ गयी है !चिड़िया जो अब एक नीड़ की तलाश में आसमान में पर तौलेगी!
माया ठहर गयी है ,उसे न बंधन की चाह रही न मुक्ति की !
जानती है वह अधूरे प्रेम के लिए शापित है !
उसे चाह है बस एक टुकड़ा बादल ,एक मुट्ठी धूप और थोड़ी-सी हवा संग धरती के उस टुकड़े की जहाँ से वह अंकुर बनकर फूटे !
==========अल्पना ==============
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