स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

February 23, 2013

ज़िला गाज़ियाबाद

विकिपीडिया से साभार 

फिल्म-  ज़िला  गाज़ियाबाद

निर्देशक-आनंद कुमार

निर्माता- विनोद बचन [बच्चन ]

कलाकार -संजय दत्त,अरशद वारसी,विवेक ओबरॉय ,रवि किशन

कहानी -
ज़िला  गाज़ियाबाद  में हुई ९० के शुरआती दशक में 'महेंदर फौजी और सतबीर' दो गुटों के बीच  हुए संघर्ष/मार-धाड़ ,अपराधों  पर आधारित है।


मैं तो उन दिनो शहर में नहीं थी,इसलिए कोई अंदाज़ा नहीं कि उन दिनों कैसे हालात थे।
बाकी फिल्म देखने सिर्फ इसीलिये गयी थी कि  यह शहर अपना  जन्म स्थान है ,इस नाम की फिल्म बनी है तो शहर की झलकियाँ भी अवश्य होँगी।
एक लगाव होता है अपने शहर से, बस वही मुझे थियेटर खींच ले गया मगर इस  फिल्म ने मुझे  बेहद निराश किया .

शहर का एक भी दृश्य नहीं है ,जो गाँव दिखाया गया वह दक्षिण का कोई स्थान लगता है ,इस में दिखाया गया मंदिर भी शुद्ध दक्षिण भारतीय मंदिर लग रहा था।

एमिरात में दिखायी गई फिल्म में से शायद दृश्य /संवाद काटे होंगे तभी  मुझे तो गालियाँ भी एक या दो ही सुनने को मिलीं :)...वरना ये ही लग रहा था कि आधे से अधिक संवाद बिना गालियों के होंगे नहीं ..ऐसा इसलिए कह रही हूँ कि उत्तर प्रदेश से संबंधित जितनी फ़िल्में पहले बनी हैं जैसे ओमकारा ,इश्किया आदि उन सब में यू.पी वालों की यही छवि दिखाई गई है !
हिंसक दृश्यों की बात करें तो गेंग्स ओग वासेपुर से कम ही  थे।

बवादी मॉल के एक ही थियेटर  में येही एक हिंदी फिल्म लगी थी ,शायद संजय दत्त के कारण ..इसे  १५ से ऊपर के दर्शकों के लिए सर्टिफिकेट मिला हुआ है और  २ डी है।
 हॉल में एमिराती दर्शक अधिक थे।
 ८-९ साल के बच्चे -बच्चियां भी दर्शकों में थे  ,जो संजय दत्त के स्टंट देखकर हँस रहे थे शायद उन्हें आजकल के   विडियो गेम्स  जैसे लग रहे होंगे।

ये फिल्म पता नहीं क्या सोच कर बनायी गयी है .गाज़ियाबाद  का तो कोई सीन ही नहीं दिखा। एक जगह बस अड्डे से मिलती जुलती जगह लगी जहाँ संजय दत्त के स्टंट हैं बस!

गाने भी ज़बरदस्ती डाले गए हैं .बहुत ही बेकार से नृत्य और फिल्मांकन।
गोलियाँ ही गोलियाँ चलती रहती हैं ,गेंग्स आपस में लड़ते रहते हैं।देखने वाले को समझ नहीं आता हो क्या रहा है!

दबंग  ,गेंग ऑफ वासेपुर और रौउडी राठोर जैसी फिल्मे सफल हो जाती हैं ये भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

अदाकारी के नाम पर सिर्फ रवि किशन और विवेक के भाई 'ओमी'बने एक्टर  ने प्रभावित किया ,बाकी सब की अदाकारी मामूली ही है। संजय दत्त पुलिस वाले कम मसखरे अधिक लग रहे हैं।
समझ नहीं आता दो गानों में भी गाज़ियाबाद का नाम ऐसे डाला गया जैसे इस फिल्म में जिले के बारे में कितन कुछ बताया गया होगा।

निर्माता या निर्देशक का कोई रिश्ता इस जिले से ज़रूर रहा होगा तभी फिल्म चले  न चले इस नाम की फिल्म बना कर जिले के नाम को मशहूर कर दिया ,जहाँ कभी ये अपराधी हुआ करते थे।
स्टंट के नाम पर  कुछ इतने हास्यापद दृश्य देखने को मिलते हैं जिसे देखकर हंसी आ सकती है भय या रोमांच कतई  नहीं लगता।

तीन घंटे स्वाहा करने हों तो देख  आइये अन्यथा कोई पुरानी अच्छी फिल्म देख  लिजीए,वह बेहतर होगा।

February 13, 2013

आश्चर्यजनक किन्तु सत्य!


एक बार  किसी की आत्म कथा पढ़ रही थी ,उस में उसने अपने अनुभव लिखे थे। ये अनुभव सामान्य  नहीं थे ,ये अनुभव थे जो कुछ उसने देखा -सुना था।देखा- सुना था ??मगर कब और कहाँ ?
उसने देखा था बेहद खूबसूरत बाग़ -बगीचे!इतनी तरह के रंग  जितने इस धरती पर उसने कभी नहीं देखे थे। इतना मोहक संगीत जो पहले कभी नहीं सुना था!हर तरफ मधुर संगीत लहरी बहती सुनायी देती थी!

कवियों की कल्पना में पेड़ -पौधे ,फूल-कलियाँ नदी -झरने सब गाते हैं लेकिन उस ने ऐसा स्वयं महसूस किया !

ये सभी अनुभव  उस स्त्री के हैं जो कोमा  में वेंटिलेटर पर 13 दिन रहने के बाद  फिर से पूरी तरह स्वस्थ हो गयी थी।कोमा की अवस्था में ,उसके अनुसार उसने मृत्यु  के बाद जिस लोक में जाते हैं उस लोक की सैर की थी !मैं नहीं जानती कि उस स्त्री के ये अनुभव कितने सच हैं ?

आज से कई साल [सन 1900 में ] पहले डॉ जगदीश चंद्र  बोस  ने भी अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया था कि पेड़ -पौधों में भी संवेदनाएँ  होती हैं।

इटली के उत्तर में दामान्हुर एक जगह है .-Damanhur Eco- society  -http://www.damanhur.org/
जहाँ  कुछ शोधकर्ता 1976 से इस 'विषय' पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया है की पौधे संगीत रचना कर सकते हैं और करते हैं। वे भी गाते हैं गुनगुनाते हैं!
वे अपना संगीत खुद बनाते हैं !आश्चर्य में अगर हैं तो ये विडियो देखें और सुने ....पौधों को अपनी धुन गाते हुए !



Video-1

Video-2


तीसरी क्लिप में एक शोधकर्ता इस विषय पर विस्तार से समझा रही  हैं कि उनका यह प्रयोग क्या है और कैसे वे इस संगीत को सुन और सुना  पा रहे हैं?

Video-3


अगर उत्सुक हैं और अधिक जानकारी के लिए तो उनकी आधिकारिक साईट पर भी जा कर जानकारी ले सकते हैं।
नीचे दिए गए लिंक पर विस्तार से जानकारी भी है -
http://www.damanhur.org/philosophy-a-research/research/1429-the-music-of-the-plants
सच में यह  पौधों का संगीत है या नहीं लेकिन है वाकई बहुत ही मधुर और मन को मोहने वाला !




February 3, 2013

अनुत्तरित प्रश्न ?




७  दिन हो चुके हैं। 
दो दिन पूर्व उसका पार्थिव शरीर भारत उसके राज्य केरल में ले जाया जा चुका है।
वो ' स्मृति 'थी ,उम्र ३० बरस .मैं उससे नवंबर में दो बार मिली थी.उसके बेटे को जो पाँचवीं कक्षा का छात्र है ,मैं विज्ञान पढाती थी । 
वह अपने बेटे की पढ़ाई के बारे में 'ओपन हाउस' में मिलने आयी थी.अपने एकलौते बेटे की हर अध्यापिका से वह मिली। उसका विवाह 12 वीं  करते ही 18 वर्ष में  हो गया था।12 साल शादी को हो चुके थे।
अपने एकलौते बेटे से उसे बहुत प्यार था,उसकी पढ़ाई का बहुत ध्यान रखती थी। 
उसका बेटा कक्षा में पाठ से सम्बन्धित ,यहाँ -वहाँ के भी बहुत सवाल किया करता था ,इसलिए भी मेरी नज़र में वह एक जिज्ञासु और बुद्धिमान  छात्र था। 
उसके बाद वह दिसंबर में वह  वार्षिक समारोह में हमसे मिली थी,हम कुछ अध्यापिकाओं ने उस से हमारी कुछ ग्रुप फोटो  खींचने के लिए कहा था। 
और हमने उसकी नयी ड्रेस की तारीफ भी की थी.सब से हँसने-बोलने वाली थी। 
इस बार जनवरी ३१ को होने वाले ओपन हाउस के लिए उस ने नयी ड्रेस  तैयार की थी। 
कौन जानता था कि उसे पहनने का मौका उसे कभी नहीं मिलेगा। 

पिछले हफ्ते जब हमें यह खबर मिली कि उस ने ख़ुदकुशी कर ली है ,तो यकीन नहीं हुआ। 
एक आम प्रतिक्रिया स्त्रियों के मुंह से ही  मैंने सुनी --कि क्या ऐसा करने से पहले उस ने अपने बेटे के बारे में भी नहीं सोचा?
मैं यह सोच रही थी कि उस ने ऐसा किया ही क्यों?वे क्या परिस्थितियाँ थीं जिनसे वह मजबूर हो गई ,आर्थिक तंगी या शारीरिक कष्ट तो कोई था नहीं ..फिर ?

बिलकुल उसके पड़ोस में रहने वाली हमारी सहकर्मी से उसकी बातें होती रहती थीं। 
दोनों के बच्चे भी आपस में मित्र थे । 
ख़ुदकुशी करने से महज पाँच मिनट पहले ही उसने अपने बेटे को खेलने के लिए उस के घर छोड़ा था । 
इसका अर्थ यह है कि उसने यह निर्णय बहुत सोच समझ कर पूरी तैयारी कर के लिया था। 

वह  बाहर से तो देखने में उत्साह और जीवन से भरपूर लगने वाली थी !

फिर कारण क्या रहे होंगे जिसने एक जीवन को हारने पर मजबूर कर दिया ?
  • पति-पत्नी के बीच उम्र का १८ साल का  फासला ?
  •  उन दोनों के  स्वभाव में ज़मीन -आसमान का  अंतर ?
  • पति का अत्यधिक पसेसिव होना ?
  •  स्त्री का अपनी मह्त्वाकांक्षाओं के बोझ को उठा न पाना ?
  • स्त्री का अपने मन की बातों को किसी से बांटे बिना पीते जाना ?इतना कि वे उसके लिए  ज़हर बन गयीं?
  • या फिर दाम्पत्य जीवन में उठे  तनाव को अपनों से भी बताने में  झिझकना?
  • शायद वह किसी अपने को  दुःख को बता कर दुखी न करना चाहती हो?
  • पति-पत्नी के सम्बन्धों के सामान्य न होने पर अगर कोई स्त्री आत्महत्या करती है तो लोगों की यह एक आम   प्रतिक्रिया भी सुनने को मिलती है  [यहाँ भी मिली ]कि अगर दोनों के बीच बनती नहीं थी  तो तलाक ले लेते ,मरने की क्या ज़रूरत थी?
  • कहने वाले कह गए बिना यह सोचे कि क्या हमारे समाज में आज भी  तलाकशुदा स्त्री को सम्मान मिलता है?
  • या तलाकशुदा होने के बाद उसके खुद के घरवाले उसे हेय दृष्टी से नहीं देखेंगे?ऐसे निर्णय भी लेना आसान तो नहीं होता.
  • शायद उस के लिए मानसिक दवाब को झेल  सकने का आसान रास्ता मौत रही होगी।
  • मानसिक दवाब या मन के एकाकीपन को अगर उसे बाँटने का रास्ता मिलता तो शायद ऐसा न होता?
  • वह मन से बीमार थी तो क्या  वह सहानुभूति की पात्र नहीं थी ?मृत्यु के बाद भी ऐसी स्त्रियों को धिक्कारा ही जाता है उनके पक्ष पर कोई एक बार भी क्यों नहीं सोचता?
  • दाम्पत्य जीवन में  एकाकीपन क्या एक ही को  सालता है ?दूसरे की मनः  स्थिति के बारे भी क्या कोई सोचता है?
कारण जो भी रहे हों ,हताशा से  हार कर एक और ज़िंदगी अपने हाथों ही दम तोड़ गई ।

एक खबर के अनुसार  विशेषज्ञ   प्रवासी भारतियों में  बढ़ रही आत्महत्याओं की घटनाओं का  अध्ययन कर रहे हैं ताकि उनके कारणों का पता चल सके।
भारतीय दूतावास ने तो एमिरात में रह रही भारतीय महिलाओं के लिए किसी भी परेशानी में सलाह के लिए एक अलग फोन लाईन ०२४४ ९२ ७००  भी खोली हुई है ।
आप के आसपास भी कोई व्यक्ति डिस्ट्रेस /मानसिक तनाव में हो तो  उस की बात /परेशानी  सुनने के लिए ५ मिनट अवश्य निकालें शायद सिर्फ सुन लेने भर से एक जीवन हारने से बच जाए!