कल्पना के पर लगा ,मन सारथी ले संग...विचरती मैं .. व्योम के पार ...
bahut sundar
रात भर याद कर के उन्हें, रोया है कोई, पर यह शिक़ायत भी,अब -की नहीं जाती,vah alpna jee...maine to ise kai bar gungana liya....
प्रिय के विरह में भावातिरेक अंदाज़ में लिखा है आपने.. माने कभी इसको ऐसे देखा था.."सारी रात 'दिया' जलता रहा उसकी रोशनी का लिए ,और वो दीवानावार था जुगनू की चांदनी के लिए..."
बढिया है , जारी रखें !
बहोत ख़ूब!
bahut khuub likha hai.
आप के विचारों का स्वागत है.~~अल्पना
bahut sundar
ReplyDeleteरात भर याद कर के उन्हें, रोया है कोई,
ReplyDeleteपर यह शिक़ायत भी,अब -की नहीं जाती,
vah alpna jee...maine to ise kai bar gungana liya....
प्रिय के विरह में भावातिरेक अंदाज़ में लिखा है आपने..
ReplyDeleteमाने कभी इसको ऐसे देखा था..
"सारी रात 'दिया' जलता रहा उसकी रोशनी का लिए ,
और वो दीवानावार था जुगनू की चांदनी के लिए..."
प्रिय के विरह में भावातिरेक अंदाज़ में लिखा है आपने..
ReplyDeleteमाने कभी इसको ऐसे देखा था..
"सारी रात 'दिया' जलता रहा उसकी रोशनी का लिए ,
और वो दीवानावार था जुगनू की चांदनी के लिए..."
बढिया है , जारी रखें !
ReplyDeleteबहोत ख़ूब!
ReplyDeletebahut khuub likha hai.
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