"आज तक मेरी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी किसी दुश्मन की नही हुई .. लेकिन आज मुझे अपनों ने ही लाठियों से पीटा" !! ------- पूर्व जनरल वी के सिंह
बीते कुछ दिनों में जो कुछ भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ,
परदेस में हम तक भी खबरें पहुँची... बहुत दुःख हुआ !!
मैथिलीशरण 'गुप्त 'जी की लिखी ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं --
हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, ये समस्याएँ सभी संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी निश्चेष्ट होकर किस तरह से बैठ सकते थे कभी |
मैं तो अब तक मनन कर रही हूँ कि ये दोनों कौन हैं ?
मैं ' ने 'तुम ' से कहा --
ऐसा कौन सा हृदय न होगा जो फेसबुक आदि पर फैली उन तस्वीरों को देख कर व्यथित न हो जाए. जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, कभी सुना करते थे कि ब्रिटिश राज में ऐसा होता था वैसा होता था, उनकी दमनकारी नीतियाँ पढायी जाती थीं, आज देखा और सुना!
'तुम' ने कहा --जब घर में बच्चे बिगड़ने लगते हैं तो माँ-बाप ऐसे ही डांटकर, फटकार कर और पिटाई कर के उन्हें सही राह पर लाते हैं.स्कूल में भी अनुशासन के लिए बिगडैल छात्रों को अध्यापक बेंत से पीटते थे !
'मैं ' ने कहा-- वह ज़माना और था अब नहीं होता ऐसा ..अब माँ-बाप न अपने बच्चों को मारते हैं न पीटते ,अब उन्हें रस्ते पर लाने के लिए दूसरी अप्रोच है, आज के बच्चे बातों से समझते हैं, उन्हें सही तर्क दिए जायें तो समझते हैं, यह मेरा अनुभव है. यह नयी पीढ़ी है ये तकनीकी युग की पीढ़ी है इस आप इस तरह हेंडल नहीं कर सकते. मनोवैज्ञानिक अप्रोच चाहिए .
'तुम' ने कहा ---हुंह ,बच्चे सब हर ज़माने में ऐसे ही होते हैं, मुझे आजकल और बीते कल में अंतर समझ नहीं आता. इस सरकार के लिए यह जनता उसके बच्चे ही हैं जिन्हें ऐसे ही समझाना था नहीं तो ये नियंत्रण से बाहर हो जाती ,देखो यहाँ सभी की सुरक्षा का प्रश्न सरकार के सामने था.
'मैं ' ने कहा- --अगर अंतर समझ नहीं आता तो समझने की कोशिश करो ! अपनी आँखों से पुरातन का चश्मा हटाओ और देखो आज समय बदला रहा है आज सुचना प्रसारण पहले से अधिक तीव्र है यहाँ कोई खबर छुपती नहीं है. स्थिति भयावह हो सकती है लेकिन नियंत्रण से बाहर हो तभी! क्या तुम्हारी सरकार को मालूम नहीं था कि ऐसा आन्दोलन होने वाला है ? उनकी नज़र तो सब जगह है. तब क्यूँ नहीं पहले से सुरक्षा के पूरे प्रबंध किये गए ?
'तुम' ने कहा -सुरक्षा का प्रबंध करना क्या बच्चों का खेल है ? इतने बड़े देश को चलाना क्या आसान काम है ? भीड़ जुटाना आंदोलन करना आज सबसे आसान काम हो गया है ? जबकि सुरक्षा कर्मियों की तैनाती आदि के लिए तरीके से बंदोबस्त करना होता है.
'मैं ' ने कहा--वे आन्दोलनकरी सिर्फ आश्वासन चाहते थे और चाहते थे कि सरकार का जन प्रतिनिधि उनसे बात करे.
'तुम' ने कहा--बात तो की न, सोनिया जी ने और गृह मंत्री ने भी .
'मैं ' ने कहा---कब की ? जिस दिन लोग जमा हुए उसी दिन अगर भीड़ को संबोधित कर देते तो आज स्थिति अलग होती, उनके प्रति विश्वास बढ़ता.लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
'तुम' ने कहा-- जो बात करने जाता उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी प्राथमिकता थी. भीड़ से बात करने का तरीका होता है ,हम ने उसी तरीके से बात की.
'मैं ' ने कहा- --जो लाठीचार्ज आंदोलनकारियों पर किया गया. मालूम है ?उस में कितने लोग घायल हुए, न केवल शारीरिक तौर पर बल्कि उनका मन भी आहत हुआ.
'तुम' ने कहा - देखो ! भीड़ में जिस तरह से उपद्रवी घुसे थे, राजनैतिक रूप लेने लगा था उस में इतना वक्त नहीं था कि यह देखा जाए कि कौन सामने है.इस आंदोलन के उग्र रूप का दमन ज़रुरी था. क्या नियंत्रण के प्रयासों में हमारा जवान शहीद नहीं हुआ ?
'मैं ' ने कहा- -मुझे दुःख है कि इस हादसे में पुलिस वाले की मृत्यु हुई लेकिन उस का जिम्मेदार भी आप को दिया आदेश ही है जिसके तहत लाठीचार्ज किया गया.अब कर्फ्यू जैसे स्थिति लगा कर आप साबित करना क्या चाहते हैं ?
'तुम' ने कहा-इन बातों को तुम लोग क्या समझो ? इतना आसान होता है क्या देश को चलाना ? इस समय मेट्रो को बंद करना, कुछ स्थानों पर भीड़ या लोगों का आना-जाना प्रतिबंधित कर देना सब आम जनता की सुरक्षा के लिए ही है. तुम नहीं जानती कि देश के बिगडते अंदरूनी हालातों का फायदा उठाना बाहर के आतंकवादी खूब जानते हैं, अगर हम ऐसा नियंत्रण न करें तो कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न होने पर भी यह जनता हमें ही दोष देगी.
किसी ने कभी इस बात की तारीफ़ नहीं की कि हमने शांति से अन्ना आन्दोलन को चलने दिया. अभी तक उन लोगों को गिरफ्तार नहीं किया जो भीड़ एकत्र करते हैं और लोगों को भड़काते हैं .
'मैं ' ने कहा- --वह भी आप कर ही देंगे, उन 'कथित नेताओं 'पर लाठी चलवा दी, उनके विरुद्ध केस बन गए .मेरी आप से यही विनीती है कि आप अपने और जनता के बीच की दूरी को पाटिए, उनका विश्वास जीतिए. अन्यथा इसका नतीजा 2014 में देखने को मिलेगा.
'तुम' ने कहा --क्या तुम्हें लगता है सरकार बदलने से इस देश का रूप बदल जाएगा?
इसी भीड़ में वे लोग भी होंगे उस रात जिन्होंने उस लड़की और उसके दोस्त को सडक पर पड़े हुए देख कर भी अपनी गाड़ी नहीं रोकी ,लड़की के नंगे जिस्म पर कोई औरत भी कपडा डालने नहीं आई. खून में लथपथ देख कर दूर से रास्ता बदल कर निकल गए.इन्हीं में से वे लोग भी होंगे जिन्होंने इस बस को सड़कों पर घूमते देखा होगा लेकिन पुलिस में रिपोर्ट नहीं की होगी.
इसी भीड़ में वे लोग भी होंगे जो आये दिन बस में चौराहों पर ,बाज़ार में लड़कियों पर छींटाकशी सुन कर भी साईड से निकल जाते होंगे. इन्हीं में वे लोग भी होंगे जो खुद अपने घर में महिलाओं से बदसुलूकी होते देख कर भी चुप रहते होंगे , वे महिलाएँ भी होंगी जो खुद महिलाओं पर जुल्म ढाती होंगी.
सरकार बदलने से क्या इनके व्यवहार में, आचार में परिवर्तन आएगा ?? क्या इनकी सोच बदलेगी ? आज हर व्यक्ति को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है, औरत को ऑब्जेक्ट न समझें, नैतिक मूल्यों को बढ़ाने की हर घर से शुरुआत हो , जन जागृति लाएँ..
हर बात में सरकार बदलने की बात करते हैं !
दुःख होता है यह कहते हुए लेकिन सच है कि अब हर बड़ी हिंसात्मक घटना लोगों को आनंदमय बनाती है ! चाहे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाला हादसा हो या कारगिल युद्ध या कोई और हादसा!
कभी सोचा है कि इस घटना में जो पुलिस वाला मर गया.वो अपने घर में अकेला कमाने वाला था,उसके तीन बच्चे, विधवा माँ और अब विधवा पत्नी..कौन देगा उसके आसूँओं का जवाब ?अब उसके परिवार के लिए कौन करेगा आंदोलन?
78 पुलिस वाले अभी भी घायल अवस्था में सफदरजंग अस्पताल में भरती हैं.
11 पुलिस की गाड़ियाँ जला दी गयीं. अपने ही देश की पुलिस का मनोबल कमजोर करके, अपने ही देश की संपत्ति का नुक्सान करके ये लोग कौन सा आन्दोलन कर रहे थे ? इस आन्दोलन से मिला क्या ?
दर असल देश में आजकल अराजकता की स्थिति है
कारण सिर्फ जनसँख्या विस्फोट !
125 करोड़ के देश में अब भीड़ ही भीड़ है बस !
बन्दर भी नाचता है कहीं किसी नुक्कड़ में तो 1000 आदमी खड़े हो जाते हैं. मुंबई से कोई थर्ड ग्रेड का कलाकार भी आ जाए तो कभी देखो यहाँ दस हजार की भीड़ मामूली बात है,भीड़ जुटाना क्या मुश्किल है ? इस भीड़ जुटाने को आंदोलन कहते हो ?
सारी समस्याओं की जड़ है जनसँख्या!
जबकि इस विषय पर कोई भी नेता कभी बात ही नहीं करता!
कल्पना करो कि इस देश से 50 करोड़ जनसँख्या कम हो जाए
क्या हम भी अमेरिका नहीं बन जायेंगे ?
जहाँ सबको नौकरी होगी सबके पास घर होंगे
महंगाई नहीं होगी..प्रदूषण नहीं होगा! सब पढ़ सकेंगे,
सबका इलाज हो सकेगा....और...
'मैं ' ने कहा- --आखिर 'तुम 'हो कौन?मुझे तो यह सब सुनकर अच्छा नहीं लगा . आगे जो भी होगा अब तो वक्त ही बताएगा.
'तुम' ने कहा-मैं एक निष्पक्ष व्यक्ति हूँ जिसके चश्मे में एक शीशा जनता और दूसरा शासित सरकार का है और दोनों के नज़रिए से देखने का प्रयास मात्र किया है,अपने विचार कहे हैं.
जरा, पुराना समय याद करो -हत्या वगैरह तो बहुत दूर की बात थी ........ आस पास के दो चार किलोमीटर के दायरे में भी किसी की मृत्यु हो जाती थी तो सबको पता चल जाता था ... लोग ग़मगीन हो जाते थे ..... परिचित न भी हो तब भी पड़ोस के होने के नाते शवसान स्थल तक जाते थे.
लेकिन आज क्या स्थिति है ?
हर तरफ हम डेली मौतें देख रहे हैं
इधर पांच मरे ...उधर दस मरे .....
कोई ट्रेन दुरघटना हो तो सबसे पहले हम ये देखते हैं कि मरे कितने?
मानो ये दुर्घटना की खबर नहीं जैसे कोई मनोरंजन हो!
हम आदतन प्रकृति से ही हिंसात्मक हैं. खुद नहीं कर पाते हिंसा ... डर लगता है.
इसीलिए जब भी कोई गुंडा टाईप आदमी हमारे बीच से बन्दूक उठा ले या दबंगई करे तो हमें वो हीरो लगने लगता है...आज कल की फिल्म ही देख लो गेंग्स ऑफ वासेपुर हो या या दबंग ऐसी ही फिल्म चल रही हैं, कभी सोचना क्यों ?
खेल में भी हम उसको ही पसंद करते हैं जो तेज तर्रार हो सहवाग जैसा.... द्रविड़ और कुंबले को कभी नहीं जिन्होंने देश को सबसे ज्यादा मैच जितवाए ! और....
'मैं ' ने 'तुम' को बीच में ही टोकते हुए कहा---प्लीज़.... 'तुम' अब बहस बंद करो..मुझ में तुम्हारी बातें सुनने की हिम्मत नहीं है.मुझे थोडा सोचने दो .
अब 'हम' खामोश हैं !
तब से अब तक 'मैं' 'तुम ' की बातों का जवाब सोच रही है, क्या आप के पास कोई जवाब है?'2012' में दुनिया खतम होने पर 'एक तस्वीर देखी थी .... क्या यही चिंता और भय हम सब को नहीं है ?
कुछ समझ नहीं आ रहा है तो कोई बात नहीं आप भी मेरे साथ प्रभु से प्रार्थना करिए कि जो भी आगे हो इस देश और देशवासियों के हित में हो.... आमीन.
पहले तो ऐसी घटना ही दर्दनाक थी ... आक्रोश दिलवाने वाली थी ... ऊपर से सरकार का मानवीय व्यवहार प्रदर्शनकारियों के प्रति ओर अब बाबा ओर जनरल के प्रति कार्यवाही ...
ReplyDeleteपता नहीं इस भ्रष्ट तंत्र का कोई अंत है या नहीं ... ओर है तो कब है ...
इस बार तो दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने
अपने हिसाब से बड़ी उदारता ही दिखाई जी ...
:(
4 जून 2011 की आधी रात को तो
सोए हुए बुजुर्गों मां-बहनों , बच्चों पर लाठियाँ भांजी गई थी ...
आदरणीया अल्पना जी
नमस्कार !
वार्तालाप शैली में लिखा आपका आलेख
निःसंदेह समाज और सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति चिंता और पीड़ा से प्रेरित दायित्वबोध का परिणाम है ।
पात्र तुम में लगभग -
# महंगाई की मार से जनता को अधमरा करने के बाद सफाई देती ...
# अन्ना को गाली निकाल कर चैनलों पर , चासनी में डूबी शब्दावली में आम जन के आगे स्वयं को हरिश्चंद्र रूप में प्रस्तुत करती...
# काले धन का तथ्यों पर आधारित भंडाफोड़ करने के बाद बाबा रामदेव को लगातार झूठे मामलों में फंसाकर सच से और भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश करने से आम जन को दूर रहने की इशारों में धमकी देती ...
कांग्रेस का ही रूप है ।
किसी पद पर लंबे समय तक कोई टिका रह जाता है , वह शर्तिया कर्तव्य-विमुख और मनमानी करनेवाला बनता जाता है ।
...लंबे समय तक सत्तासीन रहने के बाद अपनी भावी पीढ़ियों के लिए भी बंदोबस्त करने की सामान्य प्रवृत्ति के चलते आमजन का शोषक , हिसक और हिटलर-तानाशाह बनते जा रहे इन नेताओं को हम देख कर भी न देखना चाहें तो और बात है ...
वरना सब सामने ही है ।
# अपनी संतान का भला चाहने वाले मतदाताओं को अब दस-बीस वर्ष परिवर्तन के लिए अवश्य सोचना चाहिए ...
(## 2014 के बाद अवसर ही नहीं मिलेगा !!)
अपराधियों को निहित स्वार्थ के लिए सत्ता में भागीदार बना कर छोटी पार्टियों के रूप में विकसित करने वालों से न्याय और सुशासन की उम्मीद करना खुद को ही धोखा देना है ...
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
बिलकुल सटीक सामयिक चर्चा -सशक्त अभिव्यक्ति :
ReplyDeleteनई पोस्ट; जागो कुम्भोकर्नो ,http://kpk-vichar.blogspot.in
सिक्के के दोनों पहलू जो भी देखेगा, उसे ऐसे ही आत्मालाप, वार्तालाप में उलझना होगा।
ReplyDeleteबहुत संतुलित पोस्ट है आपकी।
मैंने आपकी ये रचना अभी नहीं पढ़ी है पर सेव कर लिया है समय मिलने पर वापस आकर टिप्पणी करूंगा।
ReplyDeleteहैप्पी मेरी क्रिसमस
मैंने आपकी ये रचना अभी नहीं पढ़ी है पर सेव कर लिया है समय मिलने पर वापस आकर टिप्पणी करूंगा।
ReplyDeleteहैप्पी मेरी क्रिसमस
apka blog bhut samridh hai, kuch din pahale sirf hiku padane ko hi nahi mila balki hiku aur kshanikaon ke bich antar bhi samaghhane ko mila, apka bloag pdane yogya hai, dhanyavad
ReplyDeletesanjay mausam jee na sach kaha...
ReplyDeleteयह ऐसा युग आगया लगता है जिसमे अपने सिवा किसी दूसरे के बारे में सोचने की फ़ुरसत ही नही है. जो भी सोचता है वो "मैं" और तुम वाले झंझावात में उलझ कर रह जाता है.
ReplyDeleteआपकी बाते स्पष्ट हैं मगर इलाज उपाय शायद ही मिले. बहुत सामयिक पोस्ट, शुभकामनाएं.
रामराम.
तर्क श्रंखला काम न आयें,
ReplyDeleteसमझे और समझायें।
देश के हालात बदतर होने जा रहे हैं. जनता भी बड़ी चालू है, हर चीज को कैश कर लेती है.
ReplyDeleteI am lost , horrified and cannot say anything right now as Guests at home made me so busy to know anything about latest happening in India
ReplyDeleteI am so sad to know about policeman .There are so many lessons which can be given in the classroom and at home but who can rule good no body knows . The midea people write good but cannot change the politics . May God give every one a good soul to breath from that soul including policemen . They are good as we are not all of them are corrupt .
ReplyDeletePolice men save other people putting their life in danger , they are humanbeings but public do not cooperate sometimes
ReplyDelete, some of the people are really stupid and do not know how to behave and poor policemen loose their life .
बहुत सशक्त आलेख, एक अलग ही पर दमदार शैली में ।
ReplyDeleteवास्तव में साडी स्थितियां और सारे घटनाक्रम चिंता का विषय हैं । दिल्ली पुलिस और भारत सरकार की प्रतिक्रिया निराशा जनक है ।
दिल्ली पुलिस तो इतनी निचे गिर चुकी है कि जनाक्रोश को भटकाने के लिहाज से झूठे आरोप और झूठे केस लगाने से भी बाज नहीं आ रही है । खुले आम अमानवीयता का सबूत दे रही है ।
मैं और तुम के इस संवाद के द्वंद्व में हम सभी फंसे हैं -प्रश्न के सटीक जवाब श्याद अभी भी अनुत्तरित!
ReplyDeleteशायद हमें अब अपने कायदे कानूनों को और अप्रोच को बदलना होगा !
एक सामयिक और समग्र पोस्ट!