आज फेसबुक पर एक स्टेटस लगाया..
'बेशक विवाह के बाद स्त्रियों का आधा जीवन चूल्हा चौके में बीतता है ..कई बार उनका भी मन करता होगा न कि उन्हें भी मनुहार के साथ कोई अपना गरम -गरम फुल्के बना कर खिलाए ! जैसे कभी माँ या दीदी खिलाया करतीं थीं.' |
क्या कुछ गलत लिखा था??:)
नहीं न? बल्कि फेस्बुकिया कई सखी -सहेलियों ने इसे सराहा और कहा यह उनके मन की ही बात कही गयी है.. एक सखी स्वर्ण कांता ने अपनी वाल पर भी अनुमति के साथ लगा लिया.यह कहते हुए कि ''अल्पना जी, आपका स्टेटस मन को इतना भा गया कि इसे अपने वॉल पर लगा रही हूं... इस विचार और इच्छा का जितना प्रचार प्रसार हो हम स्त्रियों को फायदा होगा.."
वहीँ लेखक /कथाकार कृष्ण बिहारी जी ने कहा alpanaji, aapki baat ek prashna to utthati hai lekin kuchh baaten dikhne mein atapati lagti hain. karan shayad yah ki ham aisa dekhne ke abhayst nahin . jahan aisa chalta hai vahan koi aise prashna karta bhi nahin. aisi ichha bhi vyakt nahin karta. . . |
मेरा जवाब --@Sir..एक बार कभी भाभी जी को surprise तो दे कर देखीये ...ऐसी इच्छा कोई स्त्री सीधा कभी नहीं व्यक्त करेगी मेरी भी कहाँ हिम्मत हो रही थी सीधा कहने की! :D |
Krishna Bihari जी का कहना था --- mujhe lagta hai ki hamari peedhee jo aise pariavr mein badi hui jahan rasoighar mein keval mahilayen hi jaati rahi hain , vahan abbhi yah sambhav nahin hai.karan bhi the, mahilaon ka snan karke hi vahan jana hota tha. chauke ki ek alag maryada hoti thee.purush to purush nabalig bachche bhi chuke ke andar nahin ja pate the. striyan bhi maheene ke kuch din rasoi nahin banti theen.ab bahut kuch badla hai.ab chuke mein joote pahne hue bhi stri-purush chale jaate hain. chappal joote pahne kaheen bhi kha lete hain.hotel aur ghar mein jyada antar nahin rah gaya.ab mahilayen un dino bhi rasoi banati hain ji dino unka vahan pravesh varjit tha. in sab badlaaon ka asar hamare bachchon ke jeevan mein to dikhne laga hai magar hamare jeevan mein shayad yah abbhi sambhav nahin hai.yah alag baat hai ki anchahe roop se koi aisi sthiti aa jaye jahan yah sab karna kartavya ho jaye , vah baat alag hogi. . .main apne ek aise mitra ko janta hoon jisne kabhi kuch nahin kiya tha ghar mein. use ghar ke kamon mein kuch aata bhi nahin tha. kintu aisi aparihaarya sthiti hai ab sab kuch vahi karta hai. patni asahay see dekhti hai aur sochti hai ki kaise vah sab kuch saharsh kar raha hai. koi shiqan nahin .koi apradh nahin. koi kasht nahin. |
श्री प्रकाश गोविन्द ने कहा -आपने सही कहा ........ कोई स्त्री कभी ऐसी बात नहीं कहती .... लेकिन अगर ऐसा हो तो किसे अच्छा नहीं लगेगा ! - आपकी बात मुझे याद रहेगी ... मैं तो ऐसा करूँगा :) @ सॉरी प्रकाश जी चपाती बनाना अव्वल तो चाय बनने जैसा सरल नहीं है ..! |
लेखिका और कवयित्री पूर्णिमा वर्मन जी ने कहा कि भारतीय पति तो रोटी नहीं बना सकते, लेकिन हाँ बेटी जरूर.. |
मेरी सहमती पूर्णिमा जी, @भारतीय पति..खासकर उत्तर भारतीय पति बहुत ही कम होते होंगे जिन्होंने कभी इस तरफ सोचा भी होगा कि वो एक कोशिश करें ..:.अपनी श्रीमति जी को उसी तरह से बिठाकर एक- एक फुल्का बना कर परोसें जैसे उनकी श्रीमती जी सालों से उनके लिए करती रही हैं! |
कवयित्री Rashmi Prabha जी का कहना था कि bahut mann karta hai ......... mere bachche yah ker dikhate hain @खुशकिस्मत हैं आप रश्मि जी! वर्ना बच्चे भी आजकल तो सेंडविच /बर्गर ही बना पाते हैं ! |
मुकेश कुमार सिन्हा जी ने कहा कि kabhi kabhi khialaya bhi jata hai... sayad aapne anubhav bhi kiya hoga.. chahe bachcho ke dwara ya fir pati:) --@असहमति मुकेश जी ऐसा सामान्य परिस्थितयों में कभी नहीं होता देखा! ---------------------------------------------------- पोस्ट के छपते छपते Shri Anup Shukla जी की प्रतिक्रिया आई ...पूर्णिमा वर्मन/ Alpana Verma हम तो रोटी बना लेते हैं। कुछेक बार पत्नी/बच्चों को खिला भी चुके हैं। चाय तो अक्सर ही बना/पिला लेते हैं। :) -
@अनूप जी ,ऐसा सुनना अच्छा लगा कि आप को चपाती बनानी आती है..चाय तो हर कोई बना ही लेता है !
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इन सब के अतिरिक्त जो बाकी सखियों ने अलग अलग
तरह से अपने मत ज़ाहिर किये..किसी की सासू माँ तो किसी की ननद , किसी की देवरानी ,तो किसी की ऑफिस की सहायिका मित्र उन्हें बना कर खिलाती हैं !
बड़े रोचक सवाल/जबाब हैं। हम बचपन में अक्सर अपने घर में बड़े भाई के साथ खाना बनाते थे जब अम्मा गर्मी की छुट्टियों में गांव जाती थीं। खाना सब बना लेते हैं वो बात अलग कि खराब बनाते हैं। लेकिन मन करता है कि कभी-कभी घरवालों को खिलाया जाये बनाकर। एकाध बार किया भी लेकिन खाने की गुणवत्ता ने सहयोग किया कि अगली बार बनाना नहीं पड़ा। एक बार तीन दिन लगातार सूप बनाया। पहले दिन सबसे अच्छा बना लेकिन फ़िर गुणवत्ता गिरती गयी। :)
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
पति या बच्चे बना कर खिला देते हैं गरम चपाती , कुछ ख़ास अवसरों पर ...इसलिए इतना नहीं अखरता !
ReplyDeletealpana di
ReplyDeleteaapki baat to bahut hi achhi lagi.han!hamaare shri maan ji mere asvasth hone par bana lete hain .
unke haath ki bhel puri v tahri ki to baat hi kya.han---rotiyan bhi banana jaante hain par thodi moti- moti v chhoti bhi .
par kahte hain ki prem se bani hui har cheej bahut hi achhi lagti hai .
aur isi bahane ham thodi der ke liye rasoin se dur ho jaate hain
aaram farmaane ke liy-----;)
is post ke liye aapko hardik badhai
poonam
ये सच है कि मैंने कभी रोटी बनायी तो नहीं लेकिन बनते हुए देखा बहुत बार है !
ReplyDeleteमुझे लगता है कि आटा गुंथा हुआ रखा हो तो मैं बना लूँगा ..... लेकिन रोटी फूल के कुप्पा कैसे हो जाती है ये मेरे लिए एक चमत्कार है .... शायद ये चमत्कार मुझसे न हो पायेगा :)
मैं कभी कभार नई नई रेसीपी से आयटम बना खिलाता रहता हूँ। पर पता नहीं, हमेशा उसे खुश करने की जगह परेशान कर देता हूँ। अन्दर का विद्वान पाककलाकार जाग उठता है और वह मुझे असिस्ट करने (सामग्री जुटाने और तैयार करने) में ही पस्त हो जाती है। :)
ReplyDeleteहमारे पतिदेव ने तो हमे कई बार बनाकर खिलायी है और आज भी खिला देते हैं बेटी तो खिला ही देती है बेटे को भी सिखाया है वो भी सेंक देता है गरम गरम रोटी बेशक बेल कर हम रख आते हैं ………सच अलग ही सुख मिलता है ।वक्त पडने पर हमारे पतिदेव ने तो आटा भी गूंथा और पूरियाँ भी बनाईं इस मामले मे तो हम खुशकिस्मत हैं।
ReplyDeleteप्रकाश गोविन्द जी,
ReplyDeleteरोटी न फूले तो कोई बात नहीं, आपका भाव देखकर भाभीजी फूल के कुप्पा अवश्य होंगी। :)
रोटी के फूल के कुप्पा बनाने की विधि मैं बताता हूँ…
यह तो आप जानने ही है कि इन्सान को दो तरफा प्रशंसा की आंच मिले तो फूल कर कुप्पा हो जाता है। बस रोटी का भी ऐसा ही है, पहले एक तरफ आंच से कड (तह)बनाई जाती है फिर दूसरी तरफ। और अन्त में आंच देने पर फूल कर कुप्पा हो जाती है :)
ऐसी बातों से घबराहट होने लगती है..
ReplyDeleteबड़ा कठिन सवाल है, जैसे कोई मुझे कहे कि दिन में तीन बार न्यूट्रॉन बॉम्ब बना दिया करो ... मैं कभी नहीं कर पाया कुछ भी पकाने का काम, सिवाय चाय बनाने के और वह भी केवल डिप. ☺ जब कभी अकेले कहीं डटना भी पड़ा तो बाहर के खाने पर ज़िन्दा रहा या हफ़्ते-दो-हफ़्ते का खाना फ़्रीज़र में डाल के माइक्रोवेव के हवाले से काम चला लिया. अच्छा और तन्मयता से खाना बनाने वालों की प्रसंशा व सम्मान के लिए मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं, जो काम मैं एक बार नहीं कर सकता वे पूरा जीवन वैसे ही करते हैं जैसे सॉंस लेना...
ReplyDeleteWAH....
ReplyDelete@काजल जी और प्रवीण जी ईमानदारी भरे व्यक्तव्य के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete:)
@सुज्ञ जी ,आप ने सही कहा..मैंने कई महिलाओं से इस बारे में पूछा कि क्या वे अपने पतिदेव को रसोई में काम करने देंगी तो उनका भी यहीं कहना होता है ..बेहतर है रसोई के काम हम ही कर लें वे जितना काम सही करते हैं उस से कहीं अधिक सामान अव्यवस्थित कर देते हैं!
काम कम होनेकी बजाये बढ़ता ही है!
@अनूप जी, आप का इतना कहना ही कि घरवालों के लिए भी कभी- कभी रसोई में कुछ बनाना चाहिए....घरवालों के लिए काफी है!
@पूनम ..अच्छा लगा कि तुम्हें भी यह सौभाग्य मिला है अब चाहे जैसी भी रोटियां हों ...मोटी /जली हुई/आधी कच्ची .. यह जज्बा ही काफी है .
बहुत शानदार लिखा है आपने!
ReplyDeleteपितृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
मेरा हाल भी "सुज्ञ"जी की तरह ही है। नई नई चीजें बनाने का शौक जब भी जोर मारने लगता है श्रीमती जी सामग्री इकट्ठा करने में और सहायता करने में परेशान हो जाती है, कहती है इससे तो हम ही खाना बना लें वो अच्छा।
ReplyDeleteचपाती बना कर तो खिलाने का समय कभी नहीं मिला लेकिन एकाद बार डोसा बना कर खिलाया है।
सागर जी,
ReplyDeleteमुझे याद है हलवे में जास्मिन की खुशबू ः)
रोटी तो ठंडी फिर भी चल जाती है दी ...लेकिन जब डोसा ठंडा खाना पड़ता है तब माँ की बहुत याद आती है...पतिदेव को बोला मैंने सीख लो डोसा सेकना, कहने लगे तुम अपने लिए बनवाते बनवाते बच्चो के लिए और फिर गेस्ट के लिए भी मुझसे ही बनवाओगी :) ...अब भला मै ऐसा क्यों करुँगी ?
ReplyDeleteaisi iccha to sabhi kee hoti hai kee garam gara roti koi paros kar khilaye..sahjaat hai..rochak prashn hai..aaur sudhi paathkon ke jabab bhee chitra me dikhayee gayee gol gol roti kee tarah dilchasp..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
ReplyDeleteलो जी ... हम तो कई बार न सिर्फ रोटी बल्कि सब्जी ... पुलाव ... और भी न जाने क्या क्या बनाके खिलाते रहते हैं ...
ReplyDeleteवैसे ऐसे सरप्राइज़ देते रहना बहुत ही अच्छा होता है ..
दिगम्बर नासवा has left a new comment on your post "काश !एक दिन ऐसा भी हो….":
ReplyDeleteलो जी ... हम तो कई बार न सिर्फ रोटी बल्कि सब्जी ... पुलाव ... और भी न जाने क्या क्या बनाके खिलाते रहते हैं ...
वैसे ऐसे सरप्राइज़ देते रहना बहुत ही अच्छा होता है .
मेरे लिए सबसे मुश्किल काम रोटी फुलाना ही है. आंटे गुथ लेता हूँ.
ReplyDeleteलेकिन आगे कोशिश जरुर करूँगा.
हम तो रोटी भी बना लेते हैं और नई रेसीपिज भी ट्राई कर लेते हैं. जिस रोज हम किचन में घुसने का प्रोग्राम बना लेते हैं ताई लठ्ठ की जगह चिमटा लेकर दौडती है ये कहते हुये कि तुम खाना बनाने में किचन में इतना फ़ैलावडा कर देते हो और बाद में मुझे समेटना पडता है सो बाहर ही रहो.:)
ReplyDeleteअफ़्सोस मौका हाथ नही लगता.
रामराम
अल्पना जी हमें तो हमारी मालती गरम रोटी बना कर खिलाती है पतिदेव तो पुलाव के आगे कुछ बना नही पाते ।
ReplyDeleteहाहाहहाहाहाहहाहा
ReplyDeleteमेरी मैडम को यही बात बहुत अखरती है कि वो ये नहीं कह पाती कि मेरे बिना किचन नहीं चल पाएगा। इतने लंबे समय तक अकेले बाहर रहा हूं कि खाना बनाना ठीक ठाक जानता हूं।
रोटी तो मैं गोल बना ही लेता हूं, फुलती भी ऐसे ही है। खैर मैं तो अपनी बात करने लगा.
लेकिन रोचक पोस्ट, आपने फेसबुक से पूरी उठाकर जिस तरह हम सबको परोसा वाकई स्वादिष्ट पोस्ट है।
Mujhe to rasoi hi unhone sikhai hai. Ab main roti bahot achchhi paka leti hun.
ReplyDeletePar aap ki baat se bhi sehmat hun.
Kaash ye sab Devnagri mein likh paati.
वाह! व्योम के उस पार आ कर आनन्द आ गया.
ReplyDeleteमाननीय जन की अपनी अपनी बातें जानने को मिली.
कभी कुंवारेपन में दाल , रोटी, चावल बनाये थे..
पर फिर श्रीमती जी ने मौका ही नही दिया.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा
अल्पना जी.
आपसे सहमत.
ReplyDeleteओह हां याद आया संदर्भ को भलीभांति नहीं आत्मसात कर मैंने कुछ फेसबुक पर ऐसे ही चलताऊ कह दिया था ..
ReplyDeleteमगर यह मामला इतना महत्त्व का था आपने अपनी पोस्ट भी इस पर लिखी और नामचीनों को उद्धृत भी किया ..
मगर मजबूरी यह कि ज्यादातर पतिदेवों को रोटी बनानी आती ही नहीं -एक मैं ही हूँ -रोटी बन भी जाय तो मगर आंटा
गूथना -न बाबा न -वे नर और हैं जो आंटा मर्दते हैं शादी व्याहों में !
रोटी तो बन जाती है अल्पना पर जो रसोई की हालत होती है उफ्फ्फ्फफ्फ़...
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